भारत के मनीषी साहित्यकार 

 


- रामबाबू नीरव

संस्कृत साहित्य के इतिहास में महाकवि भास की विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है. इन्हें रहस्यों के अंधेरे में खोया हुआ कवि माना गया है. काफी ढूंढने पर इनकी  तस्वीर तो मिली है, परंतु इनकी व्यक्तिगत कथा नहीं मिली. हाँ गुप्त काल के संस्कृत के महान साहित्यकार महाकवि कालिदास ने अपने एक नाटक में महाकवि भास का उल्लेख किया है, परंतु उन्होंने भी उनके काल का सही सही आकलन नहीं किया. विद्वानों द्वारा अनुमान यही लगाया जा रहा है कि चूंकि कालिदास गुप्त काल यानि चौथी से पांचवी शताब्दी में हुए थे, इसलिए कवि भास का काल तीसरी और चौथी शताब्दी के बीच का माना जा सकता है. उस समय भारत में कुषाण राजवंश का साम्राज्य था. सन् 1912 तक महाकवि भास की एक मात्र नाट्य कृति *स्वप्न वासवदत्ता* ही रूपक के रूप में उपलब्ध थी. पहले नाटक को रूपक कहा जाता था. जिस का अर्थ था - ऐसा काव्य या साहित्यिक कृति जिसे अभिनय के द्वारा रंगमंच पर प्रदर्शित किया जा सके.  रूपक के दस भेदों में से नाटक प्रथम भेद है. अन्य भेदों में - भाण, व्यायोग. सभवकार, डिम, ईहामृग, अंक, वीथी तथा प्रहसन माना जाता है. महाकवि भास की उपलब्ध कृति स्वप्न वासवदत्ता को रूपक के सभी भेदों का मिलाजुला स्वरूप भी माना गया है. यानि इसमें वे सभी तत्व मौजूद हैं जो एक सफल नाटक में होने चाहिए.

 सन् 1912 ई० में त्रिवेंद्रम (केरल) के संस्कृत के महापंडित टी. गणपति शास्त्री को एक पुस्तकालय में 12 पुस्तकों की अति प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ मिली. उन पाण्डुलिपियों में से किसी पर भी लेखक का नाम नहीं था. हाँ एक जगह "स्वप्न वासवदत्ताम्" लिखा हुआ था. चूंकि "स्वप्न वासवदत्ताम् " महाकवि भास की रचना है इस आधार पर टी. गणपति शास्त्री ने इन सभी पुस्तकों को भास की ही पुस्तकें मान ली. गणपति शास्त्री ने दूसरा तर्क यह दिया कि चूंकि इन सभी पाण्डुलिपियों की भाषा शैली महाकवि भास की पूर्व से ज्ञात रूपक "स्वप्न वासवदत्ता" से हूबहू मिलती जुलती है, इसलिए इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं है कि ये सभी पुस्तकें महाकवि भास द्वारा ही लिखी गयी है. टी. गणपति शास्त्री (1860-1926) संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान के साथ साथ खोजी विद्वान भी थे. वे त्रिवेंद्रम संस्कृत सेरिज के संपादक तथा त्रिवेंद्रम स्थित संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य भी थे. उन्होंने महाकवि भास तथा उनके साहित्य पर काफी शोधकार्य किया और अपने खर्च पर भास की सभी पुस्तकों का प्रकाशन करवाया. इस तरह स्वप्न वासवदत्ता को मिलाकर महाकवि भास की कुल 13 पुस्तकें प्रकाश में आयीं. उन पुस्तकों के नाम इस प्रकार हैं - दूतघतोत्कच, कर्णभार, मध्यम व्यायोग, अरू भंग, दूतवाक्य, पंच रात्रि, बालचरित, अभिषेक, प्रतिज्ञा यौगन्धरायण, अविकारक, प्रतिमा एवं चारुदत्त. भास की ये सभी कृतियाँ नाट्य रूपक ही हैं.

    भास की नाट्य कृतियों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है अकृत्रिम शैली. उनकी इन सभी कृतियों में मौलिकता तथा कल्पनाशीलता के दर्शन होते हैं. साहित्य में मौलिकता और कल्पनाशीलता को सृजन का मूल आधार माना गया है. जो साहित्य जितनी ही काल्पनिक होगी, वह साहित्य उतना ही मौलिक होगा. यहाँ मौलिकता से तात्पर्य यह है कि उनकी किसी भी कृति में किसी अन्य साहित्यकार की रचनाओं की अनुकृति के लक्षण नहीं है. इसलिए भास की कृतियाँ प्रभावोत्पादक हैं, जो पाठकों अथवा दर्शकों पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाती है. फिर भी कतिपय विद्वानों को उनकी कृतियों में क्षेमेंद्र की बृहत्कथा मंजरी तथा सोमदेव के कथासरित्सागर की झलक दिखती है. वैसे संस्कृत वांग्मय में इन दोनों बहुमूल्य कृतियों को सर्वोत्कृष्ट साहित्य माना गया है.

