पुस्तक समीक्षा
सैकड़ो सालों की काव्य परम्परा में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने वाला अगर कोई छन्द है तो निःसंदेह वह दोहा है। दोहे में 13......11 मात्राओं की दो लय बद्ध सम तुकांत पंक्तियों में अपनी बात कहीं जाती है, जिसे पढ़ते ही पाठक अद्भुत रस का अनुभव करता है और स्वतः मुख से वाहह निकल पड़ता है, बहुत से विषयों पर दोहें लिखे जा चुके है और लिखे भी जाएंगे । परन्तु किसी एक विषय पर दोहा लेखन विचारणीय है यह कारनामा किया है रायपुर(छ.ग.) के आदरणीय राजेश जैन राही जी ने पिता पर प्रथम संस्करण में 201 और द्वितीय संस्करण में 365 दोहें लिखने का कीर्तिमान स्थापित किया।
पिता शब्द सुनते ही दिल दिमाग में पिता की छवि बन जाती है। पिता का त्याग ,समर्पण, प्यार, दुलार, डांट, मार,समझाना, प्रोत्साहित करना ,जीवन के हर मोड़ पर डटे रहना और न जाने कितनी बातें ,यादें दिलों - दिमाग में हलचल करने लगती है.......
पिता का होना धूप में छाँव देता है वट वृक्ष की तरह ऐसे ही अपने अनुभवों और प्यार को राजेश जैन राही जी ने दोहों के रूप में ढालने का सफल प्रयास किया है.....और नाम रखा पिता छाँव वट वृक्ष की पिता छाँव वट वृक्ष कीष् एक दोहा संग्रह है । यह पिता केन्द्रित 365 दोहों का अनूठा संग्रह है । किसी एक विषय पर इतने दोहे लिखना आसान नहीं है । इस प्रकार के लेखन में दोहराव का संकट भी बना रहता है ।आदरणीय राही जी इससे बच नहीं पाए हैं ।किंतु पिता का कोई पक्ष छूटा हो ऐसा भी दिखाई नहीं देता । एक खास बात यह है की पिता पर आधारित प्रथम पुस्तक है जिसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद हमारे राह की बाधाओं को कैसे दूर करता है राही जी इसी अनुभव को दोहे कहते है कि
नमन करूँ मैं तात को,हाथ जोड़कर आज।
जिनके आशीर्वाद से ,बनते सारे काज।।
बाबूजी का आशीर्वाद ही राह की बाधाएं दूर कर कार्य पूर्णता में मदद करता है ।
पिता द्वारा दिए संस्कार संतान की उपलब्धियों के रूप में फलित होते नजर आते है,और इनकी सीख जीवन में हर राह पर किसी न किसी रूप में हमारी मदद करती है .....
सपनों को मिलने लगा, मनचाहा विस्तार।
बाबूजी के पाठ का, गहरा था आधार।।
बच्चा हो या युवा वर्ग सभी चाहते है की पिता का मार्गदर्शन,सुझाव जीवन के हर मोड़ पर मिलता रहें...
राही जी इन्हीं भावों के साथ निवेदन करते है कि.....
पिता छाँव वट वृक्ष की, धूप न लगने पाय।
खाद डालकर प्यार की, रखना सदा बचाय।।
मैं माटी कच्ची नयी, बापू बने कुम्हार।
ज्ञान चाक में ढालकर, मुझको दिया सुधार।।
खाकर थप्पड़ गाल पर, होना नहीं अधिर ।
बना रहे तुमको पिता, धीर वीर गंभीर।।
पिता की डाँट और मार हमें जीवन हमें जीवन में आने वाली चुनौतियों के लिए मजबूत करती हैं। एक पिता हर हाल में बच्चों का साथ देते है जब कोई भी साथ हो या न हो , उचित मार्गदर्शक बन बच्चों के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करते है....
राही जी कहते है कि.......
हाथों में हरदम रहे, बाबू जी के हाथ।
छोड़ा सब ने साथ पर, बाबू जी थे साथ ।।
बच्चों को देनी मुझे, अच्छी एक सलाह।
बापू पर आश्रित नहीं, खोजो अपनी राह।।
अच्छे सुन्दर से इस रिश्ते में खट्टी ,मिठ्ठी के साथ कुछ कड़वी यादे भी रहती है.... ये वास्तविकता है कि वर्तमान में बच्चें माँ बाप को बोझ समझ वृद्धा- आश्रम में छोड़ देते हैं या खुद सपत्नीक अलग रहने लगते ,ऐसी घटनाएं किन्हीं ने देखी होंगी और देखी नहीं तो अखबार आदि के माध्यम से पढ़ी सुनी जरूर होगी.... राही जी के शब्दों मे देखें इसे...
