प्रयागराज। डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ ने दिल में उतर जाने वाले दोहे लिखे हैं, उन्होंने निर्भिक होकर सबकुछ लिखा है। राजनीति की उथल-पुथल देखकर वह कहते हैं-‘कल तक बैठे साथ थे, आज हुए उस ओर/कितनी मैली हो गई राजनीति की डोर।’ देश की चिंता करते हुए कहते हैं- भीतर हैं घुसपैठिए, सीमाएं हैं बंद/जिंदा हैं जाफ़र यहां, जिंदा हैं जयचंद।’ इनकी भाषा आमफहम है और शिल्प की कसौटी पर खरे उतरते हैं, वे सही मायने में देश के आधुनिक दोहाकार हैं। समय की बागडोर थामकर चलते हैं और सारी विडंबनाओं पर अपनी बात साफ़गोई से कहते हैं। यह बात सोमवार को गुफ़्तगू द्वारा आयोजित आॅनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में वरिष्ठ शायर सागर होशियारपुरी ने डाॅ. शैलेष गुप्त ’वीर’ के दोहों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही।

डाॅ. इसरार अहमद ने कहा कि डॉ. शैलेश गुप्त वीर के दोहे गागर में सागर की कहावत को चरितार्थ करते हैं। सरल भाषा में जीवन के प्रत्येक पहलू को लेखनी बंद कर अपनी विद्वता का लोहा मनवाने को मजबूर किया है। जिस प्रकार महान कथाकार एवं उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी ने हमेशा सच्चाई को ही लेखनी से उजागर किया है ठीक उसी प्रकार आपके दोहो से भी सच्चाई स्पष्ट झलकती है।

जमादार धीरज ने कहा कि डॉ. वीर के दोहे मात्राओं की शास्त्रीय सीमारेखा की मर्यादा में कसे भावानुकूल परिष्कृत शब्दों से सुशोभित स्वतंत्र और सम्पूर्ण अर्थ समेटे बड़े ही कलात्मक अलंकरण के साथ काव्य परम्पराओं की रक्षा करते हुए रचे गए हैं। दोहों के दो पंक्तियों के लघु कलेवर में सामाजिक चेतना के प्रति पूर्ण आस्था व्यक्त करते हुए उनमें व्याप्त विसंगतियों और विद्रूपताओं करारा प्रहार किया गया है। प्रेम रीति, नीति, आध्यात्म राजनीति, गांव आदि विषयों पर धारदार दोहे लोकप्रिय होंगे। भाषा हिन्दी के सरल शब्दों के साथ आगे बढ़ते हुए भाव उजागर करने में सफल हैं।

मनमोहन सिंह तन्हा के मुताबिक डॉ. वीर विविध रंगों से सजे अपने दोहों से हमें जीवन के सच से रूबरू करवाते चलते हैं, और समाज में हो रही विसंगतियों पर भी गहरा कटाक्ष करते हैं। जीवन का कोई भी संदर्भ आप की पैनी निगाहों से बच नहीं सका है, जो आपकी लेखनी के माध्यम से सामने न आया हो। हमेशा तरोताजा और उत्साहित रह के जीवन को पूरी सच्चाई से जीने को प्रेरित कर रहे हैं आपके दोहे।

इनके अलावा डाॅ. नीलिमा मिश्रा, इश्क़ सुलतानपुरी, नरेश महारानी, शैलेंद्र जय, अनिल मानव, मासूम रजा राशदी, ऋतंधरा मिश्रा, शगुफ़्ता रहमान, नीना मोहन श्रीवास्तव, रमोला रूथ लाल ‘आरजू’, अर्चना जायसवाल ‘सरताज’, डॉ. ममता सरूनाथ, संजय सक्सेना, विजय प्रताप सिंह, शैलेंद्र कपिल और रचना सक्सेना ने अपने विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया।

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