- राम बाबू नीरव 

मार्निंग वॉक से लौटकर रीतेश ने जैसे ही डायनिंग हॉल में कदम रखा कि आश्चर्य से उछल पड़ा. सोफा पर बैठा हुआ जो शख्स अखबार पढ़ रहा था, वह था तो अभय ही, परंतु उसका रूप ही बदला हुआ था. आजतक रीतेश ने अभय को अखबार पढ़ते हुए नहीं देखा था. उसे तो दिन-दुनिया से कोई मतलब ही न था, तो अखबार क्या पढ़ता- ख़ाक ! सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि आज वह इतनी सुबह उठ कैसे गया ? अभय के इस परिवर्तित रूप को देखकर रीतेश के दिलो-दिमाग में अनेकों सवाल उठ खड़े हुए थे, जिसका जवाब सिर्फ अभय ही दे सकता था. वह धीमी गति से चलते हुए उसके समक्ष आकर खड़ा हो गया. अभय अखबार पढ़ने में इतना तल्लीन था कि उसे रीतेश के आने की आहट तक भी सुनाई न दी. 

"अभय." मद्धिम स्वर में रीतेश ने उसे पुकारा.

"अरे, रीतेश." अभय चौंक पड़ा और रीतेश की ओर देखते हुए हर्षित स्वर में बोल पड़ा -"मैं कबसे तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं, आओ बैठो." अभय ने रीतेश की कलाई पकड़कर अपने बगल में बैठा दिया.

"मुझे लगता है शायद तुमने स्नान भी भी कर लिया है?" अभय को गौर से निहारते हुए रीतेश ने पूछा. 

"सिर्फ स्नान ही नहीं बल्कि पूजा भी कर चुका हूं." अभय के ओठों पर एक अप्रतिम मुस्कान थिरकने लगी थी. 

"सिर्फ इतना ही नहीं रीतेश बेटा, बल्कि अभय ने कल्ह रात से ही शराब भी छोड़ दी है." यह आवाज रग्घू काका की थी. उन्होंने अभी अभी हॉल में कदम रखा था. 

"क्या.....?" सोफा पर उछल पड़ा रीतेश और विस्मय भरी ऑंखों से अभय को देखने लगा, जो लगातार मुस्कुराये जा रहा था. आज जो कुछ भी इस राज पैलेस में रीतेश देख और सुन रहा था, उसे संसार का नौवां आश्चर्य ही माना जा सकता है.

"हॉं रीतेश, तुम तो सो रहे थे, मगर अभय ने कल रात में ही थियेटर से आकर यह खुशखबरी मुझे सुनाई थी और अपने  कमरे में रखे शराब की बोतलों को नाली में फेंकवा दिया था." रग्घू ने खुलासा करते हुए कहा.

"थियेटर, यह थियेटर क्या है?" थियेटर शब्द रीतेश के जेहन में कौंधने लगा और उसने चकित भाव से रग्घू की ओर देखते हुए पूछा.

"कल्पना थियेटर....! क्या तुम नहीं जानते.?" उत्तर अभय ने दिया. 

"नहीं..... मुझे इस सब में रूचि नहीं है." 

"खैर जाने दो, तुम्हें रूचि नहीं है तो न‌ सही, कम-से-कम यह तो पूछो कि मेरी शराब की लत छुड़ायी किसने है?" 

"किसने छुड़वाई है ?" रीतेश कमल की भांति खिल उठे अभय के चेहरे की ओर देखने लगा. आज से पहले उसने अभय को इतना खुश कभी नहीं देखा था.

"कंचन ने." 

"कंचन.....यह कंचन कौन है.?" एकबार फिर  अभय की ऑंखें विस्मय से फटने लगी.

कल्पना थियेटर की एक बेहतरीन नर्तकी और गायिका."

