भक्तिकाल के मुस्लिम कवि


(द्वितीय किश्त) 

-रामबाबू नीरव

जायस के लोगों की मान्यता के अनुसार मलिक मुहम्मद जायसी को एक ही पुत्र था और वे अपने पुत्र से काफी प्रेम करते थे. परंतु अल्लाह ताला से उनका पुत्र-प्रेम देखा न गया और एक दिन उनके घर की दीवार गिर गयी जिसमें दब जाने के कारण उनके एकलौते पुत्र की मौत हो गयी. अपने पुत्र के शोक में डूबकर वे समस्त सांसारिक सुखों से विरक्त हो गये और भक्ति मार्ग पर चल पड़े. कुछ दिन वे फकीर की भांति यहाँ वहाँ घूमते रहे. जब उनका मन कुछ शान्त हुआ तब वे साहित्य साधना में लीन हो गये. लोगों की मान्यता है कि उनकी दुआ से ही अमेठी के राजा रामसिंह को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई थी. इसलिए राजा रामसिंह उनके मुरीद बन चुके थे. राजा रामसिंह उन्हें अपने दरबार में रखना चाहते थे, परंतु जायसी इतने  स्वाभिमानी थे कि उन्होंने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया. उन्हें फकीराना जिंदगी पसंद थी. उनके इंकार से राजा रामसिंह के दिल को चोट तो लगी, फिर भी उन्होंने परोक्ष रूप से जायसी की मदद करना आरंभ कर दिया. 

  अपने अंतिम दिनों में वे अमेठी से कुछ दूर एक घने जंगल में कुटिया बना कर अकेले ही रहा करते थे और यहीं रहकर साहित्य साधना किया करते थे. राजा रामसिंह को जब भी उनसे मिलने की इच्छा होती, वे यहीं आकर उनसे मिल लेते. एकबार जायसी ने राजा रामसिंह से कहा था कि मेरी मौत किसी शिकारी के हाथों ही होगी. इसलिए राजा ने वहाँ घेराबंदी करवा दी, जहाँ वे कुटिया बनाकर रहा करते थे. तथा उस क्षेत्र में किसी भी शिकारी अथवा अज्ञात आदमी के आने जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. एक दिन उस जंगल में जहाँ जायसी की कुटिया थी, कैसे न कैसे एक शिकारी घुस आया. असल में वह एक शेर का पीछा करते हुए आया था. शिकारी ने शेर का निशाना साधकर गोली चला दी. गोली शेर को न लगकर जायसी को लग गयी. शेर के बदले एक इंसानी चीख सुनकर शिकारी घबरा गया, जब वह जायसी के निकट पहुँचा तबतक वे इस दुनिया से कुच कर चुके थे. शिकारी को बहुत अफसोस हुआ और उसने राजा रामसिंह के समक्ष उपस्थित होकर  अपना अपराध स्वीकार कर लिया. राजा रामसिंह को मलिक मोहम्मद जायसी की कही हुयी बात याद आ गयी -" मेरी मौत किसी शिकारी के हाथों से होगी." राजा ने शिकारी को क्षमा कर दिया और जायसी को अपने महल से कुछ ही दूरी पर दफना दिया गया. जायसी की कब्र अमेठी राजा के वर्तमान महल से लगभग तीन चौथाई कि० मी० की दूरी पर अवस्थित है. मानाढ जाता है कि अमेठी का वर्तमान किला जायसी की मौत के बहुत बाद में बना है. अमेठी के राजाओं का पुराना किला जायसी की कब्र से लगभग डेढ़ कोस की दूरी पर हुआ करता था. इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि अमेठी के राजा रामसिंह मलिक मोहम्मद जायसी के संरक्षक थे. भले ही जायसी अपने जीवन काल में अमेठी दरबार में न गये हों, मगर राजा रामसिंह जायसी की उन दुआओं को नहीं भूले थे, जिसकी वजह से उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई थी. राजा रामसिंह गुप्त रूप से  जायसी को पूरा राजकीय संरक्षण प्रदान करते रहे.

