(एक)
सौ रंग तेरे मानी-ओ-मफ़हूम-ए-ख़यालां
हर बार ही पाकीज़ा लगे जोश-ए-जमालां
हर एक अदा तेरी क़यामत की अदा है
शरमाये तेरे सामने दुनिया के कमालां
समझे न कोई अहले-नज़र तेरे इशारे
हर इल्म से बढ़कर हैं ख़मोशी के सवालां
कुछ उसके सिवा काम सियासत में नहीं है
अब अपना वतन बेच के खाये हैं दलालां
दो चार ही लम्हों ने मिटा डाली हैं सदियां
देखे हैं ज़मीनों पे कई ऐसे जलालां
चमका दिये तालीम के फिर चाँद-सितारे
इस्लाम में जागी हैं कई ऐसी मलालां
रक्खा है बड़ी शान से ग़ैरत ने हमारी
टकराये कोई हमसे भला किसकी मजालां
मेहनत से ग़रीबों ने कभी हार न मानी
खाते हैं बड़े नाज़ से ये रिज़्क-ए-हलालां
ऐ 'अश्क' सजाया है सुख़न ऐसे हुनर से
अल्फ़ाज़ हैं औराक़ पे ज्यूँ चश्म-ए-ग़ज़ालां
(दो)
सौ रंग तेरे मानी-ओ-मफ़हूम-ए-ख़यालां
हर बार ही पाकीज़ा लगे जोश-ए-जमालां
हर एक अदा तेरी क़यामत की अदा है
शरमाये तेरे सामने दुनिया के कमालां
समझे न कोई अहले-नज़र तेरे इशारे
हर इल्म से बढ़कर हैं ख़मोशी के सवालां
कुछ उसके सिवा काम सियासत में नहीं है
अब अपना वतन बेच के खाये हैं दलालां
दो चार ही लम्हों ने मिटा डाली हैं सदियां
देखे हैं ज़मीनों पे कई ऐसे जलालां
चमका दिये तालीम के फिर चाँद-सितारे
इस्लाम में जागी हैं कई ऐसी मलालां
रक्खा है बड़ी शान से ग़ैरत ने हमारी
टकराये कोई हमसे भला किसकी मजालां
मेहनत से ग़रीबों ने कभी हार न मानी
खाते हैं बड़े नाज़ से ये रिज़्क-ए-हलालां
ऐ 'अश्क' सजाया है सुख़न ऐसे हुनर से
अल्फ़ाज़ हैं औराक़ पे ज्यूँ चश्म-ए-ग़ज़ालां
- इब्राहीम अश्क
सौ रंग तेरे मानी-ओ-मफ़हूम-ए-ख़यालां
हर बार ही पाकीज़ा लगे जोश-ए-जमालां
हर एक अदा तेरी क़यामत की अदा है
शरमाये तेरे सामने दुनिया के कमालां
समझे न कोई अहले-नज़र तेरे इशारे
हर इल्म से बढ़कर हैं ख़मोशी के सवालां
कुछ उसके सिवा काम सियासत में नहीं है
अब अपना वतन बेच के खाये हैं दलालां
दो चार ही लम्हों ने मिटा डाली हैं सदियां
देखे हैं ज़मीनों पे कई ऐसे जलालां
चमका दिये तालीम के फिर चाँद-सितारे
इस्लाम में जागी हैं कई ऐसी मलालां
रक्खा है बड़ी शान से ग़ैरत ने हमारी
टकराये कोई हमसे भला किसकी मजालां
मेहनत से ग़रीबों ने कभी हार न मानी
खाते हैं बड़े नाज़ से ये रिज़्क-ए-हलालां
ऐ 'अश्क' सजाया है सुख़न ऐसे हुनर से
अल्फ़ाज़ हैं औराक़ पे ज्यूँ चश्म-ए-ग़ज़ालां
(दो)
सौ रंग तेरे मानी-ओ-मफ़हूम-ए-ख़यालां
हर बार ही पाकीज़ा लगे जोश-ए-जमालां
हर एक अदा तेरी क़यामत की अदा है
शरमाये तेरे सामने दुनिया के कमालां
समझे न कोई अहले-नज़र तेरे इशारे
हर इल्म से बढ़कर हैं ख़मोशी के सवालां
कुछ उसके सिवा काम सियासत में नहीं है
अब अपना वतन बेच के खाये हैं दलालां
दो चार ही लम्हों ने मिटा डाली हैं सदियां
देखे हैं ज़मीनों पे कई ऐसे जलालां
चमका दिये तालीम के फिर चाँद-सितारे
इस्लाम में जागी हैं कई ऐसी मलालां
रक्खा है बड़ी शान से ग़ैरत ने हमारी
टकराये कोई हमसे भला किसकी मजालां
मेहनत से ग़रीबों ने कभी हार न मानी
खाते हैं बड़े नाज़ से ये रिज़्क-ए-हलालां
ऐ 'अश्क' सजाया है सुख़न ऐसे हुनर से
अल्फ़ाज़ हैं औराक़ पे ज्यूँ चश्म-ए-ग़ज़ालां
- इब्राहीम अश्क
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