भक्तिकाल के मुस्लिम कवि 


(सप्तम किश्त)

- रामबाबू नीरव

गोरा और बादल नाम के दो वीर योद्धा चितौड़गढ़ की शान थे. वे दोनों राजा रत्नसिंह के दो हाथ थे. इन दोनों के शौर्य की गाथा महाकवि जायसी ने अपने महाकाव्य पद्मावत में विस्तार से तो किया ही है. परंतु इन दोनों को जायसी की कृति "पद्मावत" की रचना के लगभग 50 वर्षों बाद कवि हेमरतन ने एक महाकाव्य लिखा जिसका नाम था -"गोरा बादल पद्मिनी चौपाई " इस महाकाव्य में विस्तार से गोरा सिंह और बादल सिंह की वीरता को उभारा गया है. माना जाता है कि मलिक मुहम्मद जायसी की कृति "पद्मावत" तथा हेमरतन की कृति "गोरा बादल पद्मिनी चौपाई" में पूर्ण रूप से समानता है. यदि यह कहा जाए कि कवि हेमरतन ने अपनी भाषा और शैली में "पद्मावत" का रूपांतरण किया है तो शायद गलत न होगा. क्योंकि दोनों ग्रंथों की कथावस्तु एक जैसी ही है. 

आईए अब जानते हैं गोरा और बादल के बारे में. राजपूताना के इन दोनों वीर योद्धाओं की एक झलक हमलोग पिछले किश्त में देख चुके हैं, जब वे दोनों रानी पद्मावती के साथ राजा रत्नसिंह को खिलजी से मिलने जाने से रोकते हैं. रानी पद्मावती के साथ साथ इन दोनों को भी शक है कि दुष्ट स्वभाव का सुल्तान निश्चित रूप से कोई न कोई चाल चलेगा, और होता भी वही है. सुल्तान शान्ति वार्ता के बदले राजा रत्नसिंह को बंदी बना लेता है और उन्हें स्वयं लेकर यवन सैनिकों के साथ दिल्ली रवाना हो जाता है. सुल्तान अलाउद्दीन के सैनिक चितौड़ के किले की घेराबंदी करके यहाँ छावनी डालकर मुस्तैद हो जाते हैं. सुल्तान अलाउद्दीन की इस धोखाधड़ी से सम्पूर्ण राजपूताना के राजपूतों के साथ साथ गोरा सिंह और बादल सिंह का खून भी खौलने लगता है. गोरा सिंह और बादल सिंह आपस में चाचा भतीजा थे और ये दोनों जालौर के चौहान वंशी राजपूतों से सम्बन्ध रखते थे. इनके पूर्वज कई पुश्तों से चितौड़गढ़ की सेवा में थे. इन दोनों ने मन ही मन दृढ़ प्रतिज्ञा ले ली कि चाहे जैसे भी हो अपने आश्रय दाता रावल रत्नसिंह को सुल्तान अलाउद्दीन की कैद से मुक्त कराकर चितौड़गढ़ में लेकर आएंगे. राजा रत्नसिंह के वियोग मे दोनों रानियां तड़प रही थी, परंतु रानी पद्मावती ने अपना धैर्य नहीं खोया. वे वीर क्षत्राणी थी. इसी बीच सुल्तान ने संदेश भिजवाया -"यदि रानी पद्मावती एकबार दिल्ली दरबार में हाजिर होकर अपने चांद जैसे मुखरे की एक झलक दिखला दे तो राजा रत्नसिंह को रिहा कर दिया जाएगा. यदि ऐसा नहीं किया गया तो राजा रत्नसिंह को शूली पर चढ़ाने के बाद चितौड़गढ़ को नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा." सुल्तान की इस धमकी को सुनकर पूरे चितौड़गढ़ में खलबली मच गयी. दरबारियों के साथ साथ प्रजा भी भयभीत नजर आने लगी, परंतु रानी पद्मावती इस धमकी को सुनकर भी विचलित नहीं हुई. उन्होंने गोरा और बादल के साथ मिलकर इस नयी मुसीबत से जुझने हेतु एक आपातकालीन बैठक बुलाई. उक्त बैठक में दरबारियों के साथ साथ राज्य के विशिष्ट नागरिकों को भी आमंत्रित किया गया था. राज्य के सारे विशिष्ट नागरिक काफी भयभीत थे और उनकी मांग थी कि रानी पद्मावती को सुल्तान को सौंप दिया जाना चाहिए. नागरिकों की इस मांग को सुनकर पूरी सभा स्तब्ध रह गयी. काफी मंथन के बाद गोरा और बादल को दूत बनाकर दिल्ली दरबार में भेजने का निर्णय लिया गया.

रानी पद्मावती के साथ गुप्त मंत्रणा करने के पश्चात गोरा और बादल नियत तिथि को शान्ति दूत बनकर दिल्ली के लिए रवाना हो गये. उन दोनों को सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के समक्ष पेश किया गया. खिलजी ने पूछा - "चितौड़गढ़ से क्या संदेशा लाए हो.?" 

