भक्तिकाल के मुस्लिम कवि 


पद्मावत की कथा

(पंचम किश्त) 

-रामबाबू नीरव

 उस काल की परंपरा के अनुसार राजाओं और बादशाहों को कई कई विवाह करने के अधिकार प्राप्त थे. इसी प्रथा के अनुसार चितौड़गढ़ के राजा रत्नसिंह ने अपनी प्रथम पत्नी नागमती के रहते हुए भी सिंहल द्वीप की राजकुमारी पद्मावती के अलौकिक सौंदर्य पर मोहित होकर उसके प्रेम में पागल हो गये. अपनी प्रथम पत्नी नागमती तथा राजपाट को भूलाकर उन्होंने योगी का रूप धारण कर लिया और निकल पड़े अपनी प्रियतमा की तलाश में.

राजा रत्नसिंह की प्रथम पत्नी नागमती चितौड़गढ़ की पटरानी थी. उसका सौंदर्य भी पद्मावती से कम न था. परंतु वह अपने पति की उपेक्षा का दंश झेलने को विवश हो गयी. पति की उपेक्षा ने एक पतिव्रता नारी को विरहाग्नि में धकेल दिया. नागमती अपने पति के वियोग में तड़पती हुई, राजमहल का परित्याग कर जंगलों में भटने लग जाती है. अपने पति के वियोग में तड़प रही रानी नागमती की विरह वेदना का मार्मिक चित्रण करने में पद्मावत के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी पूर्णतः सफल रहे हैं. नागमती जंगल जंगल भटकती हुई, विरह वेदना में तड़पती हुई पक्षियों से अपने प्रियतम के बारे में पूछती हुई बारह महीने बिता देती है. इन बारह महीनों में नागमती की वेदना इतनी मुखर हो उठती है कि वन के सारे चर चराचर मर्माहत हो उठते हैं. एक पतिव्रता नारी के विरहाकुल हृदय की निरीह वेदना का पावन स्वरूप जितना पद्मावत में उभर कर सामने आया है, वैसी वेदना अन्यत्र दुर्लभ है. वास्तव में नागमती की इस विरह वेदना को पद्मावत का प्राण बिन्दु माना जा सकता है. विरह-विदग्ध, हृदय की संवेदनशीलता के इस चरमोत्कर्ष को देखते हुए ऐसा मानने को विवश होना पड़ता है कि जैसे प्रेम विरह रस के चतुर चितेरे महाकवि जायसी ने नागमती की वेदना को स्वयं में आत्मसात कर लिया हो. नागमती अपने पति के वियोग में तड़पती हुई जंगल में बारह महीने बिता देती है. 

 उसके इन बारह महीनों की विरह वेदना को महाकवि जायसी ने जिस छंद तथा शैली में प्रस्तुत किया है, उस शैली को बारह मासा के नाम से जाना जाता है. विद्वानों ने महाकवि मलिक मुहम्मद जायसी के इस बारह मासा काव्य शैली को उनकी मौलिक शैली माना है यानि इस शैली का इजाद उनहोंने न ही किया है. इस शैली में साल भर के बारहों महीनों में नायक-नायिका के मिलन और विरह की घटनाओं का वर्णन किया जाता है. इसमें किसी विरहिणी/विरही द्वारा विरह गीत के साथ साथ प्राकृतिक सौंदर्य का भी चित्रण किया जाता है. आईए अवलोकन करते हैं मलिक मुहम्मद जायसी के बारह मासा के साथ साथ रानी नागमती की विरह वेदना का -

"भई, पुछार लीन्ह बनवासू। बैरीनि संवति दीन्ह विलबांसु।। 

होइ घर बान विरह तनु लागा। जौं पिउ आवै उड़हि तौ कागा।।

हारिल भई पंथ मैं सेवा। अब तहं पठवौं कौन परेवा।। 

धौरी पंडुक कहु पिउ कंठ लवा। करै मेराव सोइ गौरवा।। 

कोइल भई पुकारित रही। महरि पुकारै लेइ-लेइ दही।। 

पेड़ तिलोरी और जल हंसा। हिरदय पैठि विरह कटनंसा।। 

जेहि पंखी के नियर होई, कहे विरह कै बात। सोइ पंखी जरि तखिर होइ निपात।।"

नागमती अपने पति की खोज में मोरनी के समान वन में जा पहुँची है और वन में सभी पक्षियों से अपने पति का पता पूछती हुई भटक रही है. परंतु वहाँ उसकी बैरन सौतन (परोक्ष रूप से सिंहल द्वीप की राजकुमारी पद्मावती) ने पक्षियों को फंसाने का फंदा लगा रखा है. अतः कोई भी पक्षी उसके पास तक जाने का साहस नहीं करता है. यह देखकर नागमती को अपनों की याद सताने लगी और विरह उसके हृदय में तीखे बाण की तरह चूभ कर वेदना उत्पन्न करने लगा. एक पेड़ पर कौए को देखकर वह कहती है - "हे कौए, यदि मेरे स्वामी आ रहे हैं, तो उड़ जा. (कौए को ऐसा कह)

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