-रामबाबू नीरव
(दो)
राजीव उपाध्याय ने सोचा भी न था कि वीआईपी गैलरी में इतनी भीड़ उमर पड़ेगी. सबों को बैठाने के बाद भी कुछ अन्य गणमान्य आमंत्रित अतिथि खड़े ही रह गये. कुछ अतिरिक्त कुर्सियों की व्यवस्था करके जैसे तैसे उन अतिथियों को बैठाया गया. यह वीआईपी गैलरी स्टेज के बाईं ओर थी. स्टेज काफी लम्बा चौड़ा और ऊंचा था. उसपर चढ़ने के लिए लकड़ी की सीढ़ियां बनी थी. वीआईपी गैलरी के उस पार यानी स्टेज के दाईं ओर दो ग्रीन रूम थे, एक महिला कलाकारों के लिए तथा दूसरा पुरुष कलाकारों के लिए. ग्रीन रूम के सामने एक ही कतार में दस वीआईपी कुर्सियां रखी थी. उनमें से एक कुर्सी मोहन बाबू की थी, दूसरी एस० एन० त्रिपाठी की जोकि नृत्य सह नाट्य निर्देशक थे. तीसरी कुर्सी रामास्वामी की थी, जो संगीत निर्देशक थे . चौथी कुर्सी अमित खन्ना की थी जो उद्घोषक के साथ साथ विदूषक भी था. अन्य कुर्सियां उन कलाकारों की थी जो यहां कलाकारों की थी. जो अपनी बारी आने के इंतजार किया करते थे.
किसी ने भी नहीं सोचा था कि आनंद की इस बेला में एक ऐसी आफ़त आ जाएगी कि थियेटर के मैनेजर राजीव उपाध्याय के साथ साथ वीआईपी गैलरी में बैठे सभी अति विशिष्ट अतिथियों के भी होश गुम हो जाएंगे. कल्पना थियेटर के मालिक मोहन कुमार मेहता से लेकर मैनेजर राजीव उपाध्याय तक अपनी 5अपनी अपनी धुन में व्यस्त होकर उस शख़्स को भूल गये, जो आज होने वाले उद्घाटन का मुख्य अतिथि था. वह शख्स था इस शहर का डॉन अभय राज. उस बिगड़ैल अमीरजादे की सुध ही किसी को न रही. हद तो तब हो गयी जब अभय राज तथा उसके गुर्गों को मुख्य द्वार पर ही रोक दिया गया. यह तो गनीमत थी कि द्वार पर इंस्पेक्टर एस० एन० वर्मा जी मौजूद थे और उन्होंने यदि सूझबूझ से काम न लिया होता तो अभय राज के चाटुकार गुर्गे कल्पना थियेटर के पंडाल में आग दिए होते. नशे में धुत् अभय राज को शान्त कर पाने में वर्मा जी सफल तो हो गये, परंतु अभय और उसके गुर्गों के वीआईपी गैलरी में आने के बाद जो भयानक विस्फोट हुआ, उसकी कल्पना तक वर्मा जी ने नहीं की थी. अपने जानी दुश्मन जीतन बाबू और उनके रंगीन मिजाज दोस्तों को सबसे अगली कतार में शान से बैठे देखकर अभय तथा उसके गुर्गों का खून खौल उठा.
"अभय, धोखा..... हमारे साथ भारी धोखा हुआ है." अभय का खास चमचा दिलीप हलक फाड़ कर चीख पड़ा. उसकी चीख पूरे वीआईपी गैलरी में गूंज गयी. जीतन बाबू और उनके सभी दोस्त अभय का नाम सुनते ही अपनी अपनी सीट पर से उछल पड़े और बुरी तरह से घबरा कर पीछे पलट गये. उन लोगों को विश्वास ही न था कि उनके मनोरंजन में खलल डालने के लिए अभय और उसके खूंखार चमच्चे यहां आ जाएंगे. जब राजीव उपाध्याय की नजर अभय पर पड़ी तब उसके भी होश उड़ गये. उसे ऐसा लगा जैसे उसके पांव के नीचे से जमीन खिसक गयी हो. आज तक उससे इतनी बड़ी भूल नहीं हुई थी, पता नहीं आज कैसे हो गयी.? वह मन ही मन खुद को कोसते हुए अभय के सामने आ गया और कांपती हुई आवाज में बोला -"नमस्ते सर, आप लोगों ने आने में काफी देर कर दी."
