कल्ह की अपेक्षा आज थियेटर में दोगुनी भीड़ थी. "लैला-मजनूं" ड्रामा देखने के लिए लोग उमड़ पड़े थे. पंडाल में तील रखने को भी जगह न बची थी. जीतन बाबू और उनके दोस्त समय से पूर्व ही आकर अपना अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे. वर्मा जी भी भीड़ पर नियंत्रण करके आज जीतन बाबू और उनके दोस्तों के साथ ही अगली कतार में बैठे थे. मोहन बाबू ने मोटी रकम खर्च करके वर्मा जी तथा कुछ सशस्त्र पुलिस बल की ड्यूटी अपने थियेटर में लगवाई थी. यह सच था कि यदि वर्मा जी और पुलिस के जवान नहीं रहे होते तब भीड़ पर काबू पाना मुश्किल हो जाता. उधर प्रथम श्रेणी में मुकुल नाम का वह किशोर भी अपनी पसंदीदा सीट हथिया चुका था. इस सीट को पाने के लिए उन किशोरों को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. कैश संभालने के बाद मोहन बाबू राजीव उपाध्याय के साथ आकर अपनी अपनी सीट पर बैठ गये.
आज जीतन बाबू ने आते के साथ कमाल कर दिया. कल्ह वे थियेटर की नर्तकियों पर फिदा थे आज अनबर नाम के एक मुलाजिम पर फिदा हो गये. उन्होंने उसे कितनी बड़ी रकम देकर अपना गुलाम बनाया, यह तो उनके दोस्तों ने नहीं देखा, मगर अनबर को उनकी खिदमत में नाचते देख पारस बाबू, केदार बाबू, डाक्टर साहब और वकील साहब के मन में भी आशंका हो गयी -"पता नहीं जीतन बाबू आज कौन सा गुल खिलाने वाले हैं.?"
आश्चर्य की बात थी, अभय और उसके शराबी दोस्तों का अभी तक कोई अता-पता न हीथा. इस बात को लेकर मोहन बाबू और राजीव उपाध्याय को भी बड़ी हैरत हो रही थी.
प्रोग्राम आरंभ हो चुका था. आज के प्रोग्राम का आगाज विकास आनंद और शहनाज़ के भजन से हुआ. मंच पर एक मंदिर का दृश्य था, और उस मंदिर में विराजमान थे आदि देव शिव-शंभु. विकास आनंद रफी साहब की आवाज में भजन गा रहा था और शहनाज़ उस भजन की धुन पर शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत कर रही थी.
"इंसाफ का मंदिर है ये
भगवान का घर है.....
कहना है जो कह दे,
तुझे किस बात का डर है......!
है खोट तेरे मन जो भगवान से है दूर
हैं तेरे मन में जो भगवान से है दूर.....
है पांव तेरेऽऽऽ.... हैं पांव तेरे....फिर भी तू
आने से है मजबूर
आने से है मजबूर
हिम्मत है तो आ जा रे
भलाई की डगर है.
इंसाफ का मंदिर है ये
भगवान का घर है.....!"
भक्ति रस में डूब चुके थे दर्शक. इस भक्ति गीत के बाद आ गयी मीनाक्षी एक दर्द भरा नगमा लेकर -
"मैं तो तुम संग नैन मिलाके
हार गयी सजनाऽऽऽऽऽ
हार गयी सजना....
मैं तो तुम संग नैन मिलाके हार गयी सजनाऽऽऽऽ
हार गयी सजना.....
क्यूं छलिये को मित बनाया, क्यूं आंधी में दीप जलाया......!
मैं तो तुम संग नैन मिलाके हार गयी सजनाऽऽऽ हार गयी सजनाऽऽऽ....." मीनाक्षी के इस दर्द भरे गीत को सुनकर दर्शकों का दिल कसक उठा. वर्मा जी भी आहें भरने लगे और उन्होंने पहली पर मीनाक्षी को एक हजार की बख्शीश दी.
