(3)
राम बाबू नीरव
जीतन बाबू और उनकी मित्र मंडली के तो जैसे होश ही उड़ गये. ऐसी अद्भुत सुन्दरी और दुस्साहसी लड़की उन लोगों ने आजतक न देखा था. लगभग यही हाल सब इंस्पेक्टर वर्मा जी का हो चुका था. वे आश्चर्य चकित भाव से उस अद्भुत नर्तकी को निहारें जा रहे थे.
"सॉरी.....!" काफी देर बाद अभय की तंद्रा भंग हुई. इस युवती ने उसके पूरे वजूद को झकझोर कर रख दिया था. वह आत्मग्लानि से गड़ गया. उसके मुंह से पश्चात्ताप भरा स्वर निकला.
"मेनशन नॉट....!" वह एकाएक खिलखिला कर हंस पड़ी. ऐसा लगा जैसे वहां पतझड़ के बाद एकाएक बसंत बहार जा गया हो. सभी आश्चर्यचकित रह गए. पलभर में ही उस रूपसी का रूप कैसे बदल गया कि पलक झपकते ही शोला से शबनम बन गयी. और तो और अभय जैसे उदंड युवक को शराफ़त की राह पर ले आयी, यह लड़की तो जादूगरनी लगती है! वह अपनी आवाज में मधु घोलती हुई पुनः अभय से बोली -"मि० अभय.... प्लीज़ आप मेरे साथ आईए." अभय मंत्रमुग्ध हो कर उसके पीछे-पीछे चलने को विवश हो गया. फिर युवती मोहन बाबू से बोली -
"सर थोड़ी देर के लिए आप भी उस पार चलिए." वह बिना मोहन बाबू के उत्तर की प्रतीक्षा किये स्टेज की सीढ़ियां चढ़ने लग गयी. उसके पीछे अभय था और अभय के पीछे मोहन बाबू थे. वर्मा जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि वह लड़की निश्चित रूप से मायावी है, तभी तो अभय जैसा दबंग, गुस्सैल और बेलगाम युवक उसके वश में हो गया है.
"सर.....!" ग्रीन रूम के बाहर रखी वीआईपी कुर्सियों के निकट पहुंच कर रूकती हुई युवती मोहन बाबू से बोली -"यदि आपको आपत्ति न हो तो अभय बाबू को यहीं बैठने दिया जाए.?" उसकी बातें सुनकर मोहन बाबू चमत्कृत रह गये. भला उन्हें आपत्ति क्यों होती, वे तपाक से बोल पड़े -
"हां हां क्यों नहीं, आप यहीं बैठिए अभय बाबू." एक कुर्सी की ओर इशारा कर दिया मोहनबाबू ने. मगर अभय वहां था कहां, जो उनकी बात सुनता? वह तो एकटक उस अप्सरा को देखते हुए सुखद स्वप्नलोक में विचर रहा था.
"अभय बाबू.....!" युवती की मृदुल स्वर लहरी ने उसकी तंद्रा भंग कर दी.
"आं........!" उसके मुंह से अस्फुट सा स्वर निकला .
"कहां खो गये आप.?" वह पुनः हंस पड़ी एक मुक्त हंसी. तीव्र प्रकाश में उसकी दंत पंक्तियां चमक उठी. स्टेज के उस पार वीआईपी गैलरी में बैठे जीतन बाबू और उनके सभी दोस्त सारा नजारा देख रहे थे. उस नर्तकी को अभय के साथ हंस हंस कर बातें करते देख जीतन बाबू को ऐसा लगा जैसे कोई जबरन उनके मुंह में कुनैन का घोल डाल रहा हो. अभय के प्रति असीम घृणा का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने जमीन पर थूक दिया. गनीमत थी कि उन पर अभय के गुर्गो की नजर नहीं पड़ी, यदि पड़ गयी होती तो ......!
"क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं?" बड़ी विनम्रता से अभय ने नर्तकी से पूछा . उसकी विनम्रता देख मोहन बाबू हैरान रह गये. एक पत्थर दिल इंसान इतना जल्दी मोम की तरह पिघल कैसे गया? यह करिश्मा कंचन ने किया है. हमारे थियेटर की नगीना है कंचन.
"जी, अवश्य." मधुर मुस्कान थिरक उठी उस स्वप्न सुन्दरी के अधरों पर. -"मेरा पूरा नाम मिस कंचन लता है, वैसे आप सिर्फ कंचन भी कह सकते हैं.
