राजीव तमतमाया हुआ आया तो सही, मगर उन लोगों के सामने आते ही उसका सारा आक्रोश हवा में उड़ गया. अभय के समक्ष खड़ा होकर वह विनम्रता से बोला -"देखिए सर, आप इत्मीनान से बैठिए. कंचन जी अभी अभी अपना प्रोग्राम समाप्त करके ग्रीन रूम में गयी हैं. वे अभी नहीं आ सकती, आज उन्हें लैला बनना है."
"ख़ामोश.....! वह लैला नहीं बनेगी." अभय इतनी जोर से चिल्लाया कि राजीव के साथ साथ मोहन बाबू भी सहम गये. - "कंचन सिर्फ मेरे साथ ही बैठेगी, समझ गये तुमलोग." उसकी उदंडता देख राजीव खुद को रोक नहीं पाया और वह भी थोड़ा तैश में आकर बोल पड़ा - "देखिए सर यह थियेटर है, आपकी कोठी नहीं. यहां आपका हुक्म नहीं चल सकता, समझ गये आप."
"साला, कुत्ता, कमीना मुझसे ऊंची आवाज में बात करेगा.सेठ धनराज के पोते से.? तू जानता नहीं कि मेरे दादाजी इस शहर के किंग हैं.? ठहर अभी मैं तुम्हें मजा चखाया हूं." अभय राजीव का गिरेबान पकड़ कर उसे चांटा मारना चाह ही रहा था कि उसके स्वयं के गाल पर ताबड़तोड़ अनगिनत चांटें पड़ते चले गये. कोई समझ नहीं पाया कि अचानक यह क्या हो गया. सभी आवाक रणचंडी का रूप धारण किये हुई कंचन को देखते रह गये. वह अपनी दहकती हुई ऑंखों से अंगार बरसाती हुई अभय को घूर रही थी और उसके मुंह से निकल रहे विषबाण अभय के कलेजे को छेद रहे थे -
"नीच इंसान, मैंने तुम्हें इतना समझाया, मगर तुझ पर कुछ भी असर न हुआ. असल में तुम इंसान हो ही नहीं, शैतान हो शैतान. अरे दुनिया के किसी भी दौलतमंद की इतनी हैसियत नहीं हो सकती कि वह कल्पना थियेटर की किसी भी नर्तकी को खरीद सके. तुम हो क्या....? सेठ धनराज के पोते हो.... एमपी किशन राज के बेटे हो, इसके अतिरिक्त तुम्हारी अपनी पहचान क्या है? जाओ.... दफा हो..... जाओ यहां से, मैं तुम से नफ़रत करती हूं." क्रोध के मारे कंचन के मुंह से झाग निकलने लगा. उसकी चीख सुनकर ग्रीन रूम से सभी कलाकार निकल कर बाहर आ गये. और हैरत से उन दोनों को देखने लगे. मोहन बाबू अपनी कुर्सी पर बैठे हुए बाल नोच रहे थे. यह क्या कर दिया इस पागल लड़की ने. अब कल्पना थियेटर को बर्बाद होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. अभय के मवाली दोस्त निश्चित रूप से पंडाल में आग लगा देंगे.? त्रिपाठी जी और मूर्ति जी मोहन बाबू के निकट आकर खड़े हो चुके थे. वे दोनो भी कंचन के इस दुस्साहस को देखकर अचंभित रह गये. और अभय जैसे चेतना शून्य हो चुका हो. वह फटी फटी ऑंखों से कंचन के लाल सूर्ख चेहरे को देखता रह गया. उसके सर से शराब का नशा उतर चुका था. आज तक उसके दादा जी या पिताजी ने उसे हल्की चपत तक न लगाई थी मगर, थियेटर की यह मामूली नाचने वाली उसे थप्पड़ पर थप्पड़ मारती चली गयी. क्या वह इतना बुरा इंसान है? आत्मग्लानि से उसकी गर्दन झुक गयी. और ऑंखों से निर्झर की तरह ऑंसू बहने लगे. पहले तो उसके दोस्त कुछ समझ ही नहीं पाए कि अचानक यह क्या हो गया, जब उन्हें होश आया तब वे तीनों एकदम से आग बबुला हो उठे.
