होली पर विशेष आलेख
"तथास्तु...." बिना कुछ सोचे समझे कामदेव ने पार्वती जी को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी. वे कामेच्छा को जगाने वाले अपने पुष्प वाण लेकर पहुँच गये वहाँ, जहाँ भोले शंकर कठिन तपस्या में लीन थे. कामदेव ने निशाना साधकर उनपर पुष्प वाण छोड़ दिया. पुष्प वाण सीधा भोले शंकर के कलेजे में जा चूभा. पलक झपकते ही वहाँ बसंत बहार छा गया. काम वासना को जागृत कर देनेवाला वयार बहने लगा और भगवान् शिव शंभु कामाग्नि में जलने लगे. उसी समय वहाँ आगयी पार्वती जी. भगवान् शिवशंकर काम के वश में हो चुके थे, इसलिए शिवजी को पार्वती जी के साथ विवाह करना उनकी विवशता हो गयी. (जिसदिन भगवान् शंकर का पार्वती जी के साथ विवाह हुआ वह तिथि फाल्गुन माह का कृष्ण पक्ष चतुर्दशी था, इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाए जाने की भी परंपरा रही है.) विवाहोपरांत पार्वती जी ने उन्हें सारा वृतांत बतला दिया. यह जानकर की कामदेव ने उनकी तपस्या भंग की थी, शिवजी को क्रोध आ गया और उनकी तीसरी आंख खुल गयी. उनकी उस आंख से निकलने वाली ज्वाला में जलकर कामदेव भस्म हो गये और उनकी पत्नी रति विधवा हो गयी. रति तड़प उठी और सीधा भगवान् शंभु के समक्ष उपस्थित होकर विनती करती हुई बोली -"हे देवों के देव महादेव. इस पूरे प्रकरण में मेरा क्या अपराध था, यही न कि मैं कामदेव की पत्नी हूँ. आप ही बताइये प्रभु इस युवावस्था में मैं क्या वैधव्य की त्रासदी झेल पाऊंगी." रति की बातें सुनकर महादेव सोच में पड़ गये. उन्होंने अपनी अंतर्दृष्टि से जान लिया कि पार्वती अपने पिछले जन्म में उनकी पत्नी सती थी जो अपने पिता दक्ष प्रजापति से अपमानित होकर यज्ञ कुंड में कूद कर आत्मदाह कर ली थी. फिर उनका जन्म हिमवान की पुत्री पार्वती के रूप में हुआ और कामदेव ने उन दोनों का मिलन करवाया. इस तरह कामदेव ने तो पुण्य का काम किया था. शिवजी को अपनी भूल का एहसास हुआ. उन्होंने शीघ्र ही अपनी शक्ति से कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया. जिस दिन कामदेव को नव जीवन मिला वह दिन फाल्गुन माह का पूर्णिमा था. कामदेव के जीवित हो जाने पर प्रेम पुजारियों ने उस मध्य रात्रि में होलिका दहन किया. प्रात: होते ही उस अग्नि में कामवासना और क्रोध की मलिनता जल कर राख हो गयी और प्रेम का उदय हुआ. लोग एक दूसरे से गले मिले और रंग अबीर डालकर खुशियाँ मनाने लगे. माना जाता है तब से ही होलिका दहन और होली मनाने की परंपरा की शुरुआत हो गयी.
इसके अतिरिक्त भी अन्य अनेकों कहानियाँ होली से संबंधित प्रचलित है. उन कहानियों में बरसाने तथा नंदगाँव की होली काफी प्रचलित है, जिसमें श्रीकृष्ण राधा और उनकी सहेलियों की होली का बखान किया जाता है. आज भी नंदगाँव के छोरों और बरसाने की छोरियों के बीच होने वाली लट्ठमार तथा लड्डू होली काफी विख्यात है. माना जाता है कि ऐसी होली द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण उनकी प्रेयसी राधा तथा गोपियों के बीच हुआ करती थी.
-- रामबाबू नीरव
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