समीक्षा
वरिष्ठ साहित्यकार Pramod Tambat जी की नवीनतम व्यंग्य संग्रह " लो बिक गया ज़मीर" प्रकाशित हो चुकी है...इस पुस्तक की भूमिका प्रसिद्ध व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी जी ने लिखी है..."प्रमोद तांबट की वैचारिक दृष्टि बेहद स्पष्ट है। और यह दृष्टि उनमें आई है उस जीवन से जो उन्होंने जिया, भुगता, बरता और विसंगतियों से
लड़ते हुए समझा। वे भोपाल गैस काण्ड के पीड़ितों के लिये लड़े हैं, जनवादी नाटड्ढ मंच के एक एक्टिविस्ट सदस्य जैसे रहे हैं, सालों तक नुक्कड़ नाटक और पारंपरिक थियेटर में नाटड्ढ लेऽन, अभिनय और निर्देशन भी करते रहे हैं। जीवन के बड़े रंग देखें हैं उन्होंने। उनकी रचनाएँ हाथी दाँत की मीनार पर बैठकर लिखी गई मौज मजे की रचनायें नहीं हैं। बहुत झेला है जीवन में उन्होंने और हर संघर्ष में तपकर कुंदन हुई है उनकी कलम।
वे कैंसर से लड़कर भी विजेता निकले। मौत को इतने करीब देऽकर भी वे डरे नहीं। जीवन की क्षणभंगुरता जानकर वैराग्य भी नहीं जागा बल्कि वे जीवन से और शिद्दत और ईमानदारी से प्यार करने लगे। जो किया, जो करते रहे, जहाँ जैसा रहे, वे लिऽते रहे, छपते रहे, ढेरों व्यंग्य लिखे उन्होंने और लिऽकर भूल भी गये। कभी कोई व्यंग्य संग्रह निकालने की नहीं सोची। कभी कैरियरिस्टिक व्यंग्यकार नहीं बने। व्यंग्य की अराजक सी बन चली
दुनिया में जहाँ लोगों के सौ-सौ व्यंग्य संग्रह निकल रहे हैं, उस दुनिया में इस वरिष्ठ व्यंग्यकार का यह बस दूसरा ही संग्रह है, यह बात एक साथ आश्चर्य में डालती है और आश्वस्त भी करती है।"
-ज्ञान चतुर्वेदी
आप इस पुस्तक को न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन (8750688053) से मंगाया जा सकता है.. जल्द ही यह पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध होगी..
धन्यवाद रविन्द्र प्रभात जी।
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