सुबह के चार बज चुके थे.  नर्सिंग होम के हॉल में बैठे लोग बाहर हंगामा सुनकर चौंक पड़े. उन लोगों  में इंस्पेक्टर वर्मा जी, रीतेश तथा रग्घू के साथ राज पैलेस के अन्य नौकर शामिल थे. वे सब घबराये हुए से बाहर आए. बाहर आने के बाद उन लोगों को माजरा समझ में आया. मृत रिक्शाचालक की पत्नी, बच्चे और परिजनों के साथ कुछ मजदूर वर्ग के लोग वहां चीख-पुकार मचाए हुए थे. मृतक की पत्नी और बच्चों के करुण क्रंदन से रीतेश और रग्घू का कलेजा फटने लगा. तभी उस भीड़ में से एक आक्रोशित युवक चिल्ला पड़ा. -"जिस रईसजादे ने एक गरीब की जान ली है, हम उसकी भी जान लेंगे, जान के बदले जान ! उस रईसजादे को हमारे हवाले करो." उस युवक के तेवर देख कर सभी के होश उड़ गये. इंस्पेक्टर वर्मा जी भी स्तब्ध रह गये. कुछ पल वहां सन्नाटा छाया रहा फिर रीतेश की गंभीर आवाज उभरी -

"किसकी जान लोगे तुमलोग....

बोलो किसकी जान लोगे ? उसकी जो खुद इस हादसे का शिकार होकर जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है. अरे इस हादसे में मैंने भी अपनी मां को खोया हैं, जो मेरी ज़िन्दगी की एकमात्र संबल थी, बताओ तुमलोग मैं किसकी जान लेने जाऊं....? कोई जानबूझ कर एक्सिडेंट नहीं करता. एक हादसा है जो अनजाने में हो गया. यदि उसकी जान ले लेने से मेरी मॉं जिन्दा हो जाती तो मैं कब का उसे मौत के घाट उतार चुका होता, मगर....." रीतेश से अपनी मां का ग़म बर्दाश्त न हुआ, वह वहीं बैठकर फूट-फूट कर रोने लगा. उसके क्रंदन से इंस्पेक्टर वर्मा जी और रग्घू की आंखों से भी ऑंसुओं की धारा फूट पड़ी. 

"बेटा, मत रोओ.....!" तभी इस आवाज को सुनकर सभी बुरी तरह से चौंक पड़े. रिक्शा चालक की विधवा रीतेश के कंधे को थपथपाती हुई उसे सांत्वना दे रही थी.- "जितना दर्द तुम्हें हो रहा है, उतना ही मुझे भी हो रहा है. तुम जवान हो बेटा, अपनी जिन्दगी जी सकते हो, मगर मेरे उन मासूम बच्चों का क्या होगा, मेरी जवान बेटी का ब्याह कैसे होगा?"

"बहन तुम इसकी चिंता मत करो, हमारे मालिक सेठ धनराज जी बड़े ही दयालु हैं. वे कल सुबह आ रहे हैं, सब ठीक हो जाएगा." रग्घू उस औरत के समक्ष अपने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया.

"सेठ धनराज....!" औरत के मुंह से अस्फुट सा स्वर निकला. उसे पता ही न था कि एक्सिडेंट करने वाला युवक सेठ जी का पोता है. 

"भैय्या.... माफ़ कर दो, मुझे मालूम न था कि....." उसकी आवाज मुंह में ही रह गयी. तभी आईसीयू से घबराई हुई एक नर्स निकल कर आयी और व्यग्रता से बोल पड़ी -

"आप लोगों में से रग्घू कौन है?"

"मैं हूं रग्घू...... क्या बात है?" उसकी घबराहट देखकर रग्घू के होश उड़ गये, कहीं अभय को कुछ....?"

"अभय बाबू को जो ब्लड दिया जा रहा था, उस ग्रूप का ब्लड अब स्टॉक में नहीं है..... बाहर से लाना होगा.!"

"ओह हे भगवान यह सब क्या हो रहा है." रग्घू अपना सर पीटने लगा.

"सिस्टर अभय को जो ब्लड दिया जा रहा था, उसका ग्रूप क्या है?" स्वयं को संभाल  कर रीतेश ने खड़ा होते  हुए नर्स से पूछा.

"ओ पोजिटिव" 

"थैंक्स गॉड..... सिस्टर मेरा भी ओ पोजिटिव है.... क्या मेरा ख़ून दिया जा सकता है .?"

"हां क्यों नहीं दिया जा सकता, आप चलिए जल्दी." रीतेश नर्स के साथ आईसीयू की ओर भागता चला गया. रग्घू और वर्मा जी रीतेश की इस दरियादिली को देखकर हैरान रह गये. "जिसके हाथों से इस लड़के की मां की मौत हो गयी उसे ही यह अपना खून देने जा रहा है, यह इंसान हैं याकि फरिश्ता ?" अनायास ही वर्मा जी का हाथ उस फ़रिश्ते को सैल्यूट देने के लिए उठ गया और रग्घू का सर उसके सम्मान में झुकता चला गया.