भास साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता उसकी सरलता है. सरलता किसी भी साहित्य को लोकप्रिय बनाने की कसौटी मानी जाती है. क्योंकि सरल भाषा में लिखे गये साहित्य जन जन में लोकप्रिय हो जाया करते हैं, चाहे ऐसे साहित्य श्रव्य काव्य हों अथवा दृश्य काव्य. इस दृष्टि से वे सफल नाटककार हैं. उन्होंने पाठकों तथा दर्शकों की नब्ज़ को पकड़ा है. इनके नाटकों के छोटे छोटे संवाद, कथानक का कसाव तथा पात्रों के अनुकूल भाषा का प्रयोग उनकी कृतियों को रुचिकर बनाता है. 

   भास के सभी नाटक (रूपक) अभिनय की दृष्टि से भी सफल माने गये हैं, जो उनके नाट्य लेखन कला की कुशलता की पुष्टि करता है. भास के नाटकों के पात्रों का अपना एक खास व्यक्तित्व, एक खास चरित्र होना भी महत्व रखता है. उन्होंने अपने पात्रों के अंतर्द्वंद्व को इतने प्रभावशाली ढ़ंग से चित्रित किया है कि दर्शक मुग्ध हो जाते हैं. इनके नाटकों में इनके अंदर का कवित्व भी मुखर होकर सामने आया है. छंद के रूप में उनके नाटकों के संवादों में ऐसी संप्रेषणियता देखने को मिलती है जो पाठकों तथा दर्शकों को बांधे रखती है. किसी भी नाटक की सफलता के पीछे इस परिपक्वता की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो भास के नाटकों में प्रचूरता से देखने को मिलती है. 

   उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि महाकवि भास एक सिद्धहस्त नाटककार थे, जिनके नाटकों में नाट्यशास्त्र के सभी तत्व मौजूद हैं.

  हालांकि 20 वीं शताब्दी से पूर्व उनकी उपलब्ध नाट्य कृति "स्वप्न वासवदत्ताम्" सन् 1912 में प्राप्त एक रूपक (नाटक) "प्रतिज्ञा यौगन्धरायण" का दूसरा भाग है, जिसमें स्वप्न वासवदत्ताम् से पूर्व की कहानी है. संभवतः इस कारण भी टी. गणपति शास्त्री ने इसे भास की कृति ही माना है. इनदोनों नाटकों की शैली प्राचीनतम नाटकों जैसी ही है. उस काल से लेकर आधुनिक काल तक नाटकों में नायक नायिका के साथ साथ खलनायक तथा विदूषक का होना अनिवार्य माना जाता रहा है. नाटकों में विदूषक की उपस्थिति नाटक के सफलता की गारंटी मानी जाती थी. उस प्राचीन काल से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाह आधुनिक काल के रंगमंच से लेकर सिनेमा के पर्दे पर भी होता रहा है. माना जाता है कि प्राचीन काल में जिस नाटक में विदूषक का किरदार नहीं हुआ करता था, उस नाटक को दर्शक नकार देते थे.

   भास के उपरोक्त दोनों नाटकों की कथावस्तु के साथ साथ पात्र भी लगभग एक ही हैं. हाँ वासवदत्ता में कुछ पात्र बढ़ गये हैं. नाटक के प्रथम खंड यानि "प्रतिज्ञा यौगन्धरायण" में निम्नलिखित मुख्य पात्र हैं -

1. महाराज उदयन - कौशाम्बी के राजा. इस नाटक के नायक.

2. वासवदत्ता - अवंती के राजा प्रद्योत की पुत्री. नायिका.

3. यौगन्धरायण - राजा उदयन के मित्र तथा कौशाम्बी राज का वफादार महामंत्री. 

4. वसंतका  - राजा उदयन के विदूषक मित्र.

5. प्रद्योत महासेन - अवंती के राजा तथा वासवदत्ता के पिता.

6. हंसक - राजा उदयन के अंगरक्षक

7. राजमाता - राजा उदयन की माँ.

मुख्य रूप से इन्हीं सात पात्रों तथा कुछ अन्य सहयोगी पात्रों के इर्दगिर्द ही इस नाटक की पूरी कहानी घूमती है. नाटक के आरंभ में अवंती के राजा प्रद्योत महासेन खलनायक की भूमिका में नजर आते हैं. इस नाटक के दूसरे खंड यानि "स्वप्न वासवदत्ताम्" में कुछ पात्र बढ़ जाते हैं, जैसे - मगध की राजकुमार पद्मावती तथा पद्मावती के भाई राजा दर्शक. स्वप्न वासवदत्ता का खलनायक एक दुष्ट राजा अरुणि है, जो राजा उदयन का राज पाट हड़प लेता है. इन दोनों नाटकों में हाथी नलगिरी तथा घोषित नामक वीणा की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

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क्रमशः.....! 

(अगले अंक में पढ़ें नाटक "प्रतिज्ञा यौगन्धरायण" तथा नाटक "स्वप्न वासवदत्ताम्" की संक्षिप्त कहानियाँ.)

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