हर वर्ष 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस मनाया जाता है। मातृभाषा होने के साथ-साथ यह देश की ज्यादातर आबादी की बोल-चाल की भाषा भी है। एक अनुमान के अनुसार देश में करीब 65 करोड़ लोग हिन्दी भाषी हैं और विश्व भर में हिन्दी जानने वालों की तादाद 5 करोड़ से अधिक है। ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के आंकड़ों के अनुसार हिन्दी भाषी अखबारों और पत्रिकाओं की प्रसार संख्या सर्वाधिक है। ब्यूरो के एक आकलन के अनुसार जुलाई 2016 से दिसम्बर 2016 तक हिन्दी के समाचार पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या औसतन प्रतिदिन 2,54,17,748 थी जबकि अंग्रेजी की प्रसार संख्या 1,16,84,688 थी। भारत के अलावा विश्व भर के 40 से अधिक देशों में 600 से अधिक विद्यालयों/महाविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई और सिखाई जाती है। हिन्दी सिर्फ भारत में ही नहीं बोली जाती बल्कि विदेशों- गुयाना, सूरीनाम, त्रिनीनाद, फिजी, मॉरिशस, दक्षिण अफ़्रीका और सिंगापुर में भी यह अधिकांश लोगों की बोलचाल का भाषा है। जर्मन के स्कूलों में तो हिन्दी पढ़ाने के लिए विदेश मंत्रालय ने जर्मन सरकार से समझौता किया है और वहाँ पर जर्मन हिन्दी रेडियो सेवा संचालित है।
आज भारत में 200 से अधिक सामुदायिक रेडियो चल रहे हैं जिनमें ज्यादातर हिन्दीभाषी हैं। इनमें स्थानीय भाषाओं/बोलियों का मिश्रण होता है लेकिन पढ़ने-लिखने की भाषा हिन्दी ही है। हरियाणा के रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात को ही लें तो यह शिक्षा के साथ-साथ हिन्दी का प्रसार भी कर रहा है और अब नई तकनीक से लैस रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात मोबाइल ऐप पर कहीं भी कभी भी इंटरनेट पर सुना जा सकता है। ऐसा सिर्फ एक रेडियो या टीवी चैनल या अखबार ने किया हो, ऐसा नहीं है। आज ज्यादातर टीवी चैनल, अखबार और रेडियो के मोबाइल ऐप उपलब्ध हैं जिन्हें आसानी से इंटरनेट के जरिए कहीं भी और कभी भी देखा जा सकता है और इससे हिन्दी विकसित भारत की सर्वव्यापक भाषा बनती जा रही है। हिन्दी का बाजार आज विदेशी अभिनेत्रियों को भी हिन्दी सीखने पर विवश कर रहा है और हिन्दी की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज हिन्दी फिल्में 50 से अधिक देशों में देखी जाती हैं। हिन्दी में विज्ञापन काफी लोकप्रिय हुए हैं। 'यह दिल मांगे मोर', 'ठंडा मतलब कोकाकोला', ऐसे हजारों विज्ञापनों को काफी लोकप्रियता मिली है। पहले यह धारणा थी कि हिन्दी लेखकों को पैसा नहीं मिलता लेकिन अब यह धारणा भी टूट रही है। हाल के वर्षों में हिन्दी में बेहतर किताबें प्रकाशित हुई हैं और नए लेखक अच्छा पैसा कमा रहे हैं।
विश्व के 180 देशों में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। यही कारण है कि विदेशों में रह रहे भारतीय अपने बच्चों को हिन्दी अन्य भाषाओं के साथ हिन्दी भी पढ़ा रहे हैं। मॉरीशस में हिंदी भाषा का इतिहास लगभग डेढ़ सौ वर्षों का है। स्वतंत्रतापूर्व काल में यह भाषा बीज रूप में थी। भोजपुरी बोली के माध्यम से हिंदी विकसित भाषा को करने में उनका विशेष योगदान रहा है। खेतों में कड़ी धूप में गूँजने वाले लोक गीतों में, शाम की “संध्या” में, रामायण-गान में, त्योहारों में, हर कही यह भाषा अबाध्य रूप से बढ़ती चली गई। बैठकाओं में हिंदी भाषा का अध्ययन-अध्यापन होने लगा। भारतीय आप्रवासियों ने अपनी भाषा तथा संस्कृति की शिक्षा को ही अपने बच्चों के उद्धार का उचित मार्ग माना।