रिश्तों पर भारी हुआ, पैसा पद अधिकार।
पुत्र चला परदेश को, पिता यहाँ बीमार।।
ध्यान रखा परिवार का,किया नहीं आराम।
बच्चों ने दागे मगर ,बापू पे इल्जाम।।
सुलह सफाई हो गई, सुलझा आज विवाद।
आश्रम में रहने लगे, बाबू जी आजाद।।
तीखे-तीखे बोल हैं,बेटा है या तीर।।
घायल दिल माँ बाप का, लाइलाज है पीर।।
वृद्ध मात पिता को छोड़ बच्चें पैसे कमाने विदेश चले जाते है ,मात पिता लाचार असहाय हो अंतिम श्वास तक बच्चों का इंतजार ही करते रहते हैं । बच्चों के बड़े होने के साथ ही उनकी इच्छाएं, ख्वाहिशे और जरूरते बढ़ने लगती है .... कभी उनकी पढ़ाई , शोक या स्टेटस मेंटेन करने का खर्च , इक पिता ये पूरा करने में एड़ी चोटी का जोर लगा देता है पर, बच्चें इतना करने पर भी उन्हें नादान कहने से भी नही चुकते.....
बेटों के कारण बिका , खेत सहीत खलिहान।
नालायक फिर भी कहें ,बापू हैं नादान।।
बापू ने बाँटी सदा, खुशियां औ मुस्कान।
बच्चों ने वापस किया ,आँसू भरा जहान ।।
बेटे की इच्छा बहुत ,जाए पढ़े विदेश।
बापू ने गिरवी रखीं , चीजें सभी विशेष।।
इक पिता खुद को असहाय महसूस करता है जब पिता पुत्र को सुधारने की कोशिश करते- करते हार जाता है......
लाख करी कोशिश मगर, बेटा बिगड़ा जाय ।
नये दौर में हो गये, बाबूजी असहाय ।।
मुखड़े की झुर्री कहे, देखा है संसार।
बच्चों के आगे मगर, बाबू जी लाचार।।
समाज में बेटियों और बेटों में हो रहे भेदभाव ,लड़कियों की संख्या में कमी व दहेज जैसी समस्या के लिए दोहों में सुन्दर संदेश दिया है..कवि ने...
बहू चाहिए आपको ,बेटी रखो सहेज।
भ्रूण बचाना हो अगर, रोको तात दहेज।।
बहुओं को भी दे रहे ,बेटी जैसा मान।
बाबूजी चाहें सदा, कुनबे का उत्थान।।
बापू को मालूम थे, बेटों के सब हाल।
चलो बुढ़ापा कट गया, बेटी करे निहाल।।
बेटे सारे दूर हैं, बाप किसे है याद।
बेटी का दिल मोम सा , रोज करे संवाद।।
पिता के छोड़ जाने का दुख या उनके न रहने के अहसास मात्र से होने वाली तकलीफ को कवि के नजरिये से इन दोहों में देखिए
बाबूजी जाना नहीं, छोड़ बीच मझधार।
रौनक घर की आपसे, रूह आप परिवार।।
बाबूजी जब से गये ,हुआ सभी को ज्ञान।।
फूलों से खुशबू गयी, घर भी हुआ मकान।।
आदरणीय राजेश जैन राही जी की हृदय से आभारी हूँ की उन्होंने मुझे इतनी बेश कीमती किताब पढ़ने का सुअवसर दिया। उल्लेखीत दोहों ने खुद- ब -खुद किताब के बारे में सब कुछ बोल दिया है। मैं राही जी को सार्थक सृजन व गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में किताब का नाम दर्ज होने की बधाई व ढेर सारी शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ।
समीक्षक: सोनिया वर्मा, रायपुर
विधाः- दोहा
रचनाकारः- राजेश जैन राही
निवासी:- आई-1, राजीव नगर, रायपुर मो. नं. 9425286241
संस्करणः- द्वितीय
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