ग्रीन रूम के पीछे वाले रास्ते से अभय अपनी धून में भागा जा रहा था. आज की खुशखबरी वह रग्घू काका और रीतेश को सुनाने के लिए ‌व्याकुल हो रहा था. इस तरफ कलाकारों के शिविर थे. इधर आने की अनुमति किसी को भी न थी. सिर्फ कलाकार और थियेटर के कर्मचारी ही आ सकते थे, चूंकि अभय भी इस थियेटर का एक हिस्सा बन चुका था इसलिए उसके तथा उसके दोस्तों के लिए इधर आने की मनाही नहीं थी. सभी कलाकार अभी ग्रीन रूम तथा मंच पर थे और कर्मचारी अपनी अपनी ड्यूटी कर रहे थे इसलिए इस तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. तभी अभय की नजर एक टेंट के निकट मंडरा रहे एक साये पर पड़ी. वह टेंट हुस्नबानो का था. उस साये को देख कर अभय बुरी तरह से चौंक पड़ा. कहीं यह कोई चोर तो नहीं है? ऐसी आशंका होते ही अभय ने पीछे से आकर उसे दबोच लिया और लगा उसकी धुलाई करने. वह व्यक्ति अचानक के इस हमले से घबरा गया और एकदम से अभय की ओर पलटते हुए बोला -"सर मुझे मत मारिए मैं अनबर हूं."

"कौन अनबर.?"

"इस थियेटर का एक मुलाजिम."

"इस समय तुम यहां क्या कर रहे हो?"

अभय के सवालों से अनबर इतना नर्वस हो गया कि माघ के इस सर्द महीने में भी वह पसीने से नहा गया. 

"जीतन बाबू ने मुझे फंसा दिया है सर."

"क्या कहा......जीतन बाबू ने....?" जीतन बाबू का नाम सुनते ही अभय के पूरे बदन में आग सी लग गयी.

"हां सर.... उन्होंने मुझे दो हजार रूपये दिये कि मैं उनको हुस्नबानो आपा के टेंट तक पहुंचा दूं."

"अभी कहां है वह पापी.?" अभय क्रोध से पागल हो गया.

"हुस्नबानो आपा के टेंट में."

"ओह....हे भगवान यह कैसा अनर्थ हो गया!" अभय अपना बाल नोचने लगा.  -"हरामजादे तुमने महज दो हजार रुपए में अपना इमान बेच दिया. मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ूंगा."

"मुझे मत मारिए सर मैं बेकसूर हूं. उन्होंने मुझे जान से मार डालने की धमकी दी थी." तभी अभय के कानों में हुस्नबानो की चीख सुनाई दी. 

"बचाओऽऽऽऽ!" मगर उसकी चीख फिजाओं में घूट कर रह गयी. किसी  अनिष्ट की आशंका से अभय भयभीत हो गया और उसकी छठी इन्द्री सजग हो गयी. अकरम को मुक्त  करते हुए बोला -

"तुम पंडाल में जाओ, मोहन बाबू और पुलिस सब-इंस्पेक्टर वर्मा जी को फौरन बुलाकर लाओ, खबरदार किसी कलाकार को इसकी जानकारी नहीं होनी चाहिए."