आज मॉरीशस में शिक्षा, साहित्य, मीडिया आदी क्षेत्रों में हिंदी भाषा का मुख्य स्थान है। शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी भाषा को उचीत स्थान मिला है। प्राथमिक, माध्यमिक तथा विश्वविधालय के स्तर पर हिंदी भाषा एवं साहित्य की पढ़ाई होती है। स्कूलों तथा कॉलेजों में हिंदी से संबंधित शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं ताकि छात्रों के बीच हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार हो सके और वे इसके प्रति अपनी रूचि दिखाएँ। मॉरीशसीय साहित्य में हिंदी में ही सब से अधिक रचनाएँ उपलब्ध हैं। कविता, उपन्यास, कहानी, लधु कथा, निबंध, आलोचना आदि विधाओं में प्रकाशित अनेक रचनाएँ उपलब्ध हैं। कॉलेजों, मॉरीशस विश्वविधालय तथा कुछ भारतीय विश्वविधालयों में मॉरीशसीय रचनाओं का अध्यापन हो रहा है। भारत के बाद मॉरीशस ही वह देश है जहाँ सब से अधिक हिंदी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। मॉरिशस के गणमान्य साहित्यकारों ने ही हिंदी को स्थानीय तथा अंतराष्ट्रीय मंच में सम्मान दिलाया हैं। आज भी रचनाएँ रची जा रही हैं। युवा लेखकों को भी साहित्यिक गतिविधियों एवं प्रतियोगिताओं में भाग लेने तथा साहित्य सृजन करने के अवसर भी दिए जा रहे हैं।
मीडिया के क्षेत्र में भी मॉरीशस में हिंदी भाषा का एक अलग स्थान है। रेडियो से लेकर टीवी तथा इंटरनेट में भी हिंदी का प्रचार-प्रसार ज़ोर-शोर से हो रहा है। एम.बी.सी. के रेडियो तथा टीवी चैनलों में हिंदी समाचार प्रस्तुत किए जाते हैं। हिंदी भाषा के संवर्धन में मॉरीशस की अनेक संस्थाओं की अहम भूमिका रही है। ये संस्थाएँ हिंदी को बढ़ावा देने हेतु अनेक कार्यक्रम आयोजित करती है। कुछ संस्थाओं के नाम इस प्रकार है – हिंदी संगठन, विश्व हिंदी सचिवालय, हिंदी प्रचारिणी सभा, महात्मा गाँधी संस्थान, आर्य सभा मॉरीशस, इन्दिरा गाँधी सांस्कृतिक केंद्र, हिंदी लेखक संध आदि। इन संस्थाओं ने हिंदी भाषा को शैक्षणिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक रूप से प्रचारित किया है। हिंदी संगोष्ठियों तथा अंतराष्ट्रय कार्यक्रमों के आयोजन के साथ ही हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन भी इनके द्वारा होते आए हैं। सुमन, विश्व हिंदी समाचार, विश्व हिंदी पत्रीका, आर्योदय, दर्पण, वसंत, पंकज, भाल-सखा आदि पत्रिकाओं में हिंदी से संबंधित रचनाएँ प्रकाशित की जाती हैं।
मॉरीशस में पिछले डेढ़ सौ वर्षों के अपने इतिहास में जिस प्रकार से हिंदी भाषा ने प्रगति की है उससे यह निश्चित ही है कि मॉरीशस में हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। मेरे मन में सदैव से ही मॉरीशस को केंद्र में रखकर हिन्दी के व्यापक प्रसार में कार्यरत हिन्दी प्रेमियों के प्रोत्साहन और उत्साहबर्द्धन की अभिलाषा रही है। इसलिए जब विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में पिछले 13 जनवरी 2018 को इन्डोनेशिया की राजधानी जकार्ता में परिकल्पना द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव का समापन हो रहा था तो मेरे मुख से अचानक निकाला कि अगली बार मॉरीशस। फिर क्या था तिथि भी निश्चित हो 2 सितंबर 2018 से 7 सितंबर 2018 तक परिकल्पना की टीम मॉरीशस में मनाएगी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव। मुख्य कार्यक्रम 07 सितंबर 2018 को हिन्दी भवन लॉन्ग माउंटेन मॉरीशस में आयोजित होंगे और और इसके आयोजन की ज़िम्मेदारी परिकल्पना के साथ साथ हिन्दी प्रचारिणी सभा की होगी।
