-डाॅ0 अमिता दुबे,
डाॅ0 विनयदास द्वारा तैयार की गयी और उद्योग नगर प्रकाशन (गाजियाबाद) से प्रकाशित पुस्तक ’समीक्षा के सोपान’ 27 पुस्तकों की समीक्षा को अपने अंदर समाहित किये हुए हैं। विनय जी केवल ससीक्षाक ही नही हैं वे रचनाकार भी हैं; उनकी रचनात्मकता और उनका लेखन-चिंतन का अलग और स्पष्ट दृष्टिकोण की समीक्षाओं में भी देखने को मिलता है। यह साहित्य और साहित्यकार दोनों ही के लिए महत्त्वपूर्ण है।
"समीक्षा के सोपान" विनय जी की समीक्षा की पाँचवी पुस्तक है। उन्होंने समीक्षा के बहाने साहित्य की विभिन्न विधाओं में सार्थक हस्तक्षेप किया है। इस हस्तक्षेप में वे उदार होते नहीं दिखते। उनका निर्मम होना ही आलोचना या समीक्षा की कसौटी का खरापन है जो डाॅ0 विनयदास को सफल आलोचक या समीक्षक सिद्द करता है।
इस पुस्तक में डाॅ0 विनयदास ने मेरे उपन्यास ’एकान्तवासी शत्रुध्न’ को भी स्थान दिया है। उनकी उत्साहवर्धक टिप्पणी एक ओर मेरा मनोबल बढाती है वही दूसरी ओर उनकी यह टिप्पणी-’यह उपन्यास गंभीर सैंशलिस्टअर्थी न होकर इकहरेपन का शिकार है। यदि इसके केन्द्र में डाॅ0 अमिता दुबे कोई गंभीर वैचारिकी रखकर बहुआयामी उद्देश्य से इसे लिखतीं तो यह निश्चय ही और भी अधिक ऊँचाइयो को छूने में समर्थ होता, मेरे लेखक को सजग करता है। ऐसी सुझावात्मक टिप्पणी साहित्य की समीक्षा में कम देखने को मिलती है। यह समीक्षाक के गम्भीर अध्ययन और निष्पक्ष दृष्टि का सुफल है! साधुवाद।
प्रधान सम्पादक : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
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