"एक नर्तकी के कहने पर तुमने शराब छोड़ दी?" आश्चर्य से रीतेश ने की ऑंखें फैल गयी. -"तब तो निश्चित रूप से वह लड़की अद्भुत होगी."

"अद्भुत नहीं मायावी है वह. यदि तुम एकबार उससे मिल लोगे तो फिर.....!"

"कब मिला रहे हो उससे.?" रीतेश की उत्सुकता जग गयी.

"आज ही वह थियेटर के अन्य कलाकारों के साथ आ रही है यहां."

"क्या वह यहां आ रही है.?" 

"हां लंच पर...!"

"ओह तब तो मुझे भी शीघ्र ही तैयार हो जाना होगा.?" रीतेश उठकर खड़ा हो गया. उसकी बेताबी देखकर अभय के साथ साथ रग्घू भी हंस पड़ा. 

"रीतेश तुम्हें एक काम और करना होगा." अभय भी उठकर खड़ा हो गया.

"क्या....?"

"खुशी के इस मौके पर राज पैलेस में अनुपमा को भी बुलाना होगा.!"

"अनुपमा को..... मगर क्यों?" रीतेश घबरा गया. 

"उन लोगों के स्वागत के लिए."

"लेकिन.....!"

"प्लीज रीतेश मेरा यह छोटा सा अनुरोध मान लो." अभय ने कुछ इस मासूमियत से कहा कि रीतेश पराभूत हो गया.

                       *****

रीतेश को अपने सामने देखकर अनुपमा भौंचक रह गयी. एकबारगी उसे अपनी ऑंखों पर विश्वास ही न हुआ. उसके मुंह से अस्फुट सा स्वर निकला -"तुम......आ....प....!"

"मैं तुमसे कुछ कहने आया हूं अनुपमा." रीतेश हिचकिचाते हुए बोला. 

"अरे तो कहिए न....!" अनुपमा के ऑंखों की पुतलियां चंचल हो उठी.

"वो क्या है कि अभय ने‌ शराब छोड़ दी है." रीतेश की बात सुनकर अनुपमा के दिल को धक्का लगा. तो क्या यही सुनाने के लिए यह संगदिल इंसान यहां  आया है. सचमुच इस आदमी के सीने में दिल है ही नहीं. अब अनुपमा इस आदमी को कैसे समझाए कि वह इससे बेपनाह मोहब्बत करती है. लेकिन प्रत्यक्ष में तो वह अपनी नाराज़गी प्रकट कर नहीं सकती थी, इसलिए अनमने भाव से हर्ष प्रकट करती हुई बोली - 

"अच्छा है.....!"

"अभय ने तुम्हें आज ही राज पैलेस में बुलाया है."

"मुझे राज पैलेस में बुलाया है, मगर क्यूं?" अनुपमा चकित रह गयी.

"वो क्या है कि जिस लड़की ने अभय को इस बुरी लत से छुटकारा दिलाई है वह आज राज पैलेस में आ रही है."

"तो मैं क्या करूं?" झुंझला पड़ी अनुपमा. उसके तेवर देख रीतेश हक्का बक्का रह गया. यदि इसने इंकार कर दिया तब वह अभय को क्या जवाब देगा?

"देखो अनु इंकार मत करना नहीं तो.....!" उसकी मासूमियत पर अनुपमा खिलखिला कर हंस पड़ी. -

"तुमने ऐसा कैसे समझ लिया कि मैं इंकार कर दूंगी.?" रीतेश के मुंह से अपने लिए "अनु" का संबोधन सुनकर अनुपमा रोमांचित हो उठी. और आप से तुम पर आ गयी. 

"थैंक्स अनु....! मैं चलता हूं, तुम ठीक 11 बजे राज पैलेस में आ जाना." रीतेश जाने के लिए जैसे ही मुड़ा कि अनुपमा ने उसकी कलाई थाम ली -

"वाह ऐसे कैसे चले जाओगे, इतने दिनों बाद आए हो, कम-से-कम एक कप चाय तो पीते जाओ."

