भारत के मनीषी साहित्यकार


-रामबाबू नीरव

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में राधारानी इस तरह से रच बस चुकी है कि राधा के बिना स्वयं श्रीकृष्ण का नाम अधूरा लगता है. संभवत: श्रीकृष्ण प्रथम ऐसे भगवान हैं जिनके नाम से पहले उनकी धर्मपत्नी और पटरानी रूक्मिणी के बदले उनकी प्रेमिका मानी जानेवाली राधा का नाम लिया जाता है. लोग "रूक्मिणी कृष्ण" नहीं कहते, बल्कि "राधा कृष्ण" कहते हैं. स्थिति यह हो चुकी है कि "रूक्मिणी कृष्ण" कहने के साथ साथ सुनने में भी अटपटा सा लगता है. जन्माष्टमी समारोह में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के साथ उनकी धर्मपत्नी महारानी रूक्मिणी के बदले उनकी प्रेयसी राधारानी की प्रतिमा स्थापित किये जाने की परंपरा शताब्दियों से चली आ रही है. इस संदर्भ हिन्दी साहित्य के पुरोधा डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक "मध्यकालीन धर्म साधना" में लिखा है की "प्रेम विलास" और "भक्ति रत्नाकर" के अनुसार नित्यानंद प्रभु (चैतन्य महाप्रभु के शिष्य) की छोटी पत्नी जाह्नवी देवी एकबार बृंदावन गयी तब उन्हें यह देखकर अतिशय दुख हुआ कि श्रीकृष्ण के साथ राधारानी की मूर्ति कहीं नहीं है और न ही राधारानी की पूजा होती है. अपने घर लौटकर उन्होंने नयन भास्कर नामक कलाकार से राधा जी की मूर्तियाँ बनवाई और  बृंदावन भिजवाया. जीव गोस्वामी जी की आज्ञा से ये मूर्तियां भगवान श्रीकृष्ण के पार्श्व में रखी गयी. तब से ही श्रीकृष्ण के साथ राधारानी की भी पूजा होने लगी. इसके अतिरिक्त जो भी सम्प्रदाय श्रीमद्भागवत, हरिवंश तथा विष्णु पुराण के बाद के पुराणों को मानते हैं, वे राधा को भी स्वीकार करते हैं. इस प्रकार से देखें तो राधारानी की जो परिकल्पना भागवत की खास गोपी के रूप में बृंदावन से उठी वह धीरे धीरे जनमानस में व्याप्त होती गयी. आज सभी कृष्ण प्रेमी श्रीकृष्ण के नाम से पूर्व राधा का नाम लगा कर "राधे कृष्ण, राधे कृष्ण"

का जाप करते हैं."

  लेकिन आश्चर्य की बात है कि जो राधा भगवान श्रीकृष्ण के इतने निकट आ चुकी है कि एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं है तो फिर महामुनि वेदव्यास ने अपनी कृतियों - श्रीमद्भागवत, हरिवंश पुराण तथा विष्णु पुराण में राधा का उल्लेख क्यों नहीं किया? इन तीनों पुराणों को सबसे प्राचीन तथा वेदव्यास जी की मौलिक कृति मानी जाती है.