उधर ग्रीन रूम में कंचन बड़ी बेचैनी से चहल कदमी कर रही थी. बार बार ग्रीन रूम से झांकती हुई उस कुर्सी की ओर देखने लग जाती जिस पर कल्ह अभय बैठा था. वहां अभय को न पाकर उसके दिल का दर्द आह बनकर मुंह से निकल पड़ता. हुस्नबानो की नजर उस पर ही टिकी हुई थी. कंचन की बेचैनी उससे छुपी न रह सकी. वह करीब आकर बोली पड़ी -
"क्या बात है कंचन तू काफी बेचैन नजर आ रही है?" हुस्नबानो की आवाज सुनकर कंचन बुरी तरह से चौंक पड़ी और हकलाती हुई बोली -
"नहीं..... नहीं.... ऐसी कोई बात नहीं है दीदी.?" अपने दिल के दर्द को दबाने का प्रयास करने लगी कंचन. तभी अचानक हुस्नबानो की नजर उसकी अंगूठी पर पड़ गयी -
"यह अंगूठी तुम कहां से लाई?"
"जी दीदी.....वह क्या है कि मैं आपको बताना भूल गयी. यह अंगूठी मुझे कल रात को अभय बाबू ने बख्शीश के तौर पर दी थी."
"अभय, कौन अभय ?" अभय का नाम सुनते ही हुस्नबानो बुरी तरह से चौंक पड़ी.
"अभय राज, सुना है वह इस शहर के एमपी का बेटा है." कंचन ने अभय का संक्षिप्त परिचय दिया जिसे सुनकर हुस्नबानो का पूरा शरीर झनझना उठा. वह एकटक अंगूठी को निहारती हुई बोली -
"जरा यह अंगूठी दिखाना मुझे." कंचन को हुस्नबानो का हाव-भाव बड़ा विचित्र लगा. वह कुछ बोली नहीं चुपचाप अंगूठी निकालकर कर उसकी हथेली पर रख दी. हुस्नबानो उलट-पुलट कर अंगूठी को देखने लगी फिर उसके मुंह से दर्द भरा उच्छवास निकल पड़ा -
"हे भगवान यह मैं कहां आ गयी." हुस्नबानो एकदम से बदहवास हो गयी. यदि कंचन ने उसे थाम न लिया होता तो निश्चित रूप से वह गिर पड़ी होती. कंचन कुछ समझ नहीं पायी, आखिर अभय की इस अंगूठी से हुस्नबानो का क्या सम्बन्ध हो सकता है जो ये इतनी अपसेट हो गयी.?
"दीदी आप खुद को संभालिए."
" मैं ठीक हूं, ये लो अपना यह उपहार संभालो." पल भर में ही हुस्नबानो सहज होकर अंगूठी कंचन को लौटाती हुई बोली - "मैं उम्र में तुम से बड़ी हूं कंचन और अनुभवी भी हूं. अमीरों से जितनी दूरी बनाकर रखो उतना ही अच्छा होगा. शायद अमित मेरा नाम पुकार रहा है, मैं स्टेज पर जा रही हूं." हुस्नबानो तेजी से बाहर निकल गयी. किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी कंचन लता उसे देखती रह गयी. कुछ पल बाद उसका ध्यान अंगूठी की ओर गया. अबतक वह अभय की इस रहस्यमई अंगूठी को गौर से देखी न थी. अब उसकी उत्सुकता जग गयी और वह हुस्नबानो की तरह ही उस अंगूठी को उलट-पुलट कर देखने लगी. अंगूठी शुद्ध सोने का था और उसमें फिरोजी रंग का नीलम जड़ा हुआ था. उस नीलम पर बारीक हर्फ़ों में लिखा था "पूर्णिमा राज". वह मन ही मन सोचने लगी पूर्णिमा राज कौन हो सकती है? कहीं अभय की......? उसके मुंह से एक आह निकल पड़ी और ग्रीन रूम में रखी अपनी कुर्सी पर निढाल सी पसर गई.
स्टेज पर फिल्म मेरे हुजूर फिल्म का सीन चल रहा था. मोहन बाबू, मोती बाबू यानी अभिनेता राजकुमार की भूमिका में थे. उनके हाथ में शराब से भरा हुआ ज़ाम था. हुस्नबानो और मीनाक्षी नृत्य कर रही थी. नेपथ्य से त्रिपाठी जी का गीत गूंज रहा था -
"झनक झनक तोरी बाजे पायलियाऽऽऽ
झनक झनक तोरी बाजे पायलियाऽऽऽ
प्रीत के गीत सुनाए पायलियाऽऽऽ
झनक झनक तोरी बाजे पायलियाऽऽऽ.....