"अभय बाबू ." अभय के इस परिवर्तित रूप को देखकर मोहनबाबू का उत्साह बढ़ गया. -"कंचन अपने मुंह से अपनी तारीफ नहीं करेगी, इसलिए मैं बतलाता हूं इसकी खुबियां. यह कल्पना थियेटर की सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना के साथ साथ उच्च कोटि की गायिका भी है. यह लता जी की आवाज की एक्सपर्ट हैं."
"कम है.....!" अभय के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा.
"क्या....?" कंचन के साथ साथ मोहनबाबू भी चौंक पड़े.
"कंचन जी की तारीफ." अभय कंचन की ओर मुग्ध भाव से देखते हुए बोल पड़ा -"मोहनबाबू, आपके थियेटर की इस नर्तकी ने मुझ जैसे पत्थर दिल इंसान को पलक झपकते ही मोम बना दिया . अद्भुत है आपकी यह कंचन."
"हां.... हां, वह तो है ही." मोहन बाबू कंचन की तारीफ सुनकर हंस पड़े. कंचन की इस अप्रतिम प्रतिभा का एहसास उन्हें भी आज ही हुआ था. किस चतुराई से कंचन ने उनके थियेटर को बर्बाद होने से बचा लिया था.
"सर, मैं आपसे कुछ गुफ्तगू करना चाहती हूं." तभी कंचन मोहन बाबू की ओर देखती हुई बोली.
"हां.... हां, कहो तुम क्या कहना चाहती हो?"
"नहीं, यहां नहीं कहूंगी, ग्रीन रूम में चलिए."
"ठीक है, चलो." मोहन बाबू ग्रीन रूम की ओर बढ़ गये.
"अभय बाबू आप यहां बैठिए मैं थोड़ी देर में आ रही हूं." कंचन ने अभय से आग्रह किया.
"ठीक है." अभय एक कुर्सी पर बैठकर स्टेज के उस पार बैठे अपने मित्रों की ओर देखने लगा.
*****
अब जरा अभय के बारे में जान लें. जहां जीतन बाबू इस शहर के एक चौथाई भू-भाग और ऐतिहासिक नीलहा कोठी के मालिक हैं, वहीं अभय राज शहर की आधी जमीन तथा भाड़े के मकानों के साथ साथ शहर की सबसे आलीशान हवेली "राज पैलेस" का एकलौता वारिस है. इसके दादाजी सेठ धनराज भारत के विख्यात वसुंधरा फूड प्रोडक्ट्स कंपनी प्रा० लि०" के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं और पिता हैं इस शहर के सांसद श्री किशन राज. इतने बड़े खानदान का यह एकलौता वारिस इस तरह का बदमिजाज कैसे हो गया, इसकी एक अलग कहानी है, जिसका बयान आगे किया जाएगा.
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एक झनाक की आवाज हुई और पर्दा उठ गया. मंच पर पूर्णरूपेण अंधेरा छाया हुआ था. झनाक् की आवाज के पश्चात सुमधुर और मद्धिम शास्त्रीय संगीत गूंजने लगा. सारे दर्शकों का दिल धड़क उठा. उत्सुकता बढ़ गई.....! पता नहीं आगे क्या होगा? अचानक मंच पर नृत्य करने लगा श्वेत प्रकाश का एक गोला. प्रकाश का वह गोला जहां जाकर स्थिर हुआ वहां खड़ा था कल्पना थियेटर का उद्घोषक सह विदूषक अमित खन्ना अपने हाथ में माइक लिये. उसका सर झुका हुआ था. तभी नगाड़े पर एक थाप पड़ी और उसका सर उठ गया. बिल्कुल जॉनी वॉकर के अंदाज में. दर्शकों ने सीटियों की आवाज तथा तालियों की गड़गड़ाहट से अमित खन्ना का स्वागत किया.