"हरामजादी, तुम्हारी इतनी हिम्मत....दो टक्के की नाचने वाली होकर तुमने हमारे बॉस को थप्पड़ मारा.?" शेखर दांत पिसते हुए कंचन के सामने आकर खड़ा हो गया. -"तुम्हें अपनी खुबसूरती पर बहुत घमंड है न तो ठहर जा अभी तेजाब से तुम्हारे चेहरे को ही बदसूरत बना देता हूं." शेखर ने जैसे ही कंचन की चोटी पकड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया कि उसी पल उसके जबड़े पर एक जबरदस्त घूंसा पड़ा और वह धूल चाटने लगा. अभय ने इतने पर ही बस नहीं किया, वह पागल की तरह उसे लात और घूंसों से धुनता चला गया. -
"साले.... तुमलोगों ने ही मुझे बर्बाद कर दिया. क्यों मुझे इतनी शराब पिलाई, बताओ क्यों पिलाई.? तुम सबके सब मेरे दोस्त नहीं दुश्मन हो. जाओ दूर हो जाओ मेरी नज़रों के सामने से....जाओ." इतनी जोर से चीखा अभय कि स्टेज के उस पार वीआईपी गैलरी में बैठे वर्मा जी के कानों तक में गूंजने लगी उसकी चीख. वे उच्चक उच्चक कर इस ओर देखने लगे. फिर भी माजरा उनकी समझ में न आया. मंच पर अमित खन्ना कैरीकेचर करते हुए दर्शकों का मनोरंजन कर रहा था. वह इधर घटनेवाली घटना से वाकिफ हो चुका था. दर्शकों का ध्यान इस ओर न आ जाए इसलिए वह उन्हें उलझाए रखना चाहता था. अभय के बदले हुए रूप को देखकर मोहन बाबू और अमित खन्ना ने राहत की सांस ली.
"हमें माफ कर दो अभय, हमलोग अब...." दिलीप उसके सामने आकर माफी मांगने लगा. तब तक शेखर भी उठकर खड़ा हो चुका था. और कातर दृष्टि से अभय की ओर देखने लगा.
"मैं कुछ भी सुनना नहीं चाहता, अब नफरत हो गयी है तुम लोगों से. अपनी खैरियत चाहते हो तो दफा हो जाओ यहां से और दुबारा अपनी सूरत मत दिखाना." वे लोग जानते थे, एकबार अभय के मुंह से जो निकल जाए, वह पत्थर पर खींची हुई लकीर होती है. अब अभय को मनाना उन लोगों के वश की बात न थी. वे तीनों अपनी अपनी गर्दन झुकाए हुए पिछले दरवाजे की ओर बढ़ गये. उन तीनों के वहां से जाते ही अभय नीचे बैठ गया और अपना मुंह ढांप कर रोने लगा. सभी हैरत से उसे देख रहे थे. मोहन बाबू फिर आशंकित हो गये."यदि इस घटना की जानकारी एमपी साहब को हो गयी, तब क्या होगा?" कंचन तो अभय की मनोदशा देखकर एकदम से जड़ होकर रह गयी. काफी देर तक रोने के बाद अभय उठकर खड़ा हो गया और कुर्सी के नीचे रखी हुई ह्विस्की की बोतल उठाकर बाहर की ओर जाने लगा. तभी उसके कानों में कंचन की मृदुल आवाज पड़ी -
"रूको अभय."
उसके पांव जहां के तहां थम गये. मगर वह कंचन की ओर मुड़ा नहीं. उसका हृदय इतना आहत हो चुका था कि उसमें अब कंचन से नजरें मिलाने की हिम्मत ही नहीं बची थी. कंचन स्वयं शिथिल कदमों से चलती हुई उसके सामने आकर खड़ी हो गयी और अपने ओठों पर मृदुल मुस्कान लाती हुई बोली - "कहां जा रहे हो तुम....?"
"मुझे खुद नहीं मालूम कि यहां से अब मैं कहां जाऊंगा.? मैं बहुत बुरा इंसान हूं कंचन. जब से मैंने जन्म लिया है तब से, सब को दु:ख ही दु:ख दे रहा हूं. तुमने ठीक कहा, मैंने सेठ धनराज जैसे धर्मात्मा का नाम डूबो दिया. मुझ जैसे ज़लील इंसान को जीने का कोई हक नहीं."
"खबरदार.....!" कंचन मीठे स्वर में उसे झिड़कने लगी -"ऐसी बेहूदी बातें फिर कभी अपने मुंह से मत निकालना. जिस चीज की वजह से तुम एक भला मानुष से बुरे इंसान बन जाते हो क्या उस चीज का परित्याग तुम नहीं कर सकते? क्या तुम्हारी जिन्दगी और तुम्हारे ऊंचे कुल की मान-मर्यादा से बढ़कर है शराब की यह बोतल." कंचन की इन बातों को सुनकर अभय का दिलो-दिमाग झनझनाने लगा और वह अपने हाथ में लिए हुए ह्विस्की की बोतल को विचित्र नजरों से निहारने लगा. उसके दिल में भयानक तूफान उठ खड़ा हुआ था, क्या वह शराब छोड़ दें.? उसके चेहरे पर अनगिनत भाव आ और जा रहे थे. कंचन एकटक उसके चेहरे को निहार रही थी. कोई बुरी आदत इतनी आसानी से नहीं छूटती. अभय अपने अंदर के बुराइयों से लड़ रहा है. अचानक कंचन उसकी कलाई पकड़ती हुई बोली -
"तुम्हारी इच्छा यही है न कि मैं तुम्हारे साथ बैठूं, तो चलो बैठती हूं. यदि तुम कहोगे तो मैं आज लैला भी नहीं बनूंगी."