इसबार मॉरीशस में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव के सह प्रयोजक हिन्दी प्रचारिणी सभा की अनुशंसा पर परिकल्पना के निर्णायक मंडल (डॉ राम बहादुर मिश्र की अध्यक्षता में गठित) द्वारा मॉरीशस के दस साहित्यकारों, चिट्ठाकारों, पत्रकारों और हिंदी सेवियों का चयन किया गया है, जिन्हें आगामी 7 सितंबर 2018 को अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव मॉरीशस के एक विशेष सत्र में परिकल्पना सम्मान से सम्मानित करेगी परिकल्पना। आगामी 07 सितंबर 2018 को मॉरीशस के हिन्दी प्रचारिणी सभा, लॉन्ग माउंटेन स्थित हिन्दी भवन के सभागार में आयोजित विश्व हिन्दी उत्सव में मॉरीशस के वरिष्ठ कथाकार डॉ. रामदेव धुरंधर को 2018 का 'परिकल्पना शीर्ष कथा सम्मान' देने का निर्णय लिया गया है। इसके अलावा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में अग्रणी मॉरीशस के नौ साहित्यकारों क्रमश: श्री राज हीरामन, श्री इंद्रदेव भोला इंद्रनाथ, श्रीमती कल्पना लालजी, श्री हनुमान दुबे गिरधारी, श्री सूर्यदेव सिबोरत, श्री यन्तुदेव बधु, श्री धनराज शंभु, श्री टहल रामदीन एवं श्री परमेश्वर विहारी को क्रमश: परिकल्पना काव्यभूषण सम्मान, परिकल्पना संस्कृति सम्मान, परिकल्पना काव्य सम्मान, परिकल्पना सृजन सम्मान, परिकल्पना हिन्दी सम्मान, परिकल्पना भाषा सम्मान, परिकल्पना साहित्य सम्मान, परिकल्पना प्रखर सम्मान और परिकल्पना प्रतिभा सम्मान से सम्मानित किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि कथाकार डॉ. रामदेव धुरंधर का चर्चित उपन्यास ‘पथरीला सोना’ छः खंडों में प्रकाशित हुआ है। इस महाकाव्यात्मक उपन्यास में उन्होंने किसानों-मजदूरों के रूप में भारत से मॉरीशस आए अपने पूर्वजों की संघर्षमय जीवन-यात्रा का कारुणिक चित्रण किया है। उन्होंने ‘छोटी मछली बड़ी मछली’, ‘चेहरों का आदमी’, ‘बनते बिगड़ते रिश्ते’, ‘पूछो इस माटी से’ जैसे अन्य शानदार उपन्यास भी लिखे हैं। रामदेव ने “विष–मंथन” तथा “जन्म की एक भूल” जैसे दो कहानी संग्रह भी लिखे हैं। इसके अतिरिक्त उनके अनेक व्यंग्य संग्रह और लघु कथा संग्रह भी प्रकाशित हैं।
वहीं राज हीरामन मॉरीशस के हिन्दी काव्य-साहित्य का एक प्रतिनिधि कवि हैं। उनका जन्म 11 जनवरी 1953 को मॉरीशस के उत्तरप्रान्त में स्थित त्रियोले गांव में हुआ। ढाई साल में उनके पिता का देहान्त हो गया। उनकी मां परिवार के पालन-पोषण के लिए मजदूरी करती थी। राज हीरामन अपने परिवा के दस बच्चों में सबसे छोटे हैं। स्कूली पढाई के बाद उन्होंने भी मजदूरी का काम किया। फिर पुलिस कॉन्स्टेबल बने। दो सालों के बाद वे हिन्दी के अध्यपक बने। 'जनता' हिन्दी के साप्ताहिक समाचार में हिन्दी सीखी तब वे 1976 में 'टाइम्स ऑव इन्डिया' मुंबई में पत्रकारिता का प्रशिक्षण लेने गए। लौटकर स्थानीय मॉरीशस ब्रोडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के रेडियो व टेलिविजन में 22 सालों तक काम किया। 1978 में स्कूल छोडकर वे महात्मा गांधी संस्थान के सृजनात्मक लेखन विभाग से जुडे। बीच में हिन्दी पाठ्य लेखन विभाग में काम किया। उन्होंने माध्यमिक कॉलेज में हिन्दी और हिन्दुत्त्व जैसे विषय पढाए। वे हिन्दी विभाग में भी काम कर चुके हैं।
