- ललित गर्ग
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत के बाद दोनों देशों के साझा बयान में जिस तरह सीमापार आतंकवाद के खिलाफ बिना किसी दोहरे मानदंड के निर्णायक लड़ाई का आह्वान किया गया, वह पाकिस्तान के साथ-साथ अमेरिका के लिए भी यह नसीहत है कि उसे इस मामले में अपनी रीति-नीति बदलनी होगी। पुतिन की इस यात्रा पर सबकी नजरे जिस बात पर टिकी थी वह है भारत और रूस के बीच एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 की खरीद से जुड़ी 5.2 अरब डॉलर की डील पर दस्तखत होना। अमेरिकी दबाव के बावजूद यह डील होना भारत के एक नये दृष्टिकोण एवं साहस का उद्घाटित कर रहा है। पुनित की इस यात्रा में दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए है, अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग पर भी सहमति बनी है, दोनों की मित्रता को भी नया आयाम मिला है- इन सब स्थितियों से आतंकवाद से निपटने के साथ-साथ विकास के नये रास्ते खुलेंगे। संतुलन एवं शांति का वातावरण स्थापित होगा।
दुनिया में अनेक विचारधाराएं एवं वाद प्रचलित हैं तथा इनको क्रियान्वित करने के लिए अनेक तंत्र, नीतियां एवं प्रणालियां भी हैं। इन पर अलग-अलग राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष देश, काल, स्थिति अनुसार इनकी संचालन शैली भी बदलते रहते हैं। भारत भी अपनी विदेश नीति में बदलाव करता रहा है, लेकिन भारत और रूस के बीच कूटनीतिक संबंधों के 70 साल पूरे होने पर भी उनमें कोई बुनियादी बदलाव नहीं हुआ है। दोनों देशों ने एक बार फिर नयी ऊर्जा, जोश एवं संकल्प के साथ हाथ मिलाये हैं। भारत-रूस के संबंध जटिल हालातों में भी बरकरार रहे हैं, वे परीक्षा के समय एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं और ताकत के साथ विकसित होते रहे हैं। ये संबंध लचीलापन, समानता, विश्वास और आपसी लाभ के सिद्धांत के आधार पर जुड़े रहे हैं। दोनों ही देशों ने राष्ट्रीय विकास और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में बदलती वास्तविकताओं की अलग-अलग स्थितियों में भी अपनी साझेदारी में सामंजस्य बिठाया रखा है, मित्रता को कायम रखा है।
आज की दुनिया में कोई भी देश पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं है। सभी अपनी जरूरतों के लिए किसी न किसी हद तक दूसरे देशों पर निर्भर रहते हैं। भारत भी रक्षा जरूरतों के लिए लंबे समय से रूसी सहयोग पर निर्भर रहा है, जबकि निर्यात के मामले में अमेरिका पर उसकी निर्भरता जगजाहिर है। ऐसे में अमेरिका से करीबी रिश्तों का मतलब रूस से दूरी नहीं माना जाना चाहिए। दूसरी ओर यह भी तथ्य है कि रूस से समझौते का मतलब अमेरिका से नाराजगी भी नहीं माना जाना चाहिए। भारतीय कूटनीति की अगली चुनौती अमेरिका को यही बात समझाने की होनी चाहिए कि रूस से ताजा समझौते का मतलब अमेरिका की अवहेलना करना नहीं है। रूस से रक्षा सामग्री और ईरान से तेल खरीदना भारत की मूलभूत जरूरतें हैं, ठीक उसी तरह व्यापारिक एवं आर्थिक जरूरतों के लिये अमेरिका की भी भूमिका है। अमेरिका को इस पर अवश्य विचार करना चाहिए। अमेरिका से भारत की नजदीकी का फायदा जितना भारत को है उतना ही अमेरिका को भी है। शायद इसी वजह से हाल के समय में अमेरिका ने पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ सख्ती करने के लिए दबाव डाला है और इस क्रम में उसे मिलने वाली सहायता को भी आतंकियों और उनके संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की शर्त से जोड़ दिया है। लेकिन इसमें भी अमेरिका की अपने हितों को लेकर चिन्ता ही प्रमुख है। क्योंकि अमेरिका अपने लिए खतरा बने आतंकी संगठनों को लेकर तो पाकिस्तान पर सख्ती बरत रहा है, लेकिन वैसी ही गंभीरता लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे उन आतंकी संगठनों के खिलाफ नहीं दिखाई जा रही है जो भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं। अमेरिका को यह महसूस करना चाहिए कि ऐसे संगठन पूरी दुनिया के लिए खतरा हैं। हर कोई इससे भी परिचित है कि ऐसे संगठन कहां फल-फूल रहे हैं।
आतंकवाद से समूची दुनिया चिन्तीत है, लेकिन शक्तिशाली राष्ट्र चाहे अमेरिका हो या चीन- दोहरे मानदंड अपनाते रहे हंै। यही वह रवैया है, जिसके चलते आतंकवाद के खिलाफ दुनिया की साझा लड़ाई उतनी प्रभावशाली नहीं हो पा रही है, जितनी उसे होना चाहिए। जो भी हो, भारत और रूस ने जिस तरह अमेरिका की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए अपने रक्षा सहयोग को एक नए आयाम पर पहुंचाते हुए एस-400 वायु रक्षा प्रणाली के सौदे को अंतिम रूप दिया वह भारत की प्रतिरक्षा तैयारियों के लिए बेहद अहम है, वक्त कर जरूरत है। इस सौदे ने भारत के एक महत्वपूर्ण और भरोसेमंद रक्षा सहयोगी के रूप में रूस की भूमिका पर नए सिरे से मुहर लगाई है। इस डील को लेकर अमेरिका का सख्त एतराज था और ठीक इसी सौदे को मुद्दा बनाकर वह चीन की कई रक्षा इकाइयों पर प्रतिबंध लगा चुका है। इस डील की संभावनाओं को देखते हुए पहले संकेतों में और बाद में खुले तौर पर अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि अगर भारत ने रूस से एस-400 खरीदने का समझौता किया तो वह प्रतिबंधों के दायरे में आ जाएगा। पिछले कुछ समय से भारत और अमेरिका की नजदीकियां जिस तेजी से बढ़ी हैं, उसे देखते हुए यह आशंका जोर पकड़ने लगी थी कि कहीं अमेरिका अपने अन्य समर्थक देशों की तरह भारत पर भी अपनी इच्छाएं तो नहीं लादने लगा है? दोस्ती में एक-दूसरे की चिंताओं और हितों का एक हद तक ख्याल रखा ही जाता है, पर अपनी रक्षा और विदेश नीति तय करने का अधिकार कोई संप्रभु राष्ट्र भला कैसे छोड़ सकता है? रूस से एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की खरीद का समझौता करके भारत ने यह संकेत दे दिया है कि वह किसी के भी दबाव की परवाह किए बिना अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देगा। इस सौदे के बाद अमेरिका की प्रतिक्रिया जो भी हो, भारत को उसके समक्ष यह साफ करने में संकोच नहीं करना चाहिए कि भारत को अपनी रक्षा जरूरतें पूरी करने के लिए हर आवश्यक कदम उठाने का पूरा अधिकार है।
समय के साथ लोगों की सोच बदलती है, अपेक्षाएं बदलती है, विकास की नई अवधारणाएं बनती हैं। कई पुरानी मान्यताएं, शैलियां पृष्ठभूमि मंेे चली जाती हैं। जिनकी कभी तूती बोलती थी, वे खामोश हो जाती हैं। लेकिन भारत और रूस की दोस्ती आज भी कायम है। दुनिया के दो बड़े देशों की मित्रता का जब कभी जिक्र होता है, तो वो जिक्र रूस और भारत के बिना अधूरा रह जाता है। भारत और रूस की दोस्ती बहुत सालों से चली आ रही है, इतिहास गवाह है कि जब भी कभी