रंगमहल और रैन सुहानीऽऽऽऽऽ
आऽऽऽआऽऽऽआऽऽऽ़
रंगमहल और रैन सुहानी
छम छम नाचे मस्त जवानी......!
मैं लहरों में खोया जाऊं
मैं लहरों में खोया जाऊं
ऐसी धूम मचाए पायलिया........!
झनक झनक तोरी बाजे पायलियाऽऽऽ"
कमाल कर दिया मोहन बाबू, हुस्नबानो और मीनाक्षी ने. दर्शकों को ऐसा लग रहा था जैसे वे फिल्म मेरे हुजूर का हूबहू दृश्य देख रहे हों. हुस्नबानो के नृत्य पर खुश होकर जीतन बाबू ने दस हजार दिया तो प्रथम श्रेणी में बैठा मुकुल ने भी बीस हजार लूटा दिया. मुकुल की इस दरियादिली को देखकर हुस्नबानो की भृकुटी तन गयी. उसके मन में तूफान उमड़ने लगा -" यह लड़का इतने रूपए लाता कहां से है ? कल भी इसने दस हजार रुपए लुटाये थे. हुस्नबानो के साथ ही मोहन बाबू भी मंच से नीचे उतरे. वह उनसे विनती करती हुई बोली
"सर मैं आज अपना बाकी का प्रोग्राम पेश नहीं कर पाऊंगी."
"क्यों.?" मोहन बाबू घबरा गये.
" मेरी तबियत ठीक नहीं है. और हां प्रथम श्रेणी में बैठे मुकुल नाम के लड़के ने मुझ पर जितने रूपए लुटाए हैं वे सब मुझे वापस चाहिए."
"क्यों.....?"
"आपके इस क्यों का जवाब मैं नहीं दे सकती. मुझे चाहिए तो बस चाहिए." इतना कहकर हुस्नबानो अपने शिविर की ओर चली गयी. मोहन बाबू अवाक खड़े उसे देखते रह गये. कुछ पल बाद वे अनमने भाव से अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गये. राजीव उपाध्याय पहले से वहां बैठा था.
******
स्टेज पर शहनाज और समीर बदायुनी का प्रोग्राम चल रहा था. दिलकश आवाज और मदमस्त अदा के साथ शहनाज़ गा रही थी -
"एक परदेशी मेरा दिल ले गया, जाते जाते मीठा-मीठा ग़म दे गया......
कौन परदेशी तेरा दिल ले गया, मोटी-मोटी अंखियों में आंसू थे गया."
इस युगल गीत के साथ शहनाज़ के भावपूर्ण नृत्य ने जीतन बाबू और उनके दोस्तों को मदहोश कर दिया.
इस युगल गीत के बाद स्टेज पर नजर आयी कंचन लता. उसे देखते ही वर्मा जी के दिल को धक्का लगा. आज उसके चेहरे पर अजीब सी उदासी छाई हुई थी. कंचन की नजर एकबार फिर अभय की कुर्सी की ओर चली गयी. अब तक अभय आया न था. वह तड़प उठी. अभय की बेवफाई को देखकर उसकी इच्छा हुई कि वह अपना प्रोग्राम रोक दें. मगर यह संभव न था. थियेटर की दुनिया में तो कलाकारों की अपनी मर्जी चलती नहीं. हां इस थियेटर में हुस्नबानो ही ऐसी अदाकारा हैं, जो अपनी मर्जी की मालकिन है. तभी वर्मा जी की आवाज उसके कानों में पड़ी -" क्या हुआ कंचन जी, गाइए न." वह वर्मा जी की ओर देखकर गाने लगी -"जो मैं यह जानती के प्रीत कियेऽऽऽ दु:ख होए.
नगर ढ़िंढ़ोरा पीटतीऽऽऽ
के प्रीत न करियो कोए.
मोहे भूल गये सांवरिया.....!
भूल गये सांवरियाऽऽऽ.