"जी सर....." अनबर को जैसे  नयी जिन्दगी मिल गयी. वह स्टेज की ओर दौड़ पड़ा और अभय हुस्नबानो के टेंट में घुस गया. हुस्नबानो एक फोल्डिंग पलंग पर चित लेटी हुई थी और जीतन बाबू जल्लाद की तरह उसकी छाती पर बैठकर उसे निर्वस्त्र करने की चेष्टा कर रहे थे. उस चाण्डाल का दाहिना हाथ हुस्नबानो के मुंह पर था, जिसके कारण उसके मुंह से घूंटी हुई चीख निकल रही थी. मगर स्वयं को बचाने के लिए वह पूरी ताकत से विरोध कर रही थी. जीतन बाबू की इस नीचता को देखकर अभय की ऑंखों में खून उतर आया उसने अपने पांव की ठोकर का ऐसा प्रहार उस पापी  पर किया कि वह लुढ़क कर फर्श पर आ गया. अभय ने उसे संभलने का मौका भी न दिया. वह पागल की तरह उसे धुनता चला गया. हुस्नबानो पलंग से उतर कर टेंट के एक कोने में दुबक गयी. अभय पर जैसे जुनून सवार हो चुका था. वह उस ऐय्यास बूढ़े पर लात और घूंसों से प्रहार पर प्रहार करता जा रहा था. इसी समय मोहन बाबू के साथ वर्मा जी और जीतन बाबू के सभी दोस्त अंदर‌ आ गये. उन लोगों  के साथ पुलिस के दो सशस्त्र जवान भी थे. यहां का नजारा देखकर सबों के पांव के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गयी. केदार बाबू, पारस बाबू , डाक्टर साहब और वकील साहब ने तो‌ सपने भी नहीं सोचा था कि जीतन बाबू ऐसी नीचता पर उतर आएंगे. शर्मिंदगी से उन लोगों की गर्दनें झुक गयी. वैसे तो जीतन बाबू नामका वह वहशी इंसान उम्र के इस पड़ाव पर आकर अशक्त हो चुका था मगर उसका खानदानी रुआब अभी जिन्दा था. मौका पाकर वह उठ खड़ा हुआ और किसी वहशी दरिंदा की तरह अभय पर टूट पड़ा -"साला....अभइया, तू जानता नहीं कि हम इहां सात पुश्तों से जमींदार हैं. हम कुछ भी कर सकते हैं, साला तू हमको रोकने वाला होता कौन है रे.?"

"तू जमींदार हैं तो किसी की भी इज्जत लूट लेगा. तुझ जैसे पापी को इस धरती पर जिंदा रहने का कोई हक नहीं, तुझे मरना ही होगा." अभय का खून खौलने लगा. उसने अपने हाथों से उस पापी की गर्दन दबोच ली और पूरी ताकत से दबाता चला गया. मोहन बाबू और वर्मा जी किंकर्तव्यविमूढ़ की हालत में पहुंच चुके थे. उन दोनों की समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब हो क्या रहा है? लगभग ऐसी ही हालत जीतन बाबू के दोस्तों तथा पुलिस के जवानों की भी हो चुकी थी. तब तक हुस्नबानो चैतन्य हो गयी और खड़ी हो कर अभय के विकराल रूप को देखने लगी. जीतन बाबू नाम के उस दरिंदे का दम घुटने लगा. उसके मुंह से गूं गूं की आवाज निकलने लगी और ऑंखें लाल सूर्ख हो गयी. उसकी हालत देख कर हुस्नबानो बुरी तरह से घबरा गयी. कहीं अभय के हाथों इस ज़लील इंसान की मौत न हो जाए, ऐसा सोच कर वह अभय के सामने  आकर खड़ी हो गयी और अधिकार पूर्ण स्वर में बोल पड़ी -"अभय छोड़ दो इस आदमी को."

"नहीं नहीं छोड़ूंगा मैं इस ऐय्यास बूढ़े को. इस उम्र में यह मासूम लड़कियों और महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ करता है, ऐसे इंसान को जिन्दा रहने का कोई हक नहीं." जीतन बाबू की गर्दन पर अभय के हाथों का दबाव बढ़ता चला गया. अब उस आदमी की ऑंखें बाहर को निकले लगी. उसकी हालत देखकर सभी घबरा गये. मोहन बाबू फिर अपना माथा पीटने लगे, यदि जीतन बाबू को कुछ हो गया तो क्या होगा.?

"सर प्लीज, जीतन बाबू को बचाइए?" वर्मा जी से विनती करते हुए वे बोले.

"अभय बाबू, छोड़ दीजिए इनको.....इनके गुनाहों की सजा कानून देगा."