"शटअप.....!" शेर की तरह दहाड़ उठा अभय. जब उसकी दहाड़ सुनकर कड़क मिजाज वर्मा जी की हालत पस्त हो गयी, तब जीतन बाबू और उनकी मित्र मंडली की क्या हालत हुई, इसका अंदाजा उनके स्याह पड़ चुके चेहरे को देखकर लगाया जा सकता था.
"कहां है तुम्हारा मालिक?" अभय की दहाड़ पहले से भी अधिक तेज थी.
"जी सर वो.....!" राजीव का हलक सूखने लगा. यदि उसने एक खम्भे का सहारा न ले लिया होता तो निश्चित रूप से चक्कर खाकर गिर गया होता.
"क्यों वे साले, तुमने हमारे बॉस के साथ ऐसा घिनौना मजाक क्यों किया?" शेखर नाम का चमचा राजीव को धकियाते हुए बोला.
"सर, हमसे भूल हो गयी..... प्लीज़ हमें माफ कर दीजिए." राजीव सूखे पत्ते की भांति कांप रहा था.
"जा.... जाकर उन बूढ़ों को वहां से उठा, तभी तुम्हें माफी मिलेगी." अभय ने अपना फरमान जारी किया. उसके इस फरमान को सुनकर राजीव का सर चकरा गया. भला वह शहर के उन प्रतिष्ठित लोगों को उनकी जगह से कैसे उठाए ?
"नहीं सर....हम ऐसा नहीं कर सकते." ऐसा लगा जैसे राजीव रो पड़ेगा.
"चटाक.....!" तभी राजीव के गाल पर एक जोरदार तमाचा पड़ा. तमाचा मारनेवाला था अकरम, अभय का तीसरा गुर्गा. वह दांत पीसते हुए कह रहा था -"साले, हरामखोर हमारे बॉस को बेइज्जत करवा सकता है, मगर उन बूढ़ों को उस सीट पर से उठा नहीं सकता?" अकरम पुनः राजीव को मारने के लिए लपका, मगर वर्मा जी ने उसे बीच में ही पकड़ लिया.
"छोड़िए.... छोड़िए सर मुझे, आज मैं इस कामीने को इसकी औकात बतला देता हूं." अकरम वर्मा जी की गिरफ्त में हुमचने लगा. राजीव की ऑंखों से ऑंसू बहने लगे. ऐसी जिल्लत उसने आजतक न झेली थी. मन ही मन वह खुद को कोसता हुआ बाहर की ओर भाग खड़ा हुआ. अभय सीधा जीतन बाबू के सामने आकर आग्नेय नेत्रों से उन्हें घूरते हुए बोला -
"क्यों वे बूढ़े, तुम्हें शर्म नहीं आती है, इस उम्र में नौटंकी देखने आये हो? चलो उठो यहां से."
"नहीं उठेंगे हम, तू हमारा क्या उखाड़ लेगा?" जीतन बाबू का सामंती खून उछाल मारने लगा.