"हमारी रानी साहिबा को सुल्तान की शर्तें मंजूर है, परंतु हमारी रानी की भी दो शर्तें हैं."

"क्या है तुम्हारी रानी की शर्ते?" सुल्तान ने अकड़ते में हुए पूछा. 

"पहली शर्त है कि चितौड़ से उनके साथ पाॅंच सौ दासियां भी आएंगी, साथ ही रानी पद्मावती तथा दासियों की सुरक्षा के लिए चितौड़ के सैनिक भी आएंगे. दूसरी शर्त यह है कि चितौड़गढ़ के बाहर से यवन सैनिकों की छावनी अविलंब हटा ली जाए. यदि सुल्तान को ये दोनों शर्तें मंजूर हों, तभी रानी साहिबा यहाँ आएंगी, वरना नहीं आएंगी."

"मुझे मंजूर है" बिना कुछ सोचे समझे सुल्तान ने दोनों शर्तें मान ली. गोरा और बादल चितौड़गढ़ लौट आये. रानी पद्मावती को यह जानकर काफी प्रसन्नता हुई कि अलाउद्दीन ने उनकी शर्तें मान ली है. सुल्तान के हुक्म से चितौड़गढ़ के बाहर से यवन सैनिकों की छावनी हटा ली गयी. फिर पांच सौ पालकियां तैयार करवाई गयी. सभी पालकियों को मेहरावों से ढ़ंक दिया गया. उन पालकियों में से दो पालकी को राजशाही शान के साथ सजाया गया था. उन दोनों में से एक में रानी पद्मावती तथा दूसरे में उनकी मुख्य दासी (सहेली) को बैठना था. इन पालकियों की सुरक्षा हेतु पांच सौ घुड़सवार सैनिक आगे और पीछे चल रहे. जब चितौड़गढ़ की रानी पद्मावती का यह काफिला दिल्ली के शाही महल के समक्ष पहुँचा तब बादशाह अलाउद्दीन खिलजी के हुक्म से रानी पद्मावती तथा उनकी दासियों सह सहेलियों का स्वागत दुंदुभि बजाकर किया गया. सभी पालकियों समेत सैनिकों को भी किले के अंदर दाखिल होने की अनुमति मिल गयी. अपने आलीशान महल में सुल्तान रानी पद्मावती से मिलने की खुशफहमी में पागल ज्ञान रहा था और उधर दिल्ली के शाही किले अंदर कुछ और ही गुल खिल रहे थे. किले के अंदर दाखिल होते ही सभी घुड़सवार सैनिकों ने अपने अपने अस्त्र शस्त्र संभाल लिये. सबसे आगे की दो पालकियों में रानी पद्मावती तथा उनकी दासी के बदले महिलाओं के वेश में चितौड़गढ़ के दो महान योद्धा गोरा और बादल के साथ चितौड़गढ़ के वीर सैनिक निकले और सभी सैनिक सुल्तान की सेना पर टूट पड़े. यवन सैनिकों को इस बात की रत्ती भर भी उम्मीद न थी कि अचानक किला के अंदर का नजारा ऐसा हो जाएगा. इधर चितौड़गढ़ के वीर बांकुड़े दिल्ली सल्तनत के सैनिकों का संहार कर रहे थे, उधर गोरा और बादल अपनी अपनी तलवार भांजते हुए कारागार में जा पहुँचे और अपने आश्रयदाता राजा रत्नसिंह को मुक्त कराकर तीनों घोड़े पर सवार हो गये. अपने राजा को देखकर अन्य सैनिकों का भी उत्साह बढ़ गया और वे सभी दिलेरी से लड़ते हुए तीव्र गति से किले के बाहर निकलने लगे. इस मुठभेड़ में चितौड का महान योद्धा गोरा वीरगति को प्राप्त हुआ, जबकि बादल राजा रत्नसिंह को लिये हुए चितौड़गढ़ की ओर भागता चला गया. 

सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को जबतक चितौड़ के सैनिकों तथा गोरा और बादल के इस अचंभित कर देनवाले दुस्साहस का पता चला तब तक काफी देर हो चुकी थी. अपनी रानी की अस्मिता की रक्षा के लिए गोरा के साथ साथ सैकड़ों अन्य वीर योद्धाओं ने अपनी शहादत दे दी तथा बादल के नेतृत्व में अन्य जांबाज सैनिक राजा रत्नसिंह को सुरक्षित किले से निकाल कर चितौड़गढ़ की ओर प्रस्थान कर गये.

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क्रमशः.........! 

(अगले अंक में पढ़ें राजा रत्नसिंह की राजा देवपाल के साथ युद्ध, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का चितौड़गढ़ पर पुनः आक्रमण तथा रानी पद्मावती के जौहर की कथा)

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