चुनाव जीत लेना और चुनाव जीतने हेतु किये गए व्यवस्थित प्रयास, दोनों अलग-अलग बातें हैं। किसी भी चुनाव में प्रत्याशियों का लक्ष्य किसी तरह जीत को अपने नाम कर लेना होता है किन्तु जीत के लिए किये जाने वाले जरुरी काम नजरन्दाज करने की पनपती बीमारी चिंतनीय है। बात 1990 के आसपास की है जब हम लोग मतदान अभिकर्ता बना करते थे तो होने वाले मतदान अभिकर्ताओं को एक जगह बैठाकर बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता था। इसी प्रकार मतगणना अभिकर्ताओं को भी।

इस बार के लोकसभा चुनाव में मतदान अभिकर्ताओं को सीधे अथवा बूथ प्रभारियों के माध्यम से कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। बूथ प्रभारी सम्मलेन के नाम पर सिर्फ भाषण पिलाये गए हैं। जबकि पहले कभी प्रशिक्षण भी कराया जाता था और समापन में भाषण भी हुआ करते थे। यह किसी एक राजनैतिक दल की बात नहीं है सब के सब दलों में कमोबेस यही स्थिति है। स्वीप के अंतर्गत जागरूकता अभियान में कहीं एक या दो जगह वोटिंग की पूरी प्रक्रिया का नाटकीय मंचन किया गया, बूथ बनाया गया, पीठसीन अधिकारी बनाये गए, मतदाताओं से आईडी देखी गई और मतदान कराया गया। इस तरह बहुत से छात्र छात्राओं ने फेक मतदान किया है। इसे प्रशिक्षण का ही एक प्रकार माना जाना चाहिए। जबकि यह जागरूकता के लिए अपनाया गया छात्र- छात्राओं का कार्यक्रम मात्र था। जैसे-जैसे लोग हाईटेक होते जा रहे हैं उनमें एक वहम पनपता जा रहा है कि वे बहुत काबिल होते गए हैं जबकि वास्तविकता बिलकुल भिन्न है। कई प्रत्याशियों तक को 17-सी प्रारूप की जानकारी नहीं है। उनसे जब सवाल पूछे गए तो कहा कि यह नाम पहली बार सुन रहे हैं। जब हमारे प्रत्याशी ही ऐसे होंगे तो बाकी नजारा क्या होगा, अनुमान लगाना कठिन नहीं है।

आखिर यह 17-सी प्रारूप है क्या? चुनाव आयोग द्वारा किसी भी चुनाव की अधिकृत घोषणा होने के बाद से चुनाव समापन तक अनेक प्रारूप भरे जाते हैं अनेक घोषणाएं व शपथ-प्रारूप, भरे-भराये जाते हैं। इन सभी प्रारूप को चुनाव प्रक्रिया में जरूरत के क्रम से निर्धारित करते हुए क्रमांक दिया गया है। इन्हीं में एक प्रारूप है 17-सी। यह प्रारूप मतदान पूर्ण होने के पश्चात पीठसीन अधिकारी द्वारा भरा जाता है। इसमें मतदान केंद्र पर कुल मतों की संख्या, कुल मतदान कितना हुआ, कितने पुरुष कितनी महिलाओं ने मतदान किया जैसे आंकड़े अंकित होते हैं। विशेष यह है कि ये प्रारूप कई प्रतियों में भरकर विभिन्न दलों के मतदान-अभिकर्ताओं को प्राप्त कराया जाता है।  किन्तु प्रायः पीठसीन अधिकारी यह कहकर बच जाया करते हैं कि अभिकर्ता गण अंतिम समय तक नहीं रुकते हैं। दूसरी विशेष बात यह है कि मतदान-)अभिकर्ता गण वास्तव में प्रारूप 17-सी की माँग नहीं करते हैं। और इससे भी ज्यादा विशेष यह है कि मतदान अभिकर्ताओं को प्रारूप 17-सी की जानकारी ही नहीं होती है।

लोक सभा चुनाव 2024 की सच्चाई यह है कि मतदान अभिकर्ता तो अभिकर्ता हैं कई प्रत्याशियों तक को इस प्रारूप की जानकारी यानी इसकी उपयोगिता की समझ नहीं है। बाराबंकी में एक भी प्रत्याशी नहीं, जिसने अपने मतदान-अभिकर्ताओं के माध्यम से प्रारूप 17-सी मँगवाया हो। न ही मतदान-अभिकर्ताओं को किसी तरह का प्रशिक्षण दिया गया और न ही इन्होंने प्रारूप 17-सी प्राप्त किया। जिन मतदान अभिकर्ताओं को स्वयं से जानकारी थी अथवा जो अनेक बार मतदान अभिकर्ता बन चुके थे उन्होने पीठसीन अधिकारी से प्रारूप 17-सी की माँग करके प्राप्त किया। बाराबंकी के लोकसभा चुनाव 2024 में मुख्य रूप से दो दलों इण्डिया गठबंधन यानी कांग्रेस और सत्ताधारी दल एनडीए यानी भाजपा के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा था। यदि तीसरे दल की बात की जाए तो वह होगी बसपा। मजेदार यह है बाराबंकी में कोई भी दल अथवा प्रत्याशी, प्रारूप 17-सी संग्रह करने में सफल नहीं रहा है। दूसरे शब्दों में इस प्रारूप को संग्रह कराने हेतु गंभीर नहीं रहे हैं। इण्डिया गठबंधन प्रत्याशी भी लगभग आधे बूथों से ही प्रारूप 17-सी संग्रह कर पाए हैं। कभी भी सत्ताधारी दल को प्रारूप 17-सी की जरूरत ही नहीं होती है क्युँकि जिला प्रशासन प्रायः सभी आँकड़े बड़ी सहजता से उपलब्ध करा ही दिया करता है। इस प्रारूप की सबसे ज्यादा उपयोगिता विपक्ष के लिए ही होती है। कितना गंभीर है कि विपक्ष की लापरवाही उजागर हो रही है।  

कुछ लोग अपनी मजबूती से जंग जीतते हैं तो कुछ लोग विपक्ष की कमजोरी और लापरवाही से। देश के समस्त राजनैतिज्ञ-जनों के लिए मेरी राय है कि किसानों से कुछ सूत्र सीख लेने चाहिए। किसान जानते हैं कि जितना धन और परिश्रम फसल उगाने में लगाना होता है उतना ही, तैयार हरी-भरी फसल को बीमारियों तथा कीट-पतंगों से बचाना होता है। यानी जितना ध्यान फसल उगाने में, उतना ही ध्यान फसल बचाने में। लक्ष्य अच्छी फसल उगाना ही नहीं बल्कि भंडार तक भरपूर उत्पादन को पहुँचाना और वहाँ भी सुरक्षित रखना होता है।

 इस प्रारूप 17-सी की उपयोगिता और प्रासंगिकता तब और भी बढ़ जाती है जब चौथे चरण तक के प्रत्येक चुनाव में विपक्ष ने चुनाव-आयोग पर ही सवाल उठा दिया है और इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खट-खटाया है कि कुल मतदान की संख्या देरी से जारी किये जाने के कारण अपर्याप्त और संदिग्ध प्रतीत होते हैं? न्यायलय का निर्णय जो भी हो किन्तु विपक्ष द्वारा प्रारूप 17-सी कि अनदेखी जैसी लापरवाही स्वस्थ लोकतंत्र के लिए न सिर्फ घातक है बल्कि चिंतनीय भी है।

-प्रदीप सारंग 

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