श्री इंद्रदेव भोला इंद्रनाथ मॉरीशस के वरिष्ठ वहुयायामी साहित्यकार, कवि, कथाकार, निबंधकार, नाटककार, इतिहासकार तथा संपादक के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे मॉरीशस हिन्दी लेखक संघ के मान्य प्रधान तथा महामंत्री भी रह चुके हैं और विद्या भवन के संस्थापक और संचालक भी। पूर्व में वे "बाल सखा" पत्रिका के संपादक भी रह चुके हैं। वे प्रकाश शीर्षक से पाक्षिक रेडियो कार्यक्रम चलाते हैं और इससे पूर्व वे गीत गरिमा शीर्षक से गीत संगीत पर आधारित रेडियो कार्यक्रम के संचालक भी रह चुके हैं। सेवा निवृत्ति से पूर्व वे एक सरकारी स्कूल में उप प्रधान शिक्षक थे। उनकी रचनाएँ भारत, फ़िजी, नार्वे तथा कनाडा के 15 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। ये लगातार हिन्दी, अँग्रेजी, फ्रेंच, भोजपुरी और क्रीओल भाषाओं में लिखते हैं। क्रीओल और भोजपुरी में लिखे इनके कई नाटकों का मंचन हुआ है। इनकी कविताओं का संकलन 'वरदान' 1972 में प्रकाशित हुआ। उनकी कविताओं में प्रवासी भारतीय मज़दूरों की पीड़ा का दर्दनाक इतिहास अंकित है।
इन्द्रदेव भोला ने अपने शोधकार्य, संपादन, एवं लेखन द्वारा मॉरीशस में मॉरीशस तथा विश्व के हिंदी सेवियों का विलक्षण अविस्मरणीय इतिहास रचा हैं। उनकी कर्मठता की गूंज उनकी रचनाओं में गुंजित हो रही है। विदेशों में हिंदी तथा विश्व में हिंदी एवं आर्य समाज उनकी ऐसी महत्वपूर्ण शोधपरक पुस्तकें हैं जिनमें विश्व में हिंदी के विकास का इतिहास दर्ज है।
श्रीमती कल्पना लालजी पिछले पच्चीस वर्षों से माध्यमिक विद्यालयों में अध्यापन कार्य से जुड़ी हैं। इनका रुझान कविता लेखन की ओर अधिक है। ये इंद्रधनुष सांस्कृतिक परिषद, हिंदी लेखक संघ, हिंदी संगठन तथा हिंदी साहित्य अकादमी की एक कर्मठ सदस्या हैं। इनकी कविताएँ, कहानियाँ एवं लेख 'पंकज', 'इंद्रधनुष', 'वसंत', 'रिमझिम' आदि पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। 'अमर गीत' इनकी पहली पुस्तक है। (यह पुस्तक 'पॉल और विर्जिनी' की लोकप्रिय कथा पर आधारित है, जिसे फ़्रांसीसी लेखक बेरनादें दे सेंपियर ने सन् 1789 में मॉरीशस की पृष्ठभूमि पर लिखा था। दूसरी 'सर शिवसागर रामगुलाम' देश के राष्ट्रपिता को इनकी श्रद्धांजलि है। 'खट्टी मीठी मुस्कानें' इनकी तीसरी पुस्तक है जो बच्चों को ध्यान में रखकर लिखी गई है। इन्होने अनेकानेक सम्मेलनों/कार्यशालाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
वहीं हनुमान दुबे गिरधारी मॉरीशस के सर्वोच्च हिंदी प्रचारकों में गिने जाते हैं। ये देश के हिंदी प्रचारक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं तथा सक्रिय रूप से हिंदी-संबंधी गतिविधियों में अपनी भूमिका निभाते रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इन्होने प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर हिंदी की पढ़ाई नहीं की, परन्तु हिंदी के प्रति इनकी निष्ठा ने इन्हें हिंदी प्रचारिणी सभा, लोंग माउंटेन में हिंदी सिखने पर विवश कर दिया। हिंदी के प्रति इनकी प्रगाढ़ लगन देखकर सभा ने इन्हें हिंदी पढ़ाने हेतु नियुक्त किया गया। ये धार्मिक माध्यमों से भी हिंदी का प्रचार करते हैं।
