भक्तिकाल के मुस्लिम कवि  



(तृतीय किश्त) 

- रामबाबू नीरव 

पूर्व के आख्यानों में हमलोग मलिक मुहम्मद जायसी के जीवन की कथा को जान चुके हैं. अब आईए जानते हैं उनकी महान कृति *"पद्मावत"* के बारे में. माना जाता है कि उन्होंने इस महाकाव्य की रचना 900 हिजरी यानि 1540 ई० में की थी. जबकि यह घटना तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी यानि 1302 ई०  के आसपास की है जब दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी हुआ करता था. उसी काल में सिंहल द्वीप (जिसे सिंघल भी कहा जाता था. वर्तमान में श्रीलंका देश) के राजा थे गंधर्व सेन. राजा गंधर्व सेन की एकमात्र पुत्री थी राजकुमारी पद्मा जिसे पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है. (कुछ इतिहासकारों का मत है कि पद्मावती सिंहल (सिंघल) द्वीप की नहीं, बल्कि मेवाड़ के जैसलमेर के आसपास की एक सिंहल नामक खनाबदोश जाति  के किसी सरदार की बेटी थी. परंतु इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है, इसलिए मैं जायसी की कहानी को ही सत्य मानकर आगे बढ़ता हूँ.) मलिक मुहम्मद जायसी के अनुसार  राजकुमारी पद्मावती अद्भुत सुन्दरी थी. स्त्रियों में सर्वश्रेष्ठ मानी जानेवाली पद्मिनी जाति का सौंदर्य भी पद्मावती के सौंदर्य के समक्ष फीका था. वैसे भी जायसी के काव्य में नारी सौंदर्य की रमणीयता और अलंकृत झांकी की प्रस्तुति अद्भुत है. जायसी का सौंदर्य चित्रण नारी शरीर के लौकिक और अलौकिक, भौतिक और लोकोत्तर, दोनों दृष्टियों से जितने मोहक, रमणीय, सजीव, मादक और जीवंत हैं, उतने अन्य कवियों की कृतियों में देखने को नहीं मिलता. जायसी ने अपनी नायिका पद्मावती को अद्वितीय और अनुपम बताया है. यानि राजकुमारी पद्मा को 'जेहि दिन दसन ज्योति निरमई, बहुत तन्ह जोति जोति ओहि भई" कहकर अनुपम ज्योति स्वरूप प्रस्तुत किया है. राजकुमारी पद्मावती ने एक तोता पाल रखा था, जो बहुत ही सुन्दर और वाचाल था. उस तोते का नाम था हीरामन. दोनों एक दूसरे को बेहद चाहते थे. तोता हीरामन प्रायः राजकुमारी पद्मा के सौंदर्य की प्रशंसा करते हुए, उसका जी बहलाया करता था. साथ ही साथ वे दोनों आपस में वेद तथा हिन्दुओं के अन्य धार्मिक ग्रंथों पर भी चर्चा किया करते थे. राजा गंधर्व सेन को राजकुमारी पद्मावती तथा हीरामन की ऐसी घनिष्ठता रत्ती भर भी पसंद न थी. राजकुमारी का अधिकांश समय उस तोते के साथ ही व्यतीत हो जाता. राजकुमारी अपने पिता के लिए समय ही नहीं निकाल पाती थी. राजा ने सैनिकों को आज्ञा दे दी कि वे लोग इस तोते को मार डाले. एक दिन पद्मावती अपनी सहेलियों (दासियों) के साथ बाग में मनोरंजन कर रही थी. उसके निजी महल में हीरामन अकेला था, तभी सिंहल राज्य के सैनिक हाथ में नंगी तलवार लिये हुए उसे मारने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़े. मृत्यु के भय से हीरामन उड़ कर महल से बाहर आ गया और उड़ते उड़ते सात समुन्दर पार हिन्दुस्तान के राजपूताना में पहुँच गया. तभी एक बहेलिये ने उसे अपने जाल में फंसा लिया.  हीरामन मन ही मन सोचने लगा -" मैं तो अब फंस गया. यह बहेलिया न जाने मुझे कैसे आदमी के हाथों में बेच देगा." हीरामन बहेलिया से विनती करते हुए बोला -" देखो भाई, तुम मुझे किसी ऐसे भले आदमी के हाथ से बेचना, जो मेरी कद्र कर सके." बहेलिया तोते की बात सुनकर अचंभित रह गया. तभी वहाँ एक ब्राह्मण आया और हीरामन को देखकर उसे पाने के लिए व्याकुल हो उठा. बहेलिया के साथ साथ हीरामन भी उस ब्राह्मण को देखकर खुश हो गया. ब्राह्मण ने बहेलिया को मुॅंहमाॅंगी कीमत देकर हीरामन को खरीद लिया. वह ब्राह्मण चितौड़गढ़ का निवासी था. उधर अपने महल में हीरामन न पाकर राजकुमारी पद्मावती व्याकुल हो गयी. जब उसे ज्ञात हुआ कि उसके पिता ने उसके प्रिय तोते को मरवा दिया है, तब उसने अन्न जल का परित्याग कर दिया. राजा गंधर्व सेन अपनी पुत्री की हालत देखकर अपने किये पर पश्चाताप करने लगे.

