मुख्य अतिथि प्रो त्रिपाठी में कहा कि लोकहित की कामना से संपृक्त साहित्य ही असल साहित्य है। जिसमें अवधी साहित्य अपने आप में अनूठा है। पचाँगुर की सभी गज़लें माटी से जुड़ी हुई हैं। प्रदीप महाजन के अवधी बारहमाशा पर कहा कि वर्ष पर्यन्त बदलते मौसम का प्रकृति और मनोदशा पर पड़ने वाले प्रभाव का बहुत सुन्दर वर्णन किया गया है।
लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए डॉ श्याम सुन्दर दीक्षित ने कहा कि काव्य रचनाओं के साथ अवधी का गद्य साहित्य कहानियाँ और यात्रा वृतांत अवधी को समृद्ध बना रहे हैं तो डॉ विनयदास ने कहा कि अवधी का साहित्य हिंदी के सामानांतर रचा जा रहा है। खड़ी बोली की तरह समस्त विधाओं में साहित्य सृजन ने अवधी को ऊँचाई प्रदान की है।
साहित्यकार प्रदीप सारंग के संचालन में सम्पन्न समारोह में डॉ अम्बरीष अम्बर, सतीश श्याम, डॉ कुमार पुष्पेंद्र, नागेन्द्र प्रताप सिंह, अंकिता शुक्ला, लता श्रीवास्तव, किरण भारद्वाज, शिव कुमार व्यास, विनय शुक्ला, ओपी वर्मा ओम प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। अंत में संयोजक डॉ राम बहादुर मिश्रा ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया।
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