"दोस्तों.....!" माइक पर गूंजने लगी अमित खन्ना की लरजती हुई आवाज -"कल्पना थियेटर में आप सबों का हार्दिक अभिनन्दन है. मैं अमित खन्ना कल्पना थियेटर का उद्घोषक सह विदूषक हूं . मैं आप सभी दर्शकों को यकीन दिलाता हूं कि हमारी थियेटर कम्पनी में आकर आपको निराश नहीं होना पड़ेगा. हमारी कम्पनी में एक से बढ़कर एक फनकार हैं जो आप लोगों को नृत्य, गीत, संगीत और अभिनय की उस दुनिया में ले जायेंगे जिसे इन्द्रलोक कहा जाता है. हमारी कम्पनी अश्लील प्रोग्राम पेश नहीं करती. इसलिए आप दोस्तों से इल्तिज़ा है कि ऐसे किसी भी गीत अथवा नृत्य की फरमाइश न करेंगे. दोस्तों आज हम अपने पहले शो में भारतीय हिन्दी सिनेमा के गीत एवं नृत्य पर आधारित कार्यक्रमों के साथ-साथ भारतीय हिन्दी नाट्य परम्परा का प्रथम नाटक सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र का प्रदर्शन करेंगें. आज के हमारे शो का विधिवत शुभारंभ आपके शहर की जानी-मानी हस्ती.....!" कुछ देर के लिए अमित खन्ना रूक गया और वीआईपी गैलरी में बैठे हुए जीतन बाबू तथा उनके दोस्तों की ओर देखने लगा. जीतन बाबू तथा उनके मित्रों को लगा कि अमित खन्ना जीतन बाबू का ही नाम बोलेगा. उन लोगों का दिल तेजी से धड़कने लगा. तभी अमित खन्ना अपनी नजरें फेर कर अभय राज की ओर देखते हुए बोला -"उस अज़ीम शख्सियत का नाम है अभय राज."
"हुर्रे......." अभय का नाम सुनते ही वीआईपी गैलरी में बैठे उसके तीनों दोस्त उमंग की तरंग में बहकर चहकने लगे. जीतन बाबू के मुंह से अभय के लिए भद्दी सी गाली निकल पड़ी -"साला मादर......दो बित्ता का छोकरा हमसे..... बाबू ज्योतनारायण सिंह से टकराने चला है, जरा बाहर निकल, छठी का दूध याद न दिला दिया तो हमरा नाम बदल देना." गनीमत थी कि अभय के चमचों के कानों तक उनकी आवाज नहीं पहुंच पाई. उधर अभय अपने खयालों में खोया हुआ था. उसके दिलों दिमाग पर तो कंचन छायी हुई थी. उसे इस बात का भी आभास न हुआ कि किसी छलावा की तरह कंचन अचानक उसके सामने आकर खड़ी हो गयी थी और उसकी कलाई थाम कर खींचती हुई बोल रही थी -"चलिए अभय बाबू.!"
"कहां....?" हैरत से उसकी ओरदेखते हुए अभय ने पूछा.
"स्टेज पर, और कहां?"
"मगर किसलिए......?" अभय हैरान था. उसे न गाने आता है, न नाचने, फिर वह स्टेज पर जाकर क्या करेगा?
"अमित खन्ना ने जो घोषणा की उसे अपने नहीं सुना क्या.?"
"न नहीं तो....!"
"आपको आज के प्रोग्राम का उद्घाटन करना है चलिए जल्दी." कंचन उसे खींचती हुई स्टेज की ओर बढ़ गयी.
स्टेज पर एक बार फिर अंधेरा छा चुका था. पंडाल में वहीं सुमधुर संगीत लहरी गूंज रही थी. नगाड़े पर पुनः एक थाप पड़ी और इस बार स्टेज पर लाल, पीला और दूधिया प्रकाश पूंज थिरकने लगा. लाल प्रकाश पूंज जहां रूका वहां खड़ी थी भरत नृत्यम् की मुद्रा में कंचन लता और पीले रंग का प्रकाश जहां स्थिर हुआ वहां खड़ा था अभय राज और दूधिया प्रकाश स्थिर हुआ ध्यान मग्न अवस्था में भगवान भोलेशंकर की प्रतिमा पर. इस धार्मिक और चमत्कारिक दृश्य को देखकर दर्शकों में हर्ष की लहर दौड़ने लगी. भगवान भोलेशंकर की प्रतिमा के समक्ष चौमुखा दीपक रखा था. दीपक के पास ही एक जलती हुई मोमबत्ती रखी थी. कंचन अभय के कान में फुसफुसाती हुई बोली -"अभय बाबू दीप जलाईए, जल्दी." अभय विमूढ़ सा कंचन की आज्ञा का पालन करता जा रहा था. जैसे ही चौमुखा दीपक प्रज्वलित हुआ कि पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. मंच पर कंचन भी ताली बजाने लगी. वीआईपी गैलरी में जीतन बाबू और उनके मित्रों को छोड़कर बाकी सभी ताली पीट रहे थे. जीतन बाबू और उनके सभी दोस्त जल-भुन कर कबाब बन गये.
