कविता
बबलू दूधवाला अठारह वर्षीय,
रोजाना की तरह,
बेहद काली अधिँयारी रात मेँ 3 से 4 के बीच,
घासफूस की झोपड़ी मेँ,
गाय ,भैँस की थाण मेँ ,
गायोँ ,भैँसोँ के दूध निकालने की,
जुगाड़ मेँ खुद को परीवार के सदस्योँ, के साथ तन,मन से जुटा हुआ,
थाण मेँ भूसे के साथ खल,चुरी, तैल,
ओसाणता हुवा,पसीने से ओतप्रोत,
सभी का शरीर मशीन की तरह काम करता हुआ,
सभी पशु मुख्य थाण की ओर टकटकी लगाकर देखते हुवे,
कि कब भुसे,खल,चुरी का मिश्रण उनकी टोकरी मेँ आयेगा,
बारी बारी से मिश्रण उनकी टोकरी मे आता गया,
हर जानवर के पास एक सदस्य गले की रस्सी पकड़ कर गला सहलाता हुवा,
डँडे की ठक ठक करता हुवा,
शीघ्र बबलू पिछले पैरोँ मेँ रस्सी की गाँठ लगाता हुवा,
थनोँ से दूध बरतन मेँ निकालता हुवा,
फिर बड़े बरतन मेँ इसको डालता हुवा,गाय के दूध का अलग बरतन,
भेँस के दूध का अलग बरतन का ध्यान रखता हुवा,
बबलू अपने परिवार के साथ अलग अलग दूध की कैनोँ मेँ दूध माप कर भरता हुवा,
बाकी दूध बड़े बड़े चरोँ मेँ भर कर दूध की मोटर सायकल पर
लाद कर गाँव की गडार से निकल कर मेन रोड़ पर आकर शहर की
कालौनीयोँ के मकानोँ मेँ बधीँ बधाँई दूध की बँदी पर दूध बाँटता हुवा,कुछ से ताने ,
कुछ से शिकायत सुनता हुवा
अरे! कल दूध मेँ पानी था।
भैणजी,आप दूध मेँ मलाई देँखेँ,पानी नही मिलाते हेँ।
बबलू को शहर से वापस आते आते दिन के दो - तीन बज जाते हेँ।
बबलू खाना खाकर वापस शाम की उपरोक्त सद्दश तैयारी मेँ जुट जाता हे।
क्योकि इसी प्रकार शाम का दूध लेकर शहर जाना हेओर देर रात तक अकेले ढाणी लोटना हे।
गर्मी,सर्दी,बरसात सुबह से शाम,बस काम ही काम,काम ही काम,
ओह! बबलू तू लौह पुरूष हे यार.
बबलू,तुझे,तेरी रोज रोज की कड़ी मेहनत को सलाम यार !
विजयकाँत मिश्रा,
164/5,प्रशाति लेन,
सेट्रँल स्कूल रोड़ के पास,कोटा जँ.324002
बबलू दूधवाला अठारह वर्षीय,
रोजाना की तरह,
बेहद काली अधिँयारी रात मेँ 3 से 4 के बीच,
घासफूस की झोपड़ी मेँ,
गाय ,भैँस की थाण मेँ ,
गायोँ ,भैँसोँ के दूध निकालने की,
जुगाड़ मेँ खुद को परीवार के सदस्योँ, के साथ तन,मन से जुटा हुआ,
थाण मेँ भूसे के साथ खल,चुरी, तैल,
ओसाणता हुवा,पसीने से ओतप्रोत,
सभी का शरीर मशीन की तरह काम करता हुआ,
सभी पशु मुख्य थाण की ओर टकटकी लगाकर देखते हुवे,
कि कब भुसे,खल,चुरी का मिश्रण उनकी टोकरी मेँ आयेगा,
बारी बारी से मिश्रण उनकी टोकरी मे आता गया,
हर जानवर के पास एक सदस्य गले की रस्सी पकड़ कर गला सहलाता हुवा,
डँडे की ठक ठक करता हुवा,
शीघ्र बबलू पिछले पैरोँ मेँ रस्सी की गाँठ लगाता हुवा,
थनोँ से दूध बरतन मेँ निकालता हुवा,
फिर बड़े बरतन मेँ इसको डालता हुवा,गाय के दूध का अलग बरतन,
भेँस के दूध का अलग बरतन का ध्यान रखता हुवा,
बबलू अपने परिवार के साथ अलग अलग दूध की कैनोँ मेँ दूध माप कर भरता हुवा,
बाकी दूध बड़े बड़े चरोँ मेँ भर कर दूध की मोटर सायकल पर
लाद कर गाँव की गडार से निकल कर मेन रोड़ पर आकर शहर की
कालौनीयोँ के मकानोँ मेँ बधीँ बधाँई दूध की बँदी पर दूध बाँटता हुवा,कुछ से ताने ,
कुछ से शिकायत सुनता हुवा
अरे! कल दूध मेँ पानी था।
भैणजी,आप दूध मेँ मलाई देँखेँ,पानी नही मिलाते हेँ।
बबलू को शहर से वापस आते आते दिन के दो - तीन बज जाते हेँ।
बबलू खाना खाकर वापस शाम की उपरोक्त सद्दश तैयारी मेँ जुट जाता हे।
क्योकि इसी प्रकार शाम का दूध लेकर शहर जाना हेओर देर रात तक अकेले ढाणी लोटना हे।
गर्मी,सर्दी,बरसात सुबह से शाम,बस काम ही काम,काम ही काम,
ओह! बबलू तू लौह पुरूष हे यार.
बबलू,तुझे,तेरी रोज रोज की कड़ी मेहनत को सलाम यार !
विजयकाँत मिश्रा,
164/5,प्रशाति लेन,
सेट्रँल स्कूल रोड़ के पास,कोटा जँ.324002
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