"नहीं अनु अभी जाने दो, फिर कभी......!" अपनी कलाई छुड़ाकर रीतेश तेजी से बाहर निकल गया. अनुपमा का अंग अंग पुलक उठा. मौन भाव से ही सही अभय ने उसके प्रेम निमंत्रण को स्वीकार तो कर लिया है!

               *****

    ठीक 1 बजे राज पैलेस के सिंह द्वार पर दो लग्जरी गाड़ियां आकर रूकी. ये दोनों गाड़ियां अभय की ही थी, जो कल्पना थियेटर के कलाकारों को लाने के लिए गयी थी. आगे वाली गाड़ी से सबसे पहले अमित खन्ना के साथ ड्राइवर नीचे उतरा. ड्राइवर ने पीछे का दरवाजा खोल दिया. पीछे वाली सीट से कंचन और शहनाज़ के साथ शहनाज़ की बेटी गुलनाज़ उतरी. वहीं दूसरी गाड़ी से समीर बदायुनी के साथ विकास आनंद और राजीव उपाध्याय उतरा. वे सभी राज पैलेस की भव्यता को देखकर अचंभित रह गये. ठीक किसी राजा के राजमहल जैसा था अभय का यह राज पैलेस. शहर के बीचोबीच लगभग दो एकड़ भू-भाग में फैले हुए इस महल की भव्यता अनोखी थी. सिंहद्वार पर दो सिक्युरिटी गार्ड राइफल लिए हुए मौजूद थे. जैसे ही वे सभी द्वार पर आए दोनों गार्डों ने उन्हें सैल्यूट मारा. वे सभी ऐसा सम्मान पाकर आत्म विभोर हो उठे. उन सबों ने भीतर कदम रखा. भीतर काफी विस्तृत लॉन था और उस लॉन के बीचोबीच स्थित था अभय राज का भव्य बंगला. चारों साइड में इस बंगले के नौकरों के छोटे-छोटे कॉटेज थे. वे सभी इस महल की खूबसूरती को निहारते हुए बंगले के सामने पहुंचे. सबसे आगे कंचन थी. वह जैसे ही हॉल के अंदर अपना पांव रखने जा रही थी कि उसके कानों में एक स्नेहिल आवाज पड़ी -

"तुमलोग अभी बाहर ही रूक जाओ बेटी." यह आवाज रग्घू की थी. इस मृदुल आवाज को सुनकर सभी ठिठक कर बाहर ही रूक गये और चकित भाव से रग्घू की ओर देखने लगे. कंचन के पीछे शहनाज़ और गुलनाज थी. और उन दोनों के पीछे राजीव उपाध्याय, समीर बदायुनी तथा विकास आनंद था. वे सभी रोके जाने का कुछ मतलब समझ नहीं पाये और हैरत से एक दूसरे का मुंह निहारने लगे. रग्घू उन सबों के निकट आ गया और मुग्धभाव से कंचन की ओर देखते हुए पूछ बैठा -

"बेटी शायद तुम्हारा नाम कंचन है?" 

"हां बाबा, मैं ही कंचन हूं." वह मुस्कुराती हुई बोली. अभय के मुंह से वह रग्घू के बारे में सुन चुकी थी. इसलिए सहजता से उसे पहचान गयी. 