                 *******

     भले ही किशन राज में लाख बुराइयां थी, मगर अभय था तो राज खानदान का एकलौता चिराग ही. अपने एकलौते बेटे की ज़िन्दगी और मौत से जुझने की मनहूस खबर सुनते ही पिता और पुत्र रात वाली फ्लाइट से ही पटना आ गये. एयरपोर्ट पर उनकी अगवानी में अनेकों गाड़ियों के साथ कंपनी के मैनेजर और अन्य कर्मचारी खड़े थे. उनका काफिला सीधा राजनगर के लिए प्रस्थान कर गया. 

उधर आईसीयू में अभय और रीतेश बेड पर पड़े हुए एक दूसरे की ओर देख रहे थे. रीतेश तो रातभर सो ही नहीं पाया. मां की मौत के बाद क्या कोई बेटा चैन से सो सकता है? रीतेश की ऑंखों से ऑंसू बह रहे थे और अभय उसे कृतज्ञ नेत्रों से देख रहा था. जिस समय रीतेश का खून उसे चढ़ाया जा रहा था उसी समय उसे होश आ गया था और ड्यूटी पर तैनात नर्स ने अभय को सारी बातें बता दी थी.  जिस आदमी की मॉं का वह हत्यारा है, उसी ने अपना खून देकर उसकी जान बचाई. अभय आत्मग्लानि से घुलने लगा. उसकी इच्छा हुई कि बेड से नीचे उतरकर वह इस आदमी का चरण छू ले. मगर नर्स ने उसे हिलने तक न दिया. उसी समय डा० दयाल के साथ सेठ धनराज तथा एमपी किशन राज ने आईसीयू में कदम‌ रखा. अभय‌ की हालत देखकर दोनों तड़प उठे. अभय की नजर जैसे ही अपने पिता किशन राज पर पड़ी उसने असीम घृणा का प्रदर्शन करते हुए अपना मुंह मोड़ लिया. एमपी किशन राज जी को ऐसा लगा जैसे उनके बेटे ‌ने कसकर उनकी छाती पर मुक्का मार दिया हो. वे आहत होकर तड़पने ‌लगे. रितेश उन दोनों को देखकर समझ गया कि इसमें से एक अभय के दादा जी हैं और दूसरे उसके पिताजी. वह उन लोगों के सम्मान में नीचे उतरने लगा. मगर सेठ धनराज ने उतरने न दिया. डा० दयाल ने संक्षिप्त में उन्हें सारी बातें बता दी थी. रीतेश का आभार व्यक्त करते हुए वे‌ बोले -"रीतेश बेटा मैं तुम्हारा आभार किन शब्दों में व्यक्त करूं.? तुमने राज खानदान पर वह उपकार किया है कि बदले में मैं अपना.....!"

"नहीं दादा जी, मैंने उपकार नहीं किया है, बल्कि इंसानियत का फर्ज अदा किया है."

"तुम महान हो बेटे." सेठ जी रीतेश का हाथ थपथपाने लगे. उनकी ऑंखों से चंद बूंद ऑंसू टपकर रीतेश के हाथ पर गिर पड़े. 

"मि० रीतेश आपका बयान अधूरा रह गया था, कृपया उसे पूरा कर दीजिए." वर्मा जी की आवाज सुनकर रीतेश चौंक पड़ा. 

"क्या बयान लीजिएगा सर मुझसे. मुझे जो बताना था, बता चुका हूं. वह एक हादसा था. अभय ने हमलोगों को बचाने की पूरी कोशिश की थी, मगर न‌ तो मेरी मां को‌और न ही रिक्शे वाले को बचा पाया, इसमें इसका क्या कसूर है.?"  उसकी बातें सुनकर सभी दंग रह गये, एकबार फिर उसकी ऑंखों से ऑंसू बहने लगे. 

"रीतेश, तुम्हारी मां के गुजर जाने का हमें बेहद अफसोस है. तुम जितनी चाहो मैं उतनी रकम देने के लिए  तैयार हूं." इसबार एमपी किशन राज बोल पड़े. 

" क्षमा करें सर. मैं अपनी मॉं की मौत का सौदा नहीं कर सकता." रीतेश के स्वाभिमान को देखकर सेठ धनराज की ऑंखें पुनः छलछला पड़ी. 

"मि० रीतेश लोगों का कहना है कि गाड़ी चलाते समय अभय ने शराब पी रखी थी." वर्मा जी की बात सुनकर रीतेश चौंक पड़ा-

"क्या रीतेश शराब पिता हैं.?"

"हां, मैं शराबी हूं." काफी देर बाद अभय ने अपना मौन भंग किया. सभी की निगाहें उस पर ही जाकर स्थिर हो गयी. वह प्रज्वलित ऑंखों से किशन राज जी को घूरते हुए बोला रहा था -" मगर मुझे शराबी और आवारा इस आदमी ने बनाया है." उसका इशारा अपने पिता एमपी किशन राज की ओर था.