"अभय बाबू प्लीज़ अब आप नीचे जाइए." कंचन मद्धिम स्वर में आग्रह करती हुई बोली.
"थैंक्स कंचन, तुमने इस पापी को....!"
"शीऽऽऽ ....!" कंचन ने उसके मुंह पर अपनी अंगुली रख दी -"शुभ घड़ी में ऐसी अशुभ बातें नहीं बोला करते. अब प्लीज़ जाइए." उत्फुल्लता पूर्वक कदम बढ़ाते हुए अभय नीचे उतरकर अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया.
पंडाल में विशुद्ध शास्त्रीय संगीत गूंजने लगा. और इसके साथ ही गूंज उठी कंचन लता के घूंघरुओं की झंकार. नेपथ्य से निकलकर उसके इर्द-गिर्द अन्य नर्तकियां भी नृत्य करने लगी. नेपथ्य से पं० एस० एन० त्रिपाठी का स्तुतिगान उभरा -
"हरि ओम्.....हरि ओम्, ह....रि....ओम्." त्रिपाठी जी के इस शास्त्रीय राग पर कंचन भावपूर्ण नृत्य करने लगी. उसके नृत्य कौशल को देखकर तथा त्रिपाठी जी की तान को सुनकर दर्शकों के साथ साथ अभय की भी सांसें रूकने सी लगी.
"मन तड़पत हरि दर्शन को आज
मन तड़पत हरि दर्शन को आज........!" त्रिपाठी जी के इस पूरे भक्ति राग पर थिरकती हुई कंचन ने अपने सम्पूर्ण शरीर को तोड़ मरोड़ कर रख दिया. ऐसा लग रहा था जैसे कंचन रबड़ की गुड़िया हो. दर्शक झूम उठे, पूरा पंडाल वाह ! वाह!! की करतल ध्वनि और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. अभय इतना भावविभोर हो चुका था कि वाह वाह करना और ताली बजाना भी भूल गया. कमोवेश वीआईपी गैलरी में बैठे सब इंस्पेक्टर वर्मा जी की भी ऐसी ही है कि हालत हो चुकी थी. जीतन बाबू और उनके मित्रों को कंचन रत्ती भर भी पसंद न थी, क्योंकि वह उन लोगों के सबसे बड़े शत्रु अभय राज की चहेती जो बन चुकी थी. इस भजन के समाप्त होते ही मंच पर पुनः अंधकार छा गया. इस अंधकार में कंचन ने जाने कहां गुम हो गयी. अभय की बेचैन आंखें उसे ढ़ूंढ़ने लगी. जब मंच पर प्रकाश फैला तब अमित खन्ना अपने चिर-परिचित अंदाज में नजर आया-
"दोस्तों, अभी आप देख रहे थे हमारे थियेटर कम्पनी की बेहतरीन नृत्यांगना मिस कंचन लता और सप्तसुरों के बेताज बादशाह पं० एस० एन० त्रिपाठी जी द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण. अब हमारे आज के शो का विधिवत आगाज करने आ रही है एकबार फिर मिस कंचन लता, स्वर साम्राज्ञी मोहतरमा लता दीदी की दिलकश आवाज में उनके ही गीतों का नजराना लेकर. मिस कंचन जी की खिदमत में इस ख़ाकसार ने ये शे'र अर्ज़ किया है-
"उस ज़ुल्फ का क्या कहना जो दोश पे लहराये,
सिमटे तो बने नागन, बिखरे तो घटा छाये."
"वाह वाह अमित भैया,जुग जुग जियो." प्रथम श्रेणी में सबसे आगे की पंक्ति में बैठे एक दर्शक के मुंह से निकल पड़ा. अमित ने हंसते हुए उसे सलाम किया. उधर पलक झपकते ही किसी चमत्कार की तरह अपना लिबास बदल कर कंचन लता मंच पर हाजिर हो गयी. वह पिंक कलर का बूटेदार समीज और सलवार पहने हुई थी और सर पर उसी रंग के दुपट्टे ने उसके सौंदर्य को और भी निखार दिया था. वह अमित के हाथ से माइक लेकर अपनी जादुई आवाज फिजाओं में बिखेरने लगी- "दोस्तों आज के पहले प्रोग्राम का पहला नजराना मैं नज़र कर रही हूं आजके चीफ गेस्ट मि० अभय राज को."