"बुरा मत मानना बेटी, मैंने तुम लोगों को इसलिए रोका ताकि उस देवी की आरती उतरवा सकूं जिसके कहने पर राज खानदान के एकमात्र चिराग ने शराब छोड़ दी है." तभी रग्घू के पीछे अनुपमा और रिक्शा चालक की विधवा पारो आकर खड़ी हो गयी. अनुपमा के हाथों में पूजा की थाली थी, जिसमें दीप जल रहा था. वहीं पारो के हाथों में पुष्प मालाएं थी. उन दोनों के पीछे था रितेश. उन सबों के दिलों में कंचन के प्रति असीम अनुराग के साथ साथ आदर का भाव था. कंचन हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में इतनी आकर्षक दिख रही थी कि रीतेश मुग्ध भाव से एकटक उसे निहारता रह गया. शहनाज़ समीज और सलवार पहने हुई थी और सर पर हरे रंग का दुपट्टा रखी हुई थी. उसकी बेटी का लिबास भी उसके जैसा ही था. कंचन रीतेश को देखते ही पहचान गयी कि ये ही अभय बाबू के दोस्त होंगे. पारो की वेशभूषा ही बता रही थी कि वह राज पैलेस की सेविका होगी. परंतु अपने हाथ में पूजा की थाली लिये हुई जो अनुपम सुन्दरी खड़ी थी उसे वह पहचान नहीं पायी. कुछ पल चकित भाव से उसे निहारती रही. अभय ने बताया भी न था कि राज पैलेस में उसकी जैसी कोई लड़की भी रहती है. अब कंचन की ऑंखें अभय को ढ़ूंढ़ने लगी. मगर वह कहीं भी नजर न आया. कंचन मन ही मन कुपित हो उठी - "हमलोगों को बुलाकर जनाब खुद गायब हो गये."

"बेटी अनुपमा..... इन लोगों की आरती उतारो."

"जी काका." अनुपमा कंचन की आरती उतार कर उसके ललाट पर रोली का टीका लगा दी. कंचन उल्लसित भाव से अनुपमा को निहारती हुई आगे बढ़ गयी. अब अनुपमा के सामने शहनाज़ खड़ी थी. उसके मुस्लिम लिबास को देखकर अनुपमा असमंजस में पड़ गयी. उसकी समझ में न आया कि इस मुस्लिम महिला की वह आरती उतारें या न उतारे. तभी शहनाज़ अपने शोख अंदाज में बोल पड़ी -

"आप रूक क्यों गयी, मेरी भी आरती उतारिए न."

"जी, वो मैं आपका लिबास देखकर रूक गयी, कहीं आप बुरा न मान जाएं."

"ऐसा आपने कैसे समझ लिया कि मैं बुरा मान जाऊंगी." शहनाज़ हंसती हुई बोली -", हमलोग कलाकार हैं. जाति, धर्म  और मजहब से ऊपर उठें हुए हैं. हमलोग मां शारदे की वंदना करते हैं जो विद्या और कला की देवी है. थियेटर में जहां मैं राधा बनती हूं वहीं कंचन लैला बनती है. हमलोगों ‌में कोई भेद नहीं है."

"वाह बेटी कितने उच्च विचार हैं तुम्हारे." रग्घू हर्ष से ताली पीटने लगा. रीतेश भी शहनाज़ की बातें सुनकर विभोर हो उठा. उसने कल्पना भी न की थी कि थियेटर की लड़कियां इतने पवित्र विचार की होती हैं.

अनुपमा मुस्कुराती हुई उसकी उतारने लगी. अब बारी थी चुलबुली गुलनाज की. जैसे ही अनुपमा उसकी आरती उतारने लगी कि वह रोकती हुई शोख अंदाज में बोल पड़ी -

"मेरी आरती मत उतारिए आंटी."

"क्यों......" अनुपमा ने हंसते हुए पूछा.

"मैं तो अभी बच्ची हूं."

"बच्ची हो तो क्या हुआ....इस हवेली की मेहमान तो हो." आरती  उतारें जाने के बाद गुलनाज अनुपमा के चरणों  में झुक गयी. अनुपमा ने पूजा की थाली पारो को थमा कर गुलनाज को अपने सीने से लगा लिया. बाकी लोगों की आरती पारो ने उतारी और सबों  को पुष्पमाला पहनाकर अभिनंदन किया. सभी लोग हॉल में आ गये.  

"आप लोग बैठिए." रीतेश उन लोगों से आग्रह करते हुए बोला. 