सरकारी हिंदी निरीक्षक (प्राथमिक स्कूल) से सेवानिवृत श्री सूर्यदेव सिबोरत 1971 से 2001 तक फ्रीलांस रेडियो/टी.वी. प्रस्तुतकर्ता एम.बी.सी. मॉरीशस रहे, साथ ही 1988 में प्रोड्यूसर रेडियो/टी.वी. एम.बी.सी. मॉरीशस के रूप में कार्य किया। उनके निबंध, कविताएँ व कहानियाँ धर्मयुग, दिनमान (भारत) तथा अनुराग, बसंत और दर्पण (मॉरीशस) आदि पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं। उन्होने अनेकानेक सम्मेलनों/कार्यशालाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया है। एकांकी, शीशा, 1981 में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
वहीं श्री यन्तुदेव बधु सन् 2013 से हिंदी प्रचारिणी सभा, मॉरीशस के प्रधान हैं। साथ ही नवंबर 2013 से डिप्टी हेड टीचर के रूप में कार्यरत हैं। हिंदी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित न्यूज़लेटर में संपादन कार्य में संलग्न हैं। सन् 1989 से वे हिंदी प्रचारिणी सभा, मॉरीशस के सदस्य हैं। पूर्व में वे सन् 1976 से नवंबर 2013 तक हिंदी अध्यापक के रूप में अपनी सेवाएँ दी हैं। 1999 से लगातार अनेकानेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित होते रहे हैं। उनकी बस चली गई (कहानी संग्रह) प्रकाशित है। उन्होने अनेकानेक सम्मेलनों/कार्यशालाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया है साथ ही विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन 2014 में उनकी सक्रिय प्रतिभागिता रही है।
वहीं धनराज शंभु मॉरीशस के हिन्दी प्रचारिणी सभा के महासचिव हैं। उन्होने 1977 में प्रशिक्षण महाविद्यालय से प्रशिक्षण प्राप्त कर हिंदी अध्यापक बने और अब तक हिंदी अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। उनकी रचनाएं: 1976 में "तरंगिनी" कविताएं, 1996 में "एहसास" कविताओं और गज़लों का संग्रह अन्य पत्र-पत्रिकाओं , अखबरों आदि में रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं जिन में बसंत, आक्रोश, पंकज , रिमझिम, प्रभात आदि प्रमुख हैं।
श्री टहल रामदीन हिन्दी प्रचारिणी सभा मॉरीशस के कोषाध्यक्ष और हिन्दी के प्रचार-प्रसार के अंतर्गत आयोजित परीक्षाओं के संचालक और सुगम हिन्दी व्याकरण के लेखक हैं। वहीं श्री परमेश्वर बिहारी छः सालों तक हिंदी प्रचारिणी सभा के कार्य कारिणी समिति के सदस्य, दो सालों तक श्री नीलकण्ठनाथ शिवालय सभा के मंत्री और दस सालों तक मोंताई लोंग ग्राम के सहकारी समिति के सदस्य रह चुके हैं। उनकी सरकारी हिंदी अध्यापक के पद पर नियुक्ति हुयी थी। प्राथमिक पाठशालाओं में कार्यरत रहने के कुछ साल बाद 1994 में उनकी पदोन्नति हुई और हिंदी भाषा के उप-मुख्य अध्यापक नियुक्त हुए। दस सालों तक उप-मुख्य अध्यापक के रूप में काम करने के बाद 15 मार्च 2004 से अवकाश प्राप्त हैं। उनकी दो किताबें क्रमश: 'अभिशाप', 1972 में तथा 'गुरु दक्षिणा' (कविता संग्रह), 2004 में प्रकाशित है।