"हुर्रे......!" अभय के गुर्गे खुशी से झूम उठे और जीतन बाबू के मुंह से फिर एक भद्दी गाली निकल पड़ी. उधर कंचन की आवाज पुनः उभरी. -"तो दोस्तों जो गीत मैं पेश करने जा रही हूं उसके बोल हैं - नैनो वाली ने हाय मेरा दिल लूटा. और फ़िल्म का नाम है -"मेरा साया"
"वाह वाह." पलक झपकते ही कंचन लता के सैकड़ों चाहने वाले हो गये." फिजाओं में सुमधुर संगीत गूंजने लगी और इस संगीत थुन पर गूंज उठी कंचन की स्वर लहरी.-
"नैनो वाली, भोली-भाली, किस्मत वाली ने हाय मेरा दिल लूटा.
दिल मेरा लूटा, दिल मेरा....हाय....हाय...
नैनो वाली ने हाय मेरा दिल लूटा." इस गीत के साथ साथ कंचन के हाव-भाव ने भी दर्शकों को सम्मोहित कर लिया. कंचन कर संगीत प्रेमियों द्वारा नोटों की बरसात होने लगी. थियेटर के कर्मचारी दर्शकों से नोट बटोर रहे थे. किसी भी परिस्थिति में किसी भी दर्शक को स्टेज पर चढ़ने की इजाजत नहीं थी. जैसे ही गीत समाप्त हुआ कि सभी श्रेणियों के दर्शक वाह वाह की ध्वनि के साथ तालियां बजाने लगे. अभय भी झूमने लगा था उधर वर्मा जी के दिल की धड़कन भी बढ़ गयी थी, यदि वे बर्दी में न रहे होते तो अपनी सीट पर खड़े होकर ठुमके लगा रहे होते. तभी अभय के मुंह से खुशी से लवरेज स्वर निकल पड़ा -
"कंचन जी प्लीज़ एक और.....!" उसकी बेताबी देखकर कंचन मुस्कुराने लगी -
", शुक्रिया मेरे मेहरबां. अब मैं मुख्य अतिथि श्री अभय राज की फरमाइश पर लता दीदी का गाया हुआ एक और गीत प्रस्तुत कर रही हूं जिसके बोल हैं -", मेरा बदलती में छुप गया चांद रे.....!"
"हुर्रे......!" उछलने लगे कंचन के दीवाने. कंचन के द्वारा इस गीत की घोषणा करतैही नेपथ्य निकल कर अन्य नर्तकियां थिरकने लगी, इसके साथ ही कंचन की दिलकश आवाज फिजा में गूंज उठी -
"मेरा बदलती में छुप गया चांद रे कहां ढ़ूंढ़े नयन मोरे बाबरे
आ जा आ जा ओ सांबरे....
मेरा बदलती में छुप गया चांद रे
कहां ढ़ूंढ़े नयन मोरे बाबरे
आ जा आ जा ओ सांवरे.....!"
अन्य नर्तकियां भी इस समूह गान में कंचन के सुर से सुर मिलाने लगी-
"आऽऽऽ आऽऽऽ आऽऽऽ.....
"दुनिया ने तोड़ दिये सपने सुहाने
रो रो के याद करूं गुजरे जमाने
आऽऽऽ आऽऽऽ आऽऽऽ....
आजा पिया मोरा तड़पे जिया
मेरे जीवन की होने लगी शाम रे
कहां ढ़ूंढ़े नयन मोरे बाबरे
आजा आजा ओ सांवरे........"
कंचन के इस गीत ने दर्शकों को झूमा दिया. अभय और वर्मा जी का दिल बाग बाग होकर उछलने लगा. दर्शक उस पर नोटों की बौछार तो कर ही रहे थे मगर उन दर्शकों में साठ के पार के एक ऐसा भी दर्शक था जिस पर कंचन की दिलकश आवाज ने ऐसा जादू डाला कि वह अपने हाथ में सौ का एक लेकर लहराते हुए तथा लड़खड़ाते कदमों से स्टेज की ओर बढ़ने लगा. थियेटर के एक कर्मचारी की नज़र उस पर पड़ गयी. वह लपकते हुए उसके करीब आ गया और उसे रोकते हुए विनम्रता पूर्वक बोला -"सर आप कष्ट क्यों कर रहे हैं, लाइए आपकी यह बख्शीश कंचन जी तक पहुंचा देता हूं." बेचारा कंचन का वह दीवाना मायुस हो गया. उसकी इच्छा थी कि मैं खुद अपने हाथों से कंचन जी को नज़राना दूं. मगर अफसोस इस थियेटर कम्पनी के नियम, कायदे और कानून के कारण उस बेचारे का दिल टूट गया. उसकी तमन्ना उसके दिल में ही दफ़न होकर रह गयी. थियेटर का कर्मचारी उसके हाथ से रुपए लेकर आगे बढ़ गया. वह दर्शक कशमशाते हुए चिल्ला पड़ा -"अरे भैया, मेरा नाम भी कंचन जी को बता देना."