"उठेगा तो तुम्हारा बाप भी." अभय जीतन बाबू के गिरेबान में हाथ डालना चाह ही रहा था कि जीतन बाबू उठकर अपनी छड़ी से उच्च उस पर ताबड़तोड़ प्रहार करते चले गये. चूंकि अभय नशे में था, इसलिए वह इस अप्रत्याशित प्रहार को झेल नहीं पाया और लड़खड़ा कर नीचे लुढ़क गया. पारस बाबू, डाक्टर साहब, वकील साहब तथा महेश सर्राफ इस घटना को देखकर सर से लेकर पांव तक कांपने लगे. जीतन बाबू ने यह क्या कर दिया? अब तो जीतन बाबू के साथ साथ उनलोगों की भी खैर नहीं. अपने बॉस की हालत देखकर अभय के चमचों का खून खौलने लगा और वे सभी जीतन बाबू के साथ साथ उनके मित्रों पर भी टूट पड़े. इस फ्रीस्टाइल दंगल को देखकर अन्य दर्शक इधर उधर भागने लगे. जीतन बाबू के अंग रक्षकों का भी अता-पता न था. तब तक अभय संभल चुका था और वह उठकर भूखे भेड़िए की तरह जीतन बाबू पर टूट पड़ा. वर्मा जी तो जैसे आदम युग के बूत बन चुके थे. उनकी समझ में न आ रहा था कि इस बिगड़ैल अमीरजादे को कैसे बश में किया जाए? यह युवक इतने बड़े बाप का बेटा है कि इस पर सख़्ती भी नहीं की जा सकती. स्टेज के उस पार जब इस हिंसक हंगामे की आवाज पहुंची तब ग्रीन रूम से सारे कलाकार निकल कर बाहर आ गये और हैरत तथा भय से इस दंगल को देखने लगे. तभी राजीव के साथ मोहन बाबू अंदर दाखिल हुए और वहां हो रहे फ्री स्टाइल दंगल को देखते ही उन दोनों के होश उड़ गये.
"यह क्या कर रहे हैं आप लोग." काफी हिम्मत बटोर कर अभय को खींचते हुए मोहन बाबू क्षुब्ध स्वर में बोले. अभय जीतन बाबू को छोड़कर खूंखार नजरों से मोहन बाबू को घूरने लगा. मोहन बाबू अपनी शय में बोलते चले गये -"लगता है आप लोगों के अंदर इंसानियत नाम की चीज है ही नहीं. हमने आप लोगों को इसलिए आमंत्रित किया था कि यहां शान्ति व्यवस्था कायम रह सके, लेकिन आप लोगों ने ही यहां अशांति फैला दी. "
"क्या कहा, हमलोगों ने अशांति फैला दी?" अभय मोहन बाबू को निगल जाने वाली नज़रों से घूरते हुए किसी शक्तिशाली बम की तरह फट पड़ा -"दिलीप, शेखर, अकरम, तुम सबके सब बाहर जाओ और अपने आदमियों से कह दो कि इस थियेटर का पंडाल उखाड़ कर फेंक दे. इस शहर में कोई नौटंकी -उटंकी नहीं होगा." अभय के गुर्गों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने आका के हुक्म की तामील न करे. परंतु वर्तमान परिस्थिति में वे सभी किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में आ गये. उधर मोहन बाबू को भी तैश आ गया और वे भी राजीव को हुक्म देते हुए खीझकर बोल पड़े -"राजीव तुम बाहर जाओ और पब्लिक का पैसा वापस कर दो. हमें नहीं रहना है इस शहर में." मोहन बाबू का अंतिम निर्णय सुनकर राजीव भी सकते की स्थिति में आ गया.
"रूकिए सर.....ऐसी जल्दबाजी अच्छी नहीं होती." ऐसा लगा जैसे चारों ओर चांदी की घंटियां बजने लगी हो. सभी की नजरें उस ओर चली गयी जिधर से मधुर झंकार जैसी यह आवाज आयी थी. स्टेज के ठीक बीचोबीच खड़ी थी वह अनिंद्य सुन्दरी. स्वर्ग लोक की अप्सरा जैसा रूप धारण किये. उसके बाद सुन्दर मुखमंडल पर किंचित आक्रोश की आभा छिटक रही थी. सभी अपलक उसे निहारते रहे गये. अभय का क्रोध के साथ साथ नशा भी काफूर हो चुका था. उसे ऐसा लगा जैसे वह जाग्रत अवस्था में ही मनमोहक स्वप्न देख रहा हो. जीतन बाबू और उनके सभी दोस्त कुछ देर पहले घटी घटना तथा अभय और उसके दोस्तों द्वारा दिए गये ज़ख़्म को भूल गये. अभय के चाटुकारों की भी हालत विचित्र हो गयी. वह रूपसी धीरे धीरे पग बढ़ाती हुई वीआईपी गैलरी की ओर आ रही थी. उसके पांव में बंधे घुंघरुओं की झंकार से दसों दिशाएं गूंजने लगी. स्टेज से नीचे उतरकर वह सीधा अभय के सामने खड़ी हो गयी. उसके रक्तिम ओंठ खुले और पुनः चांदी की घंटियां सी बज उठी -
"शायद आपका नाम मि० अभय राज है.?"