"आप रीतेश बाबू हैं न." सोफा पर बैठते हुए कंचन ने पूछा.

"जी सही पहचाना आप ने..... मैं रीतेश ही हूं, अभय का मित्र."

"आप भी बैठिए न खड़े क्यूं हैं." इसबार शहनाज़ रीतेश की ओर देखती हुई बोली. 

"जी शुक्रिया....!" रीतेश  ने हंसते हुए कहा और समीर के पास बैठ गया.

"और आप बैठने का क्या लेंगी अनुपमा जी.? यह कंचन की आवाज थी. उसकी आवाज सुनकर अनुपमा चौंक पड़ी.

"आपको मेरा नाम कैसे मालूम हुआ?"

"अरे, द्वार पर ही तो रग्घू काका ने आपका नाम लिया था."

"ओह.....!" अनुपमा कंचन के पास ही बैठ गयी.

"रीतेश बाबू आपके दोस्त नजर नहीं आ रहे हैं.'

"मैं यहां हूं.....!" सभी की नजरें बालकानी पर चली गयी. अभय सीढ़ियां उतर रहा था. -"राज पैलेस में आप सबों का स्वागत है." अपने दोनों हाथ जोड़े हुए अभय नीचे आया. और बेतकल्लुफ़ रीतेश के पार्श्व में बैठ गया. 

"बेटा तुमलोग बातें करो मैं तब तक मैं भोजन लगवाता हूं." रग्घू बोला. 

"ठीक है काका." रग्घू के जाने के बाद अभय कंचन की ओर देखते हुए बोला -"कंचन क्या तुम इनको जानती हो?" अभय का इशारा अनुपमा की ओर था. उसकी बात सुनकर जहां अनुपमा रोमांचित हो उठी वहीं रीतेश बुरी तरह से चौंक पड़ा.

"इनका नाम तो जानती हूं, मगर.....?"  सभी की निगाहें अनुपमा पर जाकर स्थिर हो गयी.

"ये राज खानदान की होने वाली बहू है."

"क्या......?" कंचन, अनुपमा और रीतेश को ऐसा लगा जैसे उनके ऊपर बज्रपात हो गया हो. आश्चर्य तो राजीव उपाध्याय, समीर बदायुनी और विकास आनंद को भी हुआ था, मगर उतना नहीं जितना शॉक उन तीनों को लगा था. अनुपमा फटी फटी ऑंखों से कभी रीतेश को तो कभी अभय को घूरने लगी. यह क्या कह दिया अभय ने.? कुछ पल के लिए वहां ऐसी खामोशी छा गयी जैसे इन लोगों ने किसी अपने के मौत की ख़बर सुन ली हो.

"क्या हुआ..... तुमलोग इस तरह से खामोश क्यों हो गये, अरे भाई, अनुपमा भाभी की शादी मुझ से नहीं, बल्कि रीतेश के साथ होगी. मेरे दादाजी ने रीतेश को भी अपना पोता बनाया है, इसलिए यह भी राज खानदान का एक सदस्य हैं." 

"हुर्रे....." कंचन खुशी से उछल पड़ी. "मुबारक हो अनुपमा जी और रीतेश जी आपको भी."

"थैंक्स.....!" रितेश और अनुपमा के मुंह से एक साथ निकला.

"एक खुशखबरी और....!" अभय की आवाज सुनकर सभी चौंक कर उसकी ओर देखने लगे -"कल्ह दादा जी आनेवाले हैं, कंचन को धन्यवाद कहने के लिए, क्योंकि कंचन ने‌ एक अमानुष को भला मानुष बना दिया है." इसबार खुशी से उछलने की बारी रीतेश और अनुपमा की थी. वे दोनों कंचन का आभार  प्रकट कर रहे थे और अभय को बधाई दे रहे थे. जबकि कंचन के मन में तूफान मचल रहा था.

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क्रमशः..........!

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