भक्तिकाल के मुस्लिम कवि


पद्मावत की कथा

(चतुर्थ किश्त) 

 - रामबाबू नीरव

हीरामन राजा रत्नसिंह के समक्ष अपनी स्वामिनी पद्मावती के अनुपम सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है -

"का सिंगार ओहि बरनौ राजा। ओहिक सिंगार ओहि पै छाजा।। 

प्रथमहिं सीस कस्तुरी केसा। बलि वासुकि को औरु नरेसा।। 

भंवर केस वह मालति रानी। बिसहर लुरहिं लेहिं अरघानी।। 

बेनी छोरि झारु जौं बारा। सरग पतार होइ अंधियारा।

कोंवल कुटिल केस नग कारे। लहरन्हि भरै भुजंग विसारै।। 

बेधे जानु मलय गिरि बासा। सीस चढ़े लोटहिं चहुँ पासा।। 

घुंघवारि अलकैं बिख भरीं। 

सिंकरी प्रेम चहहिं गियै परीं।।

अस फंदवारे केस वै राजा परा सीस गियै फांद । 

अस्टौ कुरी नाग ओरगाने भै केसन्हि के बांद ।।"

भावार्थ ; हीरामन राजा रत्नसिंह से कहता है कि हे राजन! पद्मावती के रूप- शृंगार का क्या बखान करुं? उसका शृंगार उसी को शोभा देता है. सर्वप्रथम सिर पर कस्तूरी से काले केश हैं, जिन पर नागराज वासुकि बलि जाता है, किसी राजा की तो बात ही क्या है. राजकुमारी पद्मावती मालती है, उसके सिर के केश भौंरे हैं, विषधर सांपों की भांति वे केश लहराते और सुगंध बिखेरते हैं. जब वह बेनी खोलकर केशों को झाड़ती है, तो आकाश से लेकर पाताल तक अंधेरा छा जाता है. कोमल कुटिल केश काले नागों की भांति है, वे विषधर भुजंगों की तरह लहरों से भरे हैं. मानो शरीर रूपी मलयगिरि की सुगंध ने उन केश रूपी नागों को बांध रखा है. इसी कारण सिर पर चढ़े हुए उसी के चारों ओर लोटते रहते हैं और अन्यत्र नहीं जाते." इस तरह से पद्मावती के अलौकिक सौंदर्य का वर्णन करने के पश्चात हीरामन राजा रत्नसिंह से कहता है कि वह पुरुष संसार का सबसे सौभाग्यशाली होगा, जिसे राजकुमारी पद्मावती पत्नी रूप में प्राप्त होगी. इधर

राजकुमारी पद्मावती के अलौकिक सौंदर्य का वर्णन हीरामन के मुख से सुनकर राजा रत्नसिंह मूर्छित हो गये. कुछ देर बाद जब उनकी मूर्छा टूटी तब वे, हीरामन से विनती करते हुए बोले -"हीरामन, बिना देखे ही मैं तुम्हारी स्वामिनी राजकुमारी पद्मावती से प्रेम करने लगा हूँ. यदि पद्मावती मुझे नहीं मिली तो मैं अपना प्राणोत्सर्ग कर दूंगा. इसलिए मित्र, जितना जल्द हो सके मुझे राजकुमारी के पास ले चलो."

"राजन! राजकुमारी पद्मावती से मिलना इतना सहज नहीं है. राजकुमारी के पिता महाराज गंधर्व सेन ने उन पर कठोर पहरा बैठा रखा है. राजकुमारी को पाने के लिए आपको भी कठिन तपस्या और संघर्ष करना होगा."