"आं..... हां....हां....!" माघ की इस सर्द रात में भी अभय के ललाट पर पसीने की बूंदें झिलमिलाने लगी.
"आप लोगों ने शराब पी रखी है.?" उस कोमलांगी के मुखड़े पर असीम घृणा का भाव उभर आया.
"न.... हां, थोड़ी सी पी है." चाहकर भी अभय झूठ नहीं बोल पाया. आज तक वह किसी लड़की के समक्ष इतना नर्वस नहीं हुआ था. लड़कियां तो उसने बहुत देखी थी, लेकिन उनमें से एक भी इस लड़की की तरह निर्भीक नहीं थी..
"न जाने इस लड़की में ऐसा क्या है, जो में इसके समक्ष पराभूत होता जा रहा हूंं." वह मन ही मन सोचने लगा.
"शराब पीकर दंगा-फसाद करना ही शायद आप लोगों का पेशा है." उस युवती ने ऐसा ताना मारा कि अभय तड़प उठा. मगर उसके चमचों को उसका यह ताना बर्दाश्त न हुआ. एक मामूली सी लड़की अभय जैसी हस्ती को अपमानित करे, और उसके चमचे खामोश रह जाएं, ऐसा कैसे हो सकता है? दिलीप तमतमाया हुआ उस युवती के समक्ष आकर चिल्ला पड़ा -
"देखो तुम जरुरत से कुछ ज्यादा ही बकती जा रही हों."
"ऐ मिस्टर, मैं तुम्हारे आका से बातें कर रही हूं, खामखां बीच में तुम क्यों टपक पड़े? बेहतर इसी में होगा कि तुमलोग अपनी अपनी चोंच बंद रखो." उसके तेवर देखकर दिलीप, शेखर और अकरम की सारी दादागिरी घूसर गयी. ऐसी दबंग युवती से आज तक उन लोगों का पाला न पड़ा था. वे सभी भौंचक से खड़े एक-दूसरे का मुंह निहारने लगे.
"हां तो मि० अभय राज." वह पुनः अभय से मुखातिब होती हुई बोली -"जैसी कि मेरी जानकारी है आप इस शहर किसी आला खानदान के चश्मों चिराग हैं. क्या आपको अपने खानदान से विरासत में यही सबकुछ मिला है.? इस थियेटर कम्पनी के मालिक और हमारे बॉस आदरणीय मोहन बाबू ने अभी अभी कहा है कि आप लोग यहां अशांति फैला रहे हैं. अब मैं भी कह रही हूं कि सचमुच आप लोग अशांति फैला रहे हैं, अब बोलिए क्या करेंगे आप, क्या मुझे मारेंगे, तो मालिक." युवती एक दम से अभय की छाती में सट गयी. उसकी सांसों की भीनी भीनी खुशबू के एहसास से अभय मदहोश होता चला गया. उसे लगने लगा कि वह चक्कर खाकर गिर पड़ेगा. नर्तकी की इस धृष्टता को देखकर कर मोहन बाबू और राजीव उपाध्याय अपना अपना हश्र धुनने लगे. मोहन बाबू की मनोदशा इतनी बिगड़ गयी कि वे ओठों ही ओठों में बड़बड़ाने लगे -
"यह नादान लड़की हम सब को मरवाएगी क्या?"
∆∆∆∆∆∆
क्रमशः...........!
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