  यह कथा पद्मावत का पूर्वार्द्ध है. इस कथा पर विद्वानों को विश्वास नहीं होता और विद्वानों ने इस पूर्वार्द्ध को जायसी की कल्पनाओं की उड़ान माना लिया है. वहीं कुछ विद्वान इस कथा की सत्यता को  स्वीकार करते हुए राजकुमारी पद्मा को सिंहल द्वीप की राजकुमारी

न मानकर जैसलमेर के एक खनाबदोश कबिले के सरदार की बेटी माना है. इस कथा का उतरार्द्ध ही सही मायने में "पद्मावत" की आत्मा है. यह प्रेमाख्यान मलिक मुहम्मद जायसी की साहित्य साधना की अनुपम उपलब्धि हैं. जायसी ने अपने इस अनुपम प्रेमाख्यान के माध्यम से यह प्रतिपादित करने का सफल प्रयास किया है कि सृष्टि का सर्वाधिक सुन्दर तत्व प्रेम है. जायसी प्रेम के लौकिक और अलौकिक दोनों रूपों के मर्मज्ञ हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं. उन्होंने यह भी सिद्ध करने का प्रयास किया है कि प्रेम का आधार स्तंभ सौंदर्य है. जायसी के पद्मावत की मुख्य नायिका राजकुमारी पद्मावती तथा सह नायिका   रानी नागमती दोनों ही अनुपम सौंदर्य की स्वामिनी है. साथ ही इन दोनों का अपने प्रियतम के साथ जो प्रेम है, वह प्रेम की पराकाष्ठा है. इस प्रेम में संयोग भी है, वियोग भी. हर्ष भी है और वेदना भी. इस प्रेम की पराकाष्ठा के महानायक हैं राजपूताना (चितौड़गढ़) के राजा रत्न सिंह. इन्हें रावत रतनसेन तथा रतन सिंह के नामों से भी जाना जाता है. कहानी का यह उतरार्द्ध ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है. उस समय तक रानी पद्मावती और राजा रत्न सिंह (रत्नसेन) की प्रेमकथा, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की दुष्टता, रानी नागमती की विरह वेदना तथा रानी पद्मावती के जौहर की कहानी पूरे राजपूताना में एक लोककथा के रूप में प्रचलित हो चुकी थी. जायसी से पूर्व के कवियों ने भी इस कथा पर आधारित काव्यों की रचना की थी. 14 वीं से 16 वीं शताब्दी के बीच जैन ग्रंथों यथा - नवीनंदन, जेनुधर, चितई चरित्र तथा रेयान सेहरा आदि में रानी पद्मिनी की कथा का उल्लेख मिलता है. कुछ मुस्लिम दरबारी कवियों न भी सुल्तान  अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चितौड़ विजय की कथाएँ लिखी हैं, परंतु उन कवियों ने अपनी कृतियों में रानी पद्मावती का उल्लेख नहीं किया है. इसके अलावा मुगल सल्तनत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार अबुलफजल ने भी आइने अकबरी में इस कथा को अपने ढ़ंग से लिखा है.

     तो अब आईए सिंहल (सिंघल) द्वीप की राजकुमारी पद्मावती तथा उसके प्यारे तोता हीरामन की कथा को आगे बढ़ाते हैं. "हीरामन को चितौड़गढ़ का एक ब्राह्मण खरीद लेता है. ब्राह्मण हीरामन की प्रतिभा को जानकर अत्यधिक पुरस्कार पाने के लोभ में उसे चितौड़गढ़ के दरबार में लेकर आता है. भरे दरबार में हीरामन अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर राजा रत्नसेन के साथ साथ सभी दरबारियों को भी चकित कर देता है. राजा रत्न सिंह ब्राह्मण को सोने की अशर्फियों से लादकर हीरामन खरीद लेते हैं. राजा रत्नसेन के मृदुल व्यवहार तथा उनके शौर्य को देखकर हीरामन को लगता है कि राजा रत्नसेन ही उसकी मालकिन पद्मावती के पति होने योग्य हैं. वह राजा रत्नसेन के समक्ष राजकुमारी पद्मावती के अनुपम सौंदर्य का बखान करने लगता है. जिसे सुनकर रत्नसेन पद्मावती के दीवाने हो जाते हैं.'

 मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित इस महाकाव्य का सबसे अहम पात्र है यह हीरामन तोता. एक पक्षी होते हुए भी हीरामन ने दो प्रेमियों के बीच प्रेमालाप तथा एक दूसरे को करीब लाने में अहम भूमिका निभाई है. यह प्रसंग इस महाकाव्य की आत्मा है. जायसी ने "हीरामन" की परिकल्पना कर एक अद्भुत कल्पनाशीलता का परिचय दिया है. 

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क्रमशः........! 

(अगले अंक में पढ़ें राजा रत्नसेन (रतन सिंह) तथा राजकुमारी पद्मावती के मिलन की कहानी.)

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