         हाँ ब्रह्मवैवर्तपुराण, पद्मपुराण तथा गर्ग संहिता में विस्तार से राधा के चरित्र को उभारा गया है. परंतु इन पुराणों की कथाओं में इतनी भिन्नता है कि इन्हें वेदव्यास जी की कृति मानने को दिल स्वीकार नहीं करता. कोई पुराण राधा रानी को श्रीकृष्ण की पत्नी मानता है तो कोई मामी. यहाँ तक कि कोई बहन तक मानने में संकोच नहीं करता. जो युवती श्रीकृष्ण की मामी, पत्नी, बहन आदि लगती हो वह उनकी प्रेमिका कैसे हो सकती है.? यहीं पर लगने लगता है कि श्रीमद्भागवत, हरिवंश तथा विष्णुपुराण को छोड़कर बाक़ी सभी पुराण कपोकल्पना मात्र है. अब प्रश्न उठता है कि फिर राधा आयी कहाँ से? इस प्रश्न के उत्तर को जानने से पूर्व हम यह जान लें कि ब्रह्मवैवर्तपुराण, पद्मपुराण तथा गर्ग संहिता की रचना कब हुई थी? शोधकर्ताओं के अनुसार श्रीमद्भागवत, हरिवंश तथा विष्णुपुराण को छोड़कर बाक़ी सभी पुराणों की रचना आज से छ: सौ वर्ष पूर्व यानि चौदहवीं शताब्दी में हुई थी.     और श्रीकृष्ण तथा राधारानी के प्रेम प्रसंगों पर आधारित महाकाव्य "गीतगोविन्द" की रचना आज से आठ सौ वर्षों पूर्व यानि बारहवीं शताब्दी में हुई. एक बात और स्मरणीय है कि "गीतगोविन्द" से पूर्व के किसी भी साहित्य में नायिका के रूप में राधा का नाम देखने को नहीं मिलता, चाहे वह संस्कृत भाषा का साहित्य हो अथवा अन्य किसी भी भारतीय भाषाओं का साहित्य. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रीकृष्ण की नायिका के रूप में राधारानी की परिकल्पना महाकवि जयदेव ने ही अपनी शृंगार रस से परिपूर्ण काव्य कृति "गीतगोविन्द" में की है. और स्वयं अपने मृदुल स्वर में गा गाकर पूरे भारत में लोकप्रिय बना दिया. उनके बाद के रचनाकारों को राधा के रूप में एक ऐसी नायिका मिल गयी जैसे चकोर को चांद मिल गया हो. फिर तो राधा और श्रीकृष्ण के प्रेमप्रसंग पर आधारित भक्ति एवं शृंगार रस से सराबोर गीतीकाव्य की बाढ़ सी आ गयी. इस सत्य को गुजराती साहित्य के विद्वान, श्रीमद्भागवत के विशेषज्ञ तथा "कृष्णावतार" के लेखक कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी (के. एम. मुंशी) ने भी स्वीकार किया है कि राधा की परिकल्पना जयदेव ने ही सर्वप्रथम की थी. फिर भी उन्होंने कृष्णावतार के प्रथम खंड "वंशी की धुन" में राधा और भगवान श्री कृष्ण के प्रेम प्रसंग को दर्शाया है. उनका तर्क है कि राधा श्रीकृष्ण के जीवन में इस तरह से समाहित हो चुकी है कि उसके बिना श्रीकृष्ण से सम्बंधित कोई भी साहित्य अधूरा माना जाएगा. महाकवि जयदेव तथा उनकी अद्भुत कृति "गीतगोविन्द" की ख्याति के बाद भारतीय साहित्य में भक्तिकाल का उदय हुआ. भक्तिकाल के लगभग अधिकांश कवियों ने अपने काव्य में राधा को ही नायिका के रूप में चित्रित किया है. महाकवि जयदेव की  परिकल्पना राधारानी की परंपरा को आगे बढ़ाने में बिहार राज्य के मिथिलांचल  के महाकवि मैथिलकोकिल विद्यापति ठाकुर का महत्वपूर्ण योगदान है. विद्यापति ठाकुर मिथिला राज्य के आइनवार (सुगौना) राजवंश के कार्यकाल यानि तेरहवीं शताब्दी में हुए थे. इन्हें मिथिला का जयदेव माना जाता है. गीतगोविन्द की तर्ज पर इन्होंने कई शृंगार रस प्रधान काव्य ग्रंथों की रचना की. जिसमें श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम प्रसंगों को दर्शाया गया है. (महाकवि मैथिली कवि कोकिल विद्यापति की कथा अगले अंक में पढ़ें.) 

 अब आईए जानते हैं राधा रानी की संक्षिप्त कथा -

पद्मपुराण के अनुसार बरसाने (वृंदावन) के एक यादव सरदार थे वृषभानु जी. उनकी पत्नी का नाम था कीर्ति. एकबार वृषभानु जी बरसाने से मथुरा जा रहे थे. प्रात: काल की बेला थी. पूरब दिशा की ओर भगवान भास्कर के उदित होने का संकेत क्षितिज में छा रही लालिमा दे रही थी.  रास्ते में एक सुन्दर सरोवर था. उस सरोवर में रंगबिरंगे कमल के पुष्प खिले थे. अचानक वृषभानु जी के कानों में एक शिशु के रोने की आवाज पड़ी. यह आवाज सरोवर में खिल रहे  कमल के फूलों में से एक फूल की ओर से आ रही थी. बृषभानु जी तत्क्षण ही सरोवर में उतर कर उस पुष्प के निकट पहुंचे जिसमें से शिशु के रोने की आवाज आ रही थी. उस विशाल कमल के पुष्प में एक नवजात कन्या रो रही थी. उसका सौंदर्य अनुपम था, परंतु दोनों ऑंखें बंद थी. उन्होंने लपक कर उस कन्या को उठा लिया. और अपने घर ले आये. उस बालिका को पा कर उनकी धर्मपत्नी कीर्ति फूली न समाई. बृषभानु जी ने उस अनुपम सुन्दरी बालिका को अपनी पुत्री बना लिया और बड़े वात्सल्य भाव से उसका प्रतिपालन करने लगे. उन्होंने अपनी पुत्री का नाम रखा राधारानी. जब काफी दिनों बाद भी राधा ने अपनी ऑंखें न खोली, तब बृषभानु जी को कुछ शंका, हुई और वे राधा को एक ज्योतिषाचार्य के पास लेकर पहुंचे. ज्योतिषाचार्य राधा को देखते ही चौंक पड़े और उन्होंने कहा -"यह बालिका असाधारण है. साक्षात देवी लक्ष्मी का अवतार है यह. जब भगवान विष्णु का श्रीकृष्ण के रूप में अवतार होगा, तभी इस बालिका के नेत्र खुलेंगे." ब्रह्मवैवर्तपुराण तथा पद्मपुराण के अनुसार इस घटना के साढ़े ग्यारह माह बाद मथुरा के बंदी गृह में यादव नायक श्री वसुदेव तथा मथुरा के राजा कंस की बहन देवी देवकी के पुत्र रूप में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तथा उनके जन्म लेते ही बरसाने में राधा के नयन खुल गये. यानि राधारानी अपने प्रियतम श्रीकृष्ण से साढ़े ग्यारह माह बड़ी थी. 

  इसके बाद की कथा, यानि राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम तथा बृंदावन में गोपियों के साथ रास रचाने की कथा काफी प्रचलित है. इसलिए उस कथा को उद्घृत करने की आवश्यकता नहीं.

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(अगले अंक में पढ़ें मैथिलकोकिल महाकवि विद्यापति तथा उनकी कृतियों की कथा.)

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