"मैं सबकुछ करने को तैयार हूँ." रत्नसिंह ने दृढ़ स्वर में कहा, उन्होंने मन में ठान लिया, छल से हो या बल से, चाहे जैसे भी हो वे राजकुमारी पद्मावती को अपनी अर्द्धांगिनी बनाकर ही रहेंगे. उन्होंने अपने राज्य के 16000 वीर पुरुषों को साधु संतों के वेश में तैयार होने की आज्ञा दी. सभी वीर योद्धा अपने अपने वस्त्रों में अस्त्र शस्त्र छुपा कर अपने राजा की प्रियतमा का हरण करने के लिए प्रस्थान कर गये. राजा रत्नसिंह ने भी स्वयं योगी का रूप धारण किया और हीरामन के साथ निकल पड़े अपनी प्रियतमा को पाने के लिए. भूख प्यास से बेदम कई महीनों की कठिन यात्रा के पश्चात इनका काफिला पहुँचा सिंघल द्वीप. सिंघल द्वीप पहुँच कर उनके वीर योद्धा यत्रतत्र छुप गये और राजा रत्नसिंह स्वयं एक शिवालय में शरण लेने पहुंचे. उन्हें एक सिद्ध योगी समझकर शिवालय के पुजारी ने उनका स्वागत किया. राजा रत्नसिंह को शिवालय में सुरक्षित रखकर हीरामन अपनी स्वामिनी से मिलने के लिए राजमहल में पहुँचा. अपने प्रिय तोता को देखकर राजकुमारी पद्मावती खुशी से निहाल हो गयी. प्रसन्नता के मारे उसकी ऑंखों से ऑंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी. उसने अपने प्रिय तोता को हृदय से चिपका लिया. ऐसा करते ही उसकी सारी पीड़ा दूर हो गयी. हीरामन ने पद्मावती को बताया कि आपके योग्य वीर, धीर और गम्भीर पुरुष आपको प्राप्त करने के लिए आपके राज्य में पधार चुके हैं. फिर हीरामन ने राजा रत्नसिंह के रूप, गुण और शौर्य की प्रशंसा में अनेकों उपमाओं से उन्हें अलंकृत किया. अपने प्रियतम के रूप और गुणों को सुनकर पद्मावती भी मन ही मन राजा रत्नसिंह को चाहने लगी और उनसे मिलने को व्याकुल हो गयी. एक दिन वह वेश बदलकर हीरामन के साथ गुप्त मार्ग से मंदिर पहुँच गयी. अपने समक्ष अनुपम सौंदर्य की देवी और अपनी प्रियतमा राजकुमारी पद्मावती को देखकर राजा रत्नसिंह इतने भाव विभोर हो गये कि अपना सुधबुध खोकर मूर्छित हो गये. पद्मावती ने उनकी विशाल छाती पर चंदन से लिखा -"मेरे आराध्य महाराज रत्नसिंह, आप मुझे तभी प्राप्त कर सकते हैं, जब सिंहल राज्य पर एक वीर योद्धा की तरह आक्रमण कर मुझे हरण करके चितौड़गढ़ ले जाएंगे." मूर्छा टूटने के बाद राजा रत्नसिंह ने अपनी प्रियतमा का वह संवाद पढ़ा और सिंहल राज्य पर आक्रमण करने का निर्णय ले लिया, परंतु उससे पूर्व वे एकबार राजकुमारी से मिलने का मन बना कर हीरामन के सहयोग से उसी गुप्त मार्ग से महल में प्रविष्ट हो गये. मगर धोखे से वे महाराज गंधर्व सेन के गुप्तचरों द्वारा पकड़ लिए लिए गये. गुप्तर उन्हें बंदी बनाकर दरबार में ले आये. राजा रतन सिंह की ऐसी धृष्टता को देख महाराज गंधर्व सेन क्रोध से कांपने लगे. उन्होंने उनसे तरह तरह के प्रश्न पूछे, परंतु राजा रत्नसिंह ने मौन धारण कर लिया. इससे महाराज गंधर्व सेन का क्रोध और भी भड़क गया और उन्होंने अपने सैनिकों को राजा रत्नसिंह को शूली पर चढ़ा देने की आज्ञा दे दी. 

उधर जब उनके योद्धाओं को उनकी गिरफ्तारी की सूचना मिली, सभी सैनिक वेश में आकर सिंहल के किले पर चढ़ाई करने के लिए निकल पड़े. 

जब सिंहल राज्य के सैनिक राजा रत्नसिंह को शूली पर चढ़ाने के लिए ले जाने लगे तभी हीरामन आकर महाराज गंधर्व सेन के समक्ष सच्चाई प्रकट करते हुए बोल पड़ा -"महाराज की जय हो, आप अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल करने जा रहे हैं. जिन्हें आपने शूली पर चढ़ाने की आज्ञा दी है, वे कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, बल्कि वे हैं चितौड़गढ़ के वीर योद्धा महाराज रत्नसिंह, जिनके शौर्य के भय से कोई भी यवन उनके राज्य पर आक्रमण करने का दुस्साहस नहीं करता. यह तो राजकुमारी पद्मावती का परम सौभाग्य है कि उन्हें पत्नी रूप में प्राप्त करने हेतु स्वयं राजा रत्नसिंह जी सिंहल द्वीप में पधारें हैं." हीरामन की इन बातों को सुनकर महाराज गंधर्व सेन को अपने किये पर काफी पछतावा हुआ. उन्होंने सैनिकों को राजा रत्नसिंह को मुक्त करने की आज्ञा दी तथा शीघ्र ही उनका विवाह राजकुमारी पद्मावती से करने की घोषणा कर दी. इस सुखद संवाद को स्वयं हीरामन राजकुमारी पद्मावती को सुनाने चला गया. खुशी का यह संवाद चितौड़गढ़ के सैनिकों को भी प्राप्त हुआ और उनलोगों ने अपने अपने अस्त्र शस्त्र का परित्याग कर बारातियों का वेश धारण कर लिया. राजकुमारी पद्मावती को जब अपने पिता महाराज गंधर्व सेन द्वारा की गयी घोषणा की जानकारी हुई तब वह प्रसन्नता से झूम उठी. जायसी कृत पद्मावत के अनुसार महाराज गंधर्व सेन ने न सिर्फ अपनी पुत्री राजकुमारी पद्मावती का विवाह चितौड़गढ़ के राजा रत्नसिंह (रतन सिंह/ रावत रत्न सेन) के साथ धूमधाम से किया बल्कि उनके साथ चितौड़ से आये सभी 16000 वीर योद्धाओं का विवाह भी 16000 पद्मिनी जाति की युवतियों के साथ करके विदा किया. (इस प्रसंग से ऐसा ज्ञात होता है, जैसे सिंहल द्वीप की प्रायः अधिकांश युवतियां उस काल में पद्मिनी जाति की ही होती रही हो. इस तरह की अतिशयोक्तिपूर्ण प्रसंगों को पढ़कर पद्मावत की ऐतिहासिकता पर संदेह होना स्वाभाविक है.)

उधर चितौड़गढ़ का हाल बेहाल था. राजा रत्नसिंह पहले से शादीसुदा थे. उनकी पत्नी का नाम नागमती था. नागमती भी अपूर्व सुन्दरी थी. अपने पति के अचानक गायब हो जाने से वह बुरी तरह घबरा गयी और उनके वियोग में रेत पर पड़ी हुई मछली की भांति तड़पने लगी.

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क्रमशः....... ! 

(अगले अंक में पढ़ें राजा रतन सिंह की प्रथम पत्नी रानी नागमती की विरह वेदना की कहानी.)

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