"हां हां ज़रूर बताऊंगा, क्या है आपका नाम."
"दिलदीप कुमार, मैं दिलीप कुमार जी, वैजयंती माला जी और लता जी का फैन हूं." वह इतनी जोर से बोला कि स्टेज पर खड़ी कंचन लता बेबाकी से हंस पड़ी. कंचन की हंसी ने दिलदीप कुमार जी को मदहोश कर दिया और वे अपना दिल थाम कर अपनी जगह पर बैठ गये.
उधर वीआईपी गैलरी से सब इंस्पेक्टर वर्मा जी चिल्ला पड़े-
"कंचन जी, प्लीज़ वनस् मोर."
"जी, शुक्रिया. लीजिए आपकी फरमाइश पर पेशे खिदमत है ये गीत." फिर वह अभय की ओर देखती हुई गाने लगी -
"मैं तो तुम संग नैन मिलाके
हार गयी सजनाऽऽऽ
हार गयी सजनाऽऽऽ" वह कभी मदमस्त चितवन से अभय की ओर देखती तो कभी वर्मा जी की ओर. वे दोनों कंचन की दिलकश अदाओं के तीर से घायल होकर तड़पने लगे. कंचन का गीत समाप्त हुआ. अभय और वर्मा जी उसे दाद पर दाद देने लगे. अचानक स्टेज पर अंधेरा छा गया. जब दूधिया प्रकाश फैला तब अपने खास हास्य अंदाज में नजर आया अमित खन्ना. मगर अभय की रुचि खन्ना में नहीं थी. वह सिर्फ और सिर्फ कंचन को ही सुनना और देखना चाहता था. मगर ऐसा संभव नहीं था क्योंकि इस थियेटर में और भी बहुत से कलाकार थे. और सबसे बेहतरीन अदाकारा थी मोहतरमा हुस्नबानो.
"अभय बाबू." कंचन की आवाज सुनकर चौंक पड़ा अभय. उसे पता ही नहीं चला कि कब कंचन स्टेज से उतर कर उसके सामने आकर खड़ी हो गयी है. वह कंचन के सम्मान में उठकर खड़ा हो गया -
"कंचन जी, आप महान कलाकार हैं." कंचन की तारीफ करते हुए आह्लादित स्वर में बोला अभय.
"शुक्रिया....!" कंचन मंद मंद मुस्कुराने लगी. अभय अपनी शय में बोलता चला गया -
"आपकी कलाकारी को दुनिया की बड़ी से बड़ी दौलत से भी नहीं आंका जा सकता. लोग आपकी फनकारी पर खुश होकर रुपए लूटा रहे हैं, मगर मेरी जेब में रुपये हैं नहीं, इसलिए मेरी ओर से यह तोहफा कबूल कीजिए." अभय ने अपनी अंगुली में से हीरा जरा हुआ अंगूठी निकालकर बेतकल्लुफ़ कंचन की अंगुली में पहनना दिया. कंचन हैरानी से उसके इस कृत्य को देखती रह गयी. उसकी समझ में नहीं आया कि वह अभय के इस बहुमूल्य उपहार को स्वीकार करें या अस्वीकार. अभय उसके असमंजस को समझ गया और थोड़ा व्यथित भाव से बोला -
"कंचन जी इंकार मत कीजिएगा, वरना मेरा दिल टूट जाएगा."
अभय की इन बातों में ऐसी कसक थी जिसके दर्द को महसूस कर कंचन भी तड़प उठी. वह समझ गयी - इस युवक के दिल को अवश्य ही किसी ने चोट पहुंचाई है."
"शुक्रिया अभय बाबू. आपको किन शब्दों में मैं धन्यवाद दूं, कोई उचित शब्द नहीं है मेरे पास. बहरहाल आप बैठिए मैं ड्रेस चेंज करके तुरंत आती हूं."
"ओके.....!" अभय कुर्सी पर बैठ गया और कंचन ग्रीन रूम में घुस गयी.
∆∆∆∆∆∆∆
क्रमशः............!
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