"अभय....!" अपने पुत्र का आरोप सुनकर तड़प उठे किशन राज. 

"अभय यह कैसी अशुभ बातें अपने मुंह से निकाल रहे हो.?"

सेठजी ने अभय के माथे पर स्नेह से हाथ फेरते हुए थोड़ा तीखे स्वर में कहा.

"दादा जी, इस आदमी को कहिए कि यह मेरी ऑंखों के सामने से दूर हो जाए. मैं बड़े से बड़े गुनाहगार को माफ कर सकता हूं, मगर अपनी मॉं के हत्यारे को कतई माफ नहीं कर सकता." किशन राज को अपने बेटे से ऐसी उम्मीद नहीं थी. इतने सारे लोगों के सामने वे अपनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर पाए और क्रोध से पांव पटकते हुए

 आईसीयू से बाहर निकल गये. सेठ जी  के साथ साथ सभी समझ गये कि किशन राज को अभय की बातें तीर की तरह चूम गयी है. किशन राज जी के वहां से चले जाने के बाद अभय सेठ जी से विनती करते हुए बोला-

"दादा जी, रीतेश का अब इस दुनिया में कोई नहीं है, यह बिल्कुल अकेला हो चुका है."

"यह सब बातें तुम्हें किसने कही?" रीतेश ने चकित भाव से अभय की ओर  देखते हुए पूछा. 

"उस नर्स ने, जो उसी मकान में किराए पर रहती है, जिसमें तुम रहते हो." इस विषम परिस्थिति में भी अभय की ओठों पर मुस्कान थिरक उठी. 

"क्या उस नर्स का नाम अनुपमा है.?" रीतेश ने विचलित होते हुए पूछा.

"हां, उसी ने बताया. उसने यह भी बताया कि वह.....!"

"बस आगे कुछ मत बोलना." बेड से उतर कर रीतेश ने उसके मुंह पर अपनी हथेली रख दी. 

"कोई बात नहीं है अभय, रीतेश भी आज से राज पैलेस में ही रहेगा. मैं समझूंगा कि मेरे एक नहीं दो पोते हैं."

"थैंक्यू दादा जी....आप महान हैं." अभय प्रसन्नता से झूम उठा.

रीतेश कुछ न बोला उसकी बेचैन ऑंखें आईसीयू में अनुपमा को ढूंढने लगी. मगर उसकी ड्यूटी समाप्त हो चुकी थी.

                   *******

  रीतेश की मॉं और रिक्शा चालक का दाह-संस्कार सेठ धनराज ने अपनी देखरेख में करवाया. रिक्शा चालक की विधवा को एक मकान, पांच लाख रुपए और राज पैलेस में नौकरी दे दी गयी. सेठजी को रीतेश के बारे में सारी जानकारी मिल चुकी थी, वह ग्रेजुएट करने के बाद नौकरी के लिए भटक रहा था, पहले तो उन्होंने उसे अपनी कंपनी में ही नौकरी देने की पेशकश की, मगर अभय को यह मंजूर न था. वह रीतेश को हमेशा अपने साथ रखना चाहता था. सेठजी ने इसका भी रास्ता निकाल दिया. राजनगर की अपनी प्रोपर्टी की देखभाल तथा किराएदारों से किराया वसूलने की जिम्मेदारी रीतेश को सौंप कर उन्होंने रग्घू को इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया. रीतेश राज पैलेस में ही आकर रहने लगा. अब एक तरह से वह राजनगर में स्थित सेठ धनराज जी की अचल सम्पत्ति का मैनेजर था.

रग्घू ने रीतेश को अभय की सारी बुरी आदतों के बारे में बता दी थी. रीतेश ने भी उससे शराब और बाजारु औरतों का साथ छोड़ने का आग्रह किया. उसके कहने पर अभय ने औरतों की संगत तो छोड़ दी, मगर शराब और अपने  शराबी दोस्तों का साथ नहीं छोड़ पाया. उसने रीतेश को भी वही बात कही, जो रग्घू से बोल चुका था. उसकी संवेदना को समझकर रीतेश ने भी चुप्पी साध ली. अभय को यह जानकारी मिल चुकी थी कि अनुपमा नाम की वह नर्स रीतेश से मन ही मन प्यार करती है. अबतक रीतेश उसके प्यार को इसलिए तव्वजो नहीं दे रहा था कि वह स्वयं बेरोजगार था. अब अभय ने मन ही मन में ठान लिया कि वह रीतेश और अनुपमा को एक न एक दिन मिलाकर रहेगा. वैसे अनुपमा और रीतेश के प्यार के बारे में अभय ने उससे विस्तार से जानकारी लेने की बहुत कोशिशें की मगर रीतेश कुछ न बोला. हां अनुपमा उसे अपने दिल का दर्द बता चुकी थी.

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क्रमशः........!

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