‘दक्षायणी’ का लोकार्पण और परिचर्चा
21 अप्रैल 2018 को वाणी प्रकाशन से प्रकाशित
प्रखर वक्ता एवं विचारक अरुणा मुकिम का नया उपन्यास
‘दक्षायणी’ का लोकार्पण और परिचर्चा कमीशन रूम फिक्की फेडरेशन हाउस 1, तानसेन मार्ग, मण्डी हाउस, नयी दिल्ली में
अपराह्न 3:00 बजे किया गया। लोकार्पण और परिचर्चा में शायर, फ़िल्म गीतकार और पटकथा लेखक जावेद
अख़्तर, भारतीय फ़िल्म निर्देशक, निर्माता और पटकथा लेखक महेश भट्ट, अभिनेता और सामाजिक
कार्यकर्ता नफ़ीसा अली, हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा, प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक डॉ.
वेद प्रताप वैदिक, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक सैफ़ुद्दीन सोज़ और साथ ही वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध
निदेशक अरुण माहेश्वरी का सान्निध्य रहा।
मंच का संचालन करते हुए हास्यकवि सुरेन्द्र शर्मा ने सभी वक्ताओं का स्वागत किया और कहा कि यह पुस्तक शिव और पार्वती पर आधारित है। नारियों को उचित सम्मान देने के लिए ऐसी पुस्तक आनी भी चाहिए। ऐसी पुस्तक की आज के समय
में प्रासंगिकता है। वाणी प्रकाशन ने यह पुस्तक प्रकाशित करके पाठकों को पौराणिक साहित्य से परिचित
कराया है। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने पुस्तक की लेखिका अरुणा मुकिम को अपने विचार व्यक्त करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया।
पुस्तक की
लेखिका अरुणा मुकिम ने कहा कि शिव और पार्वती से
बड़ा कोई नाम नहीं है इसमें शिव और शक्ति के प्रेम
के वास्तविक स्वरूप की अद्भुत व्याख्या की गयी है। मैंने इसमें
अपने को सती के रूप में परिकल्पना कर, नारी जीवन
के संघर्षों एवं विषमताओं का अत्यन्त प्रभावशाली चित्रण किया है। उन्होंने वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अरुण माहेश्वरी और
निदेशक अदिति माहेश्वरी का आभार प्रकट किया। उन्होंने जावेद अख्तर के बारे में कहा कि जावेद जी को पानी पर पानी लिखना आता है तभी तो उन्हें जावेद
जी कहते हैं। अरुणा मुकिम का कहना था कि महेश भट्ट ने ही मुझे पढ़ना
सिखाया और लिखने की
प्रेरणा दी। पुस्तक के बारे में कवर पृष्ठ पर टिप्पणी भी महेश
भट्ट ने लिखी है।
हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए डॉ. वेद प्रताप वैदिक को अपने विचार रखने के लिए मंच
पर बुलाया।
वैदिक जी का कहना था कि इस पुस्तक में जो सती है वह सम्मान की रक्षा करने वाली है। अरुणा जी ने इस पुस्तक पर
बहुत अच्छा रोल किया है। इस पुस्तक में दर्शन की बारीकियाँ देखने को मिलती हैं। इन सभी का अरुणा जी ने बारीकी से विश्लेषण किया है।
उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अरुणा जी इसी तरह की अनेक रचनाएँ साहित्य जगत को देती रहेंगी।
अभिनेता और सामाजिक कार्यकर्ता नफ़ीसा अली ने पुस्तक की लेखिका अरुणा जी और वाणी प्रकाशन को पुस्तक प्रकाशित करने के लिए आभार प्रकट किया।
भारतीय फ़िल्म
निर्देशक, निर्माता और पटकथा लेखक महेश भट्ट का कहना था कि उन्होंने अरुणा जी के लेखन के साथ-साथ उनका हर क्षेत्र में साथ दिया है। पुस्तक
के बारे में महेश भट्ट ने कहा कि शिव से हमारा रिश्ता बहुत पुराना है। मैंने बचपन में अपनी माँ से पूछा कि महेश का मतलब क्या है तो उन्होंने कहा कि महाईश यानि की सबसे बड़ा ईश्वर। मेरी शिया मुसलमान माँ ने शिव की कहानी सुनाई थी। गणेश जी क्या थे यह भी मेरी माँ ने बताया
था। ये कहानियाँ तभी ज़िन्दा रहेंगी जब हम एक-दूसरे का हाथ थाम कर चलें।
सैफ़ुद्दीन सोज़ ने अपने विचार रखते हुए कहा
कि हिन्दी और उर्दू एक ही तहज़ीब हैं। मैंने अरुणा जी से दोस्तोव्स्की पढ़ो, टॉल्स्टोय पढ़ो इत्यादि
यह सब पढ़ने के लिए कहा। और अरुणा जी ने जो लिखा है उसमें इस पाठ के दर्शन की छवि है।
शायर, फ़िल्म गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख़्तर ने कहा कि अरुणा जी ने हर वह काम किया है जो नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस
व्यक्ति का रामायण या महाभारत से रिश्ता नहीं वह इन्सान नहीं। जावेद साहब का कहना
था कि हमारी भाषा हमारी जड़ है। जितनी ये बाहर फैले उतनी ही जड़े मजबूत होंगी। सेहतमन्द और ग़हरा पेड़ वही है जिसकी जड़ें गहरी हैं। माइथोलोजी को नए विश्लेषण के साथ लिखा जाना चाहिए। अरुणा जी ने यह पुस्तक
लिखकर वह काम बखूबी किया है। अरुणा जी का लिखना उनकी मोहब्बत है, मजबूरी नहीं
कार्यक्रम का समापन करते हुए वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल ने
कार्यक्रम में आये
सभी विद्वानों और श्रोताओं का धन्यवाद
प्रकट किया और युवा शायर सतेन्द्र ‘मनम’ के शेर का उल्लेख
करते हुए अपनी बात समाप्त की-
दुकान किताब की
महज़ इक दुकान नहीं
जमा है इसमें समन्दर
उफ़नते ख़यालों का
किताबें बेचने वाली
दुकानें ख़ास होती हैं
यहाँ जज़्बात मिलते हैं
ख़यालात मिलते हैं
यहाँ आदमी को इंसां बनाने के
सारे समानात मिलते हैं ।
(सांस्कृतिक संवाददाता की रपट)
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