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मलिक मुहम्मद जायसी के लगभग 21 कृतियों के उल्लेख मिलते हैं. जिसमें से पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, कहरनामा, चित्रलेखा, कान्हावत आदि प्रमुख हैं. अनुमान लगाया जाता है कि उनकी अंतिम कृति पद्मावत ही है. इसका अनुमान उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति पद्मावत के उपसंहार में लिखे गये वृद्धावस्था के यथार्थपूर्ण चित्रण से लगाया जाता है. इससे यही ज्ञात होता है कि वे लगभग अस्सी वर्ष की आयु तक अवश्य जीवित रहे होंगे.

उन्होंने चाहे जितने भी ग्रंथों की रचना की हो, परंतु उन्हें ख्याति उनके प्रेमकथा पर आधारित महाकाव्य "पद्मावत" से ही मिली. पद्मावत को विश्व की महान साहित्यिक कृतियों में से एक माना जाता है. इस महाकाव्य में साहित्य के शृंगार रस के  दोनों भावों संयोग और वियोग का बड़े ही मनमोहक अंदाज में चित्रण हुआ है. इसके साथ ही इस महाकाव्य की नायिका राजकुमारी *पद्मा के रूप लावण्य का चित्रण अद्भुत है. उन्होंने अपनी नायिका को स्त्रियों में सर्व श्रेष्ठ - *पद्मिनी* माना है. राजकुमारी पद्मा का अपने प्रियतम राजा रत्नसिंह से विवाह हो जाता है, तब के सौंदर्य का एक भाव देखिए -"प्रथम वसंत नवल ऋतु आयी, सुरितु चैत बैसाख सोहाई। 

चंदन चीर पहिरि धनि अंगा, सेन्दुर दीन्ह विहंसि भरि मंगा। 

जेहि घर कन्ता रितु भली, आउ बसन्ता नित्तु। 

सुख बहराबहि देव हरै, दुक्ख न जानहि कित्तु।"

   नवल बसंत ऋतु का आगमन हो चुका है. चैत बैशाख में वह ऋतु सुहावनी लग रहीं है. रानी पद्मावती ने चंदन चीर धारण किया हुआ है. और प्रसन्नता पूर्वक अपनी पूरी मांग में सिन्दूर धारण कर रखा है. जिस घर में कन्त हो उस घर में भली वसंत ऋतु आती है. वहाँ पतिपत्नी बसंत ऋतु में उद्यान में जाकर अपने आपको बहलाते हैं. सुहाने बसंत ऋतु के प्रभाव के कारण प्रतीत होता है कि दोनों एक दूसरे से मिल गये हों. -

"रंग राती पिय संग मिली जागे, गरजे चमकि चौकि कंठ लागे."

जायसी के ग्रंथ *अखरावट* के बारे में सैय्यद कल्ब मुस्तफा का मानना है कि यह उनकी अंतिम कृति है. इससे स्पष्ट होता है कि इसकी रचना पद्मावत के बाद की गयी होगी. क्योंकि जायसी के जीवन काल के अंतिम दिनों में उनकी भाषा तथा सांसारिक ज्ञान अधिक परिपक्व तथा तथा परिमार्जित हो गयी थी, जिसकी झलक अखरावट में देखने को मिलती है. परंतु अधिकांश विद्वानों का मत है कि उनकी अंतिम रचना पद्मावत ही है. अखरावट के आरंभ में जायसी ने सृष्टि के उद्भव तथा विकास की कथा अपने इस्लामिक मतानुसार लिखा है. उनके मतानुसार आरंभ में यह सृष्टि महाशुन्य था, उसी शुन्य से ईश्वर ने सृष्टि की रचना की. उस समय गगन, धरती, सूर्य तथा चन्द्र जैसी कोई चीज नहीं थी. भारतीय दर्शन में भी इस संसार की कल्पना *अश्वत्य* रूप में की गयी है. मूल रूप से अखरावट में सृष्टि की रचना की ही कथा है. वहीं कहरनामा में उन्होंने प्रलय (कयामत) की कहानी लिखी. *कान्हावत" राधा और कृष्ण की कथा है. "आखिरी कलाम" में जायसी ने मुगल बादशाह बाबर के साथ साथ अपने दोनों गुरुओं की प्रशंसा की. राजकुमारी चित्रररेखा तथा प्रीतम कुंवर की कहानी है.

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क्रमशः.........! 

(अगले अंक में पढ़ें *पद्मावत* की संक्षिप्त कहानी.)

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