भारत को किसी सहायता की जरूरत पड़ी है, तो रूस कभी पीछे नहीं हटा है और उसने भारत की मदद पूरी ताकत के साथ की है। भारत भी रूस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना समर्थन देता रहा है। ऐसे कई मौके आए जब दुनिया के तमाम बड़े देश रूस के खिलाफ खड़े मिले लेकिन भारत ने अपनी दोस्ती निभाई और खुलकर रूस का समर्थन किया। भारत और रूस की इस दोस्ती पर अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान जैसे देशों की नजरें भले ही टिकी रहे, लेकिन शांति एवं सह-जीवन के लिये दोनों देशों ने नई मिशालें कायम की है, जिसे पुतिन और मोदी की ताजा मुलाकात और सुदृढ़ बनायेंगी। नरेन्द्र मोदी केे पीएम बनने के बाद इन संबंधों में और मिठास आई है, जो एक नई सुबह एवं आशा की किरण है, भारत के शक्तिशाली बनने का द्योतक हैं। जब भारत-अमेरिका ने सैनिक समझौता को लेकर एक डील की थी, तब चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की नींदे उड़ गयी थीं, ठीक उसी तरह भारत का रूस को ब्रह्मोस बेचना भी पड़ोसी देशों को और बेचैन करने वाली घटना बनी। वैसे भी अंतराष्ट्रीय स्तर पर हमेशा रूस ने भारत की मदद की है चाहे वो संयुक्त राष्ट्र में भारत के लिए वीटो पॉवर का इस्तेमाल करना हो, या तब जब सभी बड़े देश 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में पाकिस्तान के साथ खड़े थे। भारत में नई भाजपा सरकार बनने के बाद मोदी ने सभी देशों से रिश्ते सुधारे, खासकर अपने पुराने मित्र देश रूस से।
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में शुमार और आधुनिक हथियारों के मामले में सबसे आगे रहने वाला देश रूस, भारत की मदद करने के साथ-साथ भारत को बहुत सारे आधुनिक हथियार भी देता रहा हैं, जिनसे भारत को एक ताकतवर देश बनने में मदद मिली हैं। अभी तक भारत अधिकतर आधुनिक हथियारों, विमानों और भी अन्य चीजों के लिए रूस जैसे बड़े देशों पर निर्भर रहता था, लेकिन अब भारत अपनी ताकत स्वयं बन रहा है, वह अपनी इस ताकत से रूस को भी जोड़े और रूस उससे जुड़े तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। प्रश्न आतंकमुक्त विश्व संरचना का है, क्योंकि आतंकवाद सभ्य समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह हमारे जीने के तरीके को प्रभावित करता है, अशांत बनाता है। दुनिया में पारंपरिक शक्ति संतुलन में गिरावट आ रही है। नए प्रभावशाली शक्ति केंद्र और साधन उभर रहे हैं, उनके बीच भारत अपने शक्ति के केन्द्रों को सशक्त बनाकर ही सुरक्षित रह सकता है और ताकतवर बन सकता है। जो भी रुका, जिसने भी जागरूकता छोड़ी, जिसने भी सत्य छोड़ा, वह हाशिये में डाल दिया गया। आज का विकास, चाहे वह एक व्यक्ति का है, चाहे एक समाज का है, चाहे एक राष्ट्र का है, वह दूसरों से भी इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि अगर कहीं कोई गलत निर्णय ले लेता है तो प्रथम पक्ष बिना कोई दोष के भी संकट में आ जाता है। इसलिए आज का विकास यह संदेश देता है कि सबका विकास हो। प्रथम से लेकर अंतिम तक का। इसी को गांधी और विनोबा ने कहा ‘सर्वोदय’, इसी को महावीर ने कहा-‘परस्परोपग्रहो’। भारत और रूस की मित्रता और आपसी समझौते इसी सर्वोदय एवं परस्परोपग्रहो की भावना का प्रतीक है।
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