आवन कह गये अजहुं न आए
आवन कह गए अजहुं न आए
लीनी न मोरी खबरिया
मोहे भूल गये सांवरियाऽऽऽ
भूल गये सांवरियाऽऽऽ"
वर्मा जी वाह वाह कर उठे और प्रथम बार उन्होंने उसे दो हजार रुपए की बख्शीश दी. उन्हें सलाम करके कंचन अपने ओठों पर फिकी मुस्कान लाती हुई फिर गाने लगी -
"दिल को दिये क्यूं दु:ख विरहा के....तोड़ दिया क्यों महल बना के
आस दिला के ओ बेदर्दी, इस दिला के ओ बेदर्दी, फेर ली काहे नजरिया
मोहे भूल गये सांवरियाऽऽऽ भूल गये सांवरिया......!
नैन कहे रो रो के सजना
देख चुके हम प्यार का सपना.
नैन कहे रो रो के सजना
देख चुके हम प्यार का सपना
प्रीत है झूठी प्रीतम झूठा, प्रीत है झूठी
प्रीतम झूठा....
झूठी है सारी नगरिया...
मोहे भूल गये सांवरियाऽऽऽ भूल गए सांवरिया....!" अभय की जुदाई कंचन से बर्दास्त न हुआ. वह अपने मुंह में आंचल डालकर सुबकियां लेने लगी और तेजी से ग्रीन रूम में भाग गयी. उधर स्टेज पर समीर बदायुनी की भी दर्द भरी आवाज उभरी -
"तेरी याद दिला से भुलाने चला हूं
मैं खुद अपनी हस्ती मिटाने चला हूं....
मिटाने चला हूं.
तेरी याद दिल से....!
घटनाओं तुम्हें साथ देना पड़ेगा
घटनाओं तुम्हें साथ देना पड़ेगा.
मैं फिर आज ऑंसू बहाने चला हूं.....!
बहाने चला हूं.
तेरी याद दिल से भुलाने चला हूं......"
ठीक इसी समय ग्रीन रूम के पीछे वाले रास्ते से अभय अपने तीनों चमचों के साथ नशे में झूमते हुए आकर खाली पड़ी कुर्सी पर बैठ गया. उसके हाथ में ह्विस्की की एक बड़ी बोतल थी. मोहन बाबू और राजीव उपाध्याय हैरत भरी ऑंखों से उन चारों को देखने लगे. उन दोनों को अभय और उसके चापलुसों का रंग-ढंग कुछ अच्छा न लगा. अभय अभद्र ढ़ंग से कुर्सी पर पसरते हुए अनाप-शनाप बकने लगा -"मेरी कंचन रानी कहां है?" तभी उसकी नजर मोहन बाबू पर पड़ी. फिर वह सारी मर्यादाओं को भूला कर चिल्लाने लगा -"ऐ मोहन बाबू मेरी कंचन को बुलाओ. आज मैं उसे रुपयों से तौल दूंगा. पूरे पांच लाख रुपए लाया हूं मैं उसे देने के लिए." मोहन बाबू और राजीव उपाध्याय की समझ में न आया कि इस बेहूदे किस्म के इंसान से आज कैसे निपटा जाए.? अभय के खास चमचा दिलीप ने तो हद ही कर दी. -"सुना नहीं क्या तुमने मोहन बाबू, हमारे बॉस के मुंह से निकलने वाली एक आवाज पर पूरे राजनगर के
लोग कांपने लगते हैं और तुमलोग खामोश बैठे हो, जल्दी कंचन को बुलाओ." मोहन बाबू तो जैसे बर्फ की तरह जम कर रह गये. राजीव से अभय और उसके चमचों की बदतमीजी बर्दाश्त नहीं हुई और वह अपनी जगह से उठ गया. तभी मोहन बाबू ने उसकी कलाई थाम ली.
"रूक जाओ राजी्व, तुम वहां मतजाओ"
" नहीं सर....आज यह हद से गुजर रहे उसे और उसके चमचों को सबक सिखाना जरूरी है." अपनी कलाई छुड़ाकर राजीव अभय की ओर बढ़ गया. मोहन बाबू उसे रोकते रहे गये, मगर वह नहीं रूका.
∆∆∆∆∆
क्रमशः.......!
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