पद्मावत फिल्म को लेकर केवल सड़कों पर ही हिंसा का माहौल नहीं है, सोशल मीडिया पर भी यही हाल है। कई जगह सिनेमाघरों में तोड़फोड़ की वारदातें भी हुई। चक्काजाम और वाहनों में तोड़फोड़ का एक वर्ग ने खुलकर विरोध किया और एक वर्ग ऐसा है, जो इसे राजपूतों के स्वाभिमान से जोड़ रहा है। पद्मावत पर हिंसा करने वालों के पक्ष में कहा जा रहा है कि उन्होंने नारी स्वाभिमान की रक्षा करने वाली पद्मावती के गलत चित्रण का विरोध किया है। इस पर तो लोगों को आपत्ति है, लेकिन जो लोग भारत तेरे टुकड़े होंगे, जैसे नारे लगा रहे थे, उनके खिलाफ लोगों के मन में कोई रोष नहीं है।
गुरूग्राम में एक स्कूल की बस पर प्रदर्शनकारियों ने पथराव किया, जिससे बच्चे भयाक्रांत होकर रोने-चीखने लगे। पथराव में कोई घायल नहीं हुआ और पुलिस के आते ही प्रदर्शनकारी भाग निकले। इस वारदात को सोशल मीडिया पर आंदोलनकारियों की कायरना हरकत बताया गया और यह भी कहा गया कि आंदोलनकारियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए।
अधिकांश लोगों की राय थी कि जिस एकजुटता और जोश के साथ पद्मावत का विरोध किया जा रहा है, वैसा ही विरोध लड़कियों की आबरू से खेलने वालों के खिलाफ नजर नहीं आता। पद्मावत के पक्ष में लोगों ने लिखा कि इस फिल्म में राजपूतों का महिमामंडन ही है। जब इसमें कुछ भी राजपूतों के विरूद्ध नहीं है, तो फिर विरोध की जरूरत ही क्या ?
सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट भी देखने को मिले, जिसमें लोगों ने अनुमान जताया कि पद्मावत के खिलाफ सारा बखेड़ा भंसाली और करणी सेना ने मिलकर ही किया है, ताकि फिल्म को बेहिसाब प्रचार मिल सके। सोशल मीडिया पर ही केन्द्रीय मंत्री वीके सिंह के उस बयान को भी लोगों ने आड़े हाथ लिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब चीजें सहमति से नहीं होती है, तब गड़बड़ी होती है। मध्यप्रदेश, गोवा, गुजरात और राजस्थान के सिनेमा मालिकों ने रिलीज वाले दिन से फिल्म नहीं दिखाने का निर्णय लिया, उन्हें लगता है कि हालात सुधरने के बाद वे फिल्म का प्रदर्शन अपने यहां होने देंगे। ऐसे लोग भी है, जो सोशल मीडिया पर इस तरह की कसमें खा रहे हैं कि मैं पद्मावत देखने नहीं जाउंगा, चाहे कोई मुझे उसके टिकिट से दोगुनी कीमत ही क्यों न दें। अभिनेत्री रेणुका शहाने ने फिल्म पद्मावत के विरोध करने वालों के खिलाफ सोशल मीडिया पर जमकर अभियान चलाया।
केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाते हुए लोगों ने लिखा है कि ये सब मिलकर भी देश में एक फिल्म का प्रदर्शन नहीं करवा सकते। अर्थव्यवस्था की बात तो छोड़ दीजिए। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बयान में कहा था कि ऐसी फिल्म, जिससे लोगों की भावना को चोट पहुंचती हो, बनाना ही नहीं चाहिए।
गुरूग्राम की स्कूल बस पर हुए हमले को लोगों ने बहुत ही शर्मनाक घटना बताते हुए लिखा कि गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर हमारा सिर शर्म से झुका होगा कि लोग एक फिल्म के बहाने बच्चों पर हमला कर रहे हैं। ऐसे लोग भी हैं, जो लिख रहे हैं कि मैं राजपूत हूं और मैं पद्मावत फिल्म देखने जरूर जाऊंगा। मैं करणी सेना के किसी भी कदम का स्वागत नहीं करता। फिल्म देखने के बाद कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि दो-ढाई हजार रूपए तक की टिकिट खरीदने वालों को इस फिल्म से निराशा ही हुई है, फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है कि इतने महंगे टिकिट लेकर फिल्म देखी जाए।
फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग से नाराज लोगों ने यह भी सुझाव दिया है कि पद्मावत फिल्म को ऑनलाइन देखने की सुविधा मिलनी चाहिए। इसे अमेजॉन प्राइम अथवा यू-ट्यूब या हॉट स्टार पर दिखाया जा सकता है और उसके लिए शुल्क रखा जा सकता है। इस तरह निर्माता अपनी फिल्म की लागत का एक हिस्सा निकाल सकते है।
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