"कुछ नहीं करेगा आपका कानून....!" तभी अभय के गाल पर एकबार फिर जोरदार चांटा पड़ा. अभी चांटा मारने वाली थी हुस्नबानो हुस्नबानो. 

"मेरी खातिर तुम किसी का क़त्ल करोगे.....? आखिर मैं तुम्हारी लगती कौन हूं." बिफर पड़ी हुस्नबानो. अभय का हाथ जीतन बाबू की गर्दन पर ढ़ीला पड़ गया. वह राक्षस धराम से गिर पड़ा. अभी तक उसकी सांसें चल रही  थी, मगर हालत चिंताजनक थी. उसकी हालत को देखकर डाक्टर साहब चिल्ला पड़े -"जीतन बाबू को जल्दी से मेरी क्लिनिक पर ले चलो." पुलिस के दोनों जवान उसे उठाकर बाहर की ओर भाग खड़े हुए. उनके पीछे पीछे केदार बाबू, पारस बाबू, डाक्टर साहब तथा वकील साहब भी बाहर निकल गये.

"तुम जबाव क्यों नहीं देते, मैं कौन लगती हूं तुम्हारी?'

"मैं नहीं जानता कि आप मेरी कौन लगती हैं, मगर उस रात जब मैंने पहली बार आपको इस थियेटर में नाचते हुए देखा, तब मेरे दिल को धक्का लगा. तभी मेरी इच्छा हुई कि मैं आपको नाचने से रोक दूं, मगर रोक नहीं पाया. जब वह शैतान जीतन बाबू आपकी अदाकारी पर अश्लील हरकतें किया करता था तब मेरा ख़ून खौलने लगता था. वह तो कंचन मुझे रोक दिया करती थी. नहीं तो मैं स्टेज पर जाकर ही उसकी....!"

"ऊफ़.....बस करो, बस करो, आगे कुछ भी मत बोलो." हुस्नबानो अपने दोनों कान बंद करके फर्श पर बैठ गयी और बेशुमार ऑंसू बहाने लगी.

"एक बात कहूं आपसे.....?" अभय हुस्नबानो के सामने आकर आदरभाव से बोल पड़ा -"आपका स्टेज पर नाचना गाना मुझे अच्छा नहीं लगता, आप मेरे राज पैलेस में चल कर रहिए, मेरे दादाजी बहुत अच्छे इंसान हैं, वे आपको मेरी मां का दर्जा देकर रखेंगे.!"

"तुम्हारी मां कहां है....?" विकलता से पूछ बैठी हुस्नबानो.

"वे तो भगवान को प्यारी हो गयी." मासूमियत से बोला अभय.

"क्या.....?" ऐसा लगा जैसे हुस्नबानो निष्प्राण हो जाएगी. मोहन बाबू ने तेजी से आगे बढ़कर उसे थाम लिया.

"हुस्नबानो होश में आओ."

"मैं ठीक हूं, मोहन बाबू....मगर इस लड़का को कहिए यहां से चला जाए." हुस्नबानो का इशारा अभय की ओर था.

"अभय बाबू.....!"

मोहन बाबू  अभय की ओर आग्रह पूर्वक देखने लगे.

"मैं जा रहा हूं, मगर मेरे प्रस्ताव पर आप विचार कीजिएगा जरूर." किसी अज्ञात शक्ति से प्रेरित होकर अभय हुस्नबानो के चरणों में झूक गया. फिर एक झटके में उठकर टेंट से बाहर निकल गया. उसके जाने के बाद हुस्नबानो मोहन बाबू और वर्मा जी की ओर देखती हुई हुस्नबानो बोली -

"आप लोग भी जाईए, मुझे तन्हा छोड़ दीजिए.  वे लोग भी चले गये. हुस्नबानो ज़मीन पर बैठकर बेशुमार ऑंसू बहाने लगी.

∆∆∆∆∆∆

क्रमशः............!

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