इस अवसर पर भारत के पच्चीस साहित्यकारों का भी सारस्वत सम्मान इस मंच से होगा, जिसमें प्रमुख हैं डॉ मिथिलेश दीक्षित और डॉ प्रतिमा वर्मा जिन्हें क्रमश: परिकल्पना शीर्ष साहित्य सम्मान और परिकल्पना शीर्ष नाट्य कला सम्मान के लिए चयनित किया गया है। इसके अलावा श्री सागर त्रिपाठी, श्री जगदीश पीयूष, डॉ राम बहादुर मिश्र, डॉ अदया प्रसाद सिंह "प्रदीप", डॉ ओम प्रकाश शुक्ल "अमिय", डॉ अरुण कुमार शास्त्री, डॉ मीनाक्षी सक्सेना "कहकशा", डॉ प्रभा गुप्ता, डॉ सुषमा सिंह, डॉ पूनम तिवारी, कुसुम वर्मा, श्री बिमल बहुगुणा, श्री जय कृष्ण पैन्यूली, सत्या सिंह "हुमैन", डॉ अनीता श्रीवास्तव, डॉ. अर्चना श्रीवास्तव, श्री दीनानाथ द्विवेदी "रंग", डॉ शिव पूजन शुक्ल, डॉ उमेश पटेल श्रीश, सुश्री अंकिता सिंह एवं श्री सचिंद्रनाथ मिश्र आदि, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। सभी सममानितों को परिकल्पना परिवार की ओर से कोटिश: बधाइयाँ।
साथ ही इस अवसर पर परिकल्पना समय का सितंबर 2018 अंक का भी लोकार्पण होगा जो मॉरीशस में हिन्दी भाषा और संस्कृति के विकास और विस्तार पर केन्द्रित है। इसके अतिथि संपादक हैं डॉ. राम बहादुर मिश्र।
इसके अलावा त्रैमासिक पत्रिका ‘‘प्रस्ताव‘‘ के हाइकू विशेषांक जिसकी अतिथि संपादक हैं डॉ. मिथिलेश दीक्षित, मेरा स्वयं का चौथा उपन्यास लखनऊवा कक्का, डॉ. मीनाक्षी सक्सेना ‘‘कहकशा‘‘ की कविताओं का संग्रह एहसास के जूगनू, डॉ मिथिलेश दीक्षित एवं रवीन्द्र प्रभात की संपादित पुस्तक हिन्दी के विविध आयाम, डॉ रमाकांत कुशवाहा 'कुशाग्र" की कविताओं का संग्रह ढूँढे किसको बंजारा तथा डॉ उमेश पटेल श्रीश की कविताओं का संग्रह दस्तक अभी जारी है आदि पुस्तकें लोकार्पित होंगी।
साथ ही इस अवसर पर श्री जय कृष्ण पैन्यूली ‘‘माटी‘‘ के द्वारा मिट्ठी से बनाई गयी कलाकृतियाँ, श्रीमती कुसुम वर्मा के रेखाचित्र और पेंटिंग्स तथा डॉ. अर्चना श्रीवास्तव के विचारों पर आधारित कला प्रस्तुति की प्रदर्शनियाँ भी लगाई जाएंगी।
इसमें चार परिचर्चा सत्र भी होंगे, प्रथम परिचर्चा सत्र का विषय होगा "हिन्दी के वैश्विक परिदृश्य के निर्माण में साहित्यकारों की भूमिका", द्वितीय परिचर्चा सत्र का विषय होगा "हिन्दी के वैश्विक प्रसार में महिलाओं की भूमिका", तृतीय परिचर्चा सत्र का विषय होगा "मॉरीशस में अवधी तथा भोजपुरी बोलियों के प्रभाव में कमी" तथा चतुर्थ सत्र होगा "हिन्दी में हाइकु की दिशा और दृष्टि"।
प्रसिद्ध रंगकर्मी, टेली धारावाहिक एवं हिन्दी फिल्म अभिनेत्री डॉ. प्रतिमा वर्मा की नाट्य प्रस्तुति "अकेलापन" तथा हॉलीवूड, वॉलीवूड और उत्तरांचली फिल्मों के अभिनेता श्री बिमल बहुगुणा द्वारा पंडवानी की तरह उत्तरांचली काव्य कवितावली की प्रस्तुति भावभंगिमा के साथ की जाएगी। साथ ही इस अवसर पर कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया है, कवियों में प्रमुख हैं- श्री सागर त्रिपाठी, श्री दीनानाथ द्विवेदी रंग, डॉ. मीनाक्षी सक्सेना ‘कहकशाँ‘, श्री जगदीश पीयूष, श्री रवीन्द्र प्रभात, डॉ. ओम प्रकाश शुक्ल ‘अमिय‘, डॉ. राम बहादुर मिश्र, श्री जय कृष्ण ‘पैन्यूली‘, डॉ. शिव पूजन शुक्ल, सुश्री सत्या सिंह, डॉ. अर्चना श्रीवास्तव, सुश्री कुसुम वर्मा, डॉ. सुषमा सिंह, डॉ. प्रतिमा वर्मा, श्री अदया प्रसाद सिंह प्रदीप एवं डॉ. रमाकांत कुशवाहा ‘कुशाग्र‘ (सभी भारत से) तथा श्री राज हीरामन, श्री धनराज शंभू, श्रीमती कल्पना लालजी, श्री हनुमान दुबे गिरधारी, श्री सूर्यदेव सिबोरत आदि (सभी मॉरीशस से)।
इसबार का अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव अपने आप में एतिहासिक, अद्वितीय और अविस्मरणीय होगा ऐसी आशा है।
जय हिन्द, जय हिन्दी ।
आपका-
रवीन्द्र प्रभात
जय हिन्द, जय हिन्दी ।
आपका-
रवीन्द्र प्रभात
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