"नहींऽऽऽ.....!" अभय के मुंह से हल्की सी चीख निकल पड़ी -" इतनी जल्दी कोई निर्णय मत लिया करो. तुम तनिक रूको मैं मोहन बाबू, त्रिपाठी जी और मूर्ति जी से मिलकर आता हूं वे लोग मेरी ओर ही देख रहे हैं." अभय उन लोगों की ओर बढ़ गया. मोहन बाबू के समक्ष खड़ा होकर वह करूण स्वर में बोला -
"सर मैंने आप लोगों को बहुत अपमानित किया है. आप सभी लोग मेरे पिता तुल्य हैं. फिर भी मुझ से ऐसी गलीज हरकत हो गयी और यह सब कुछ हुआ इस गंदी चीज के कारण." अभय ह्विस्की की बोतल मोहन बाबू के सामने लहराने लगा. मोहन बाबू, त्रिपाठी जी, मूर्ति जी और राजीव उपाध्याय अभय को ऐसे देखने लगे जैसे कोई अजूबा देख रहे हों. कंचन की ऑंखें भी आश्चर्य से फटने लगी. अभय अपनी शय में बोलता जा रहा था.-
"मैंने अपनी इस छोटी सी उम्र में ही बहुत सारी लड़कियां देखी है सर, लेकिन कंचन जैसी एक भी मेरी ज़िन्दगी में नहीं आयी. मेरे दादाजी ने कहा बेटा अभय शराब छोड़ दो, लेकिन मैंने नहीं छोड़ा, रग्घू काका, जिनकी गोद में पलकर मैं इतना बड़ा हुआ हूं, ने कहा शराब छोड़ने को लेकिन मैंने नहीं छोड़ा, मेरे जिगरी दोस्त, जिसने मुझे नयी जिन्दगी दी, उसने भी कहा अभय शराब छोड़ दो, लेकिन मैंने उसकी बात भी नहीं मानी, मगर आज मैं कंचन के कहने पर शराब छोड़ रहा हूं." इसके साथ ही अभय ने बोतल को जमीन पर पटक दिया. एक झनाक की आवाज हुई और बोतल चकनाचूर हो गया. सभी चमत्कृत रह गये. कंचन हर्ष से ताली पीटती हुई उसके करीब आ गयी.
"थैंक्स अभय तुमने मेरे वचन की लाज रख ली."
"कंचन, खुशी के इस मौके पर तुमसे एक और खुशी मांगना चाहता हूं, क्या तुम दोगी."
"अगर मेरे वश में होगी तो अवश्य दूंगी, मांगों क्या मांगते हो.?"
"कल राज पैलेस में मैं तुम्हारे साथ साथ थियेटर के सभी कलाकारों को लंच के लिए आमंत्रित कर रहा हूं, क्या तुम्हें स्वीकार है.?"
"मोहन बाबू सर यदि अनुमति दें तो.....!" कंचन मोहन बाबू की ओर देखने लगी.
"मुझे कोई आपत्ती नहीं है." मोहन बाबू ने हंसते हुए कहा.
"हुर्रे....." अभय मासूम बच्चे की भांति उछलने लगा. -"आप सभी लोग राज पैलेस में सादर आमंत्रित हैं."
"मुझे क्षमा करें अभय बाबू." मोहन बाबू बोल पड़े -"मेरी कुछ मजबूरियां हैं, इस कारण मैं नहीं आ पाऊंगा."
"ऐसी कौन सी मजबूरी है सर...!"
"जिद मत कीजिए प्लीज़."
"ओके सर, अच्छा कंचन अब मैं चलता हूं"
"क्यों, क्या मुझे लैला के रूप में नहीं देखोगे."
"देखने की इच्छा तो है, लेकिन फिलहाल मैं इस खुशखबरी को अपने जिगरी दोस्त रीतेश के साथ शेयर करना चाहता हूं."
"ओह तब तो मैं नहीं रोकूंगी. अरे हां.... अभय, एक बात बताओ ये पूर्णिमा राज कौन है?"
"मेरी मां. क्यों.....!"
"नहीं....बस ऐसे ही." कंचन के मुखरे पर अप्रतिम आभा चमकने लगी.
तभी अभय को कुछ याद आया और वह अपनी गर्दन में लटक रहे बैग को निकाल कर कंचन को थमाते हुए बोला-" कंचन इस बैग में कुछ रुपए हैं, जो मैं तुम्हें और अन्य कलाकारों को बख्शीश के रूप में देने के लिए लाया था, इसमें से तुम्हारी जितनी इच्छा हो रख लेना, बाकी अन्य कलाकारों में बांट देना."
"नहीं अभय मैं ये रुपए नहीं ले सकती." कंचन ने साफ साफ इंकार कर दिया.
"देखो यदि तुमने इंकार किया तो मैं फिर से बुरा आदमी बन जाऊंगा."
"अभय तुम भी न...." कंचन तुनक पड़ी और उसके हाथ से बैग छीन कर हंसती हुई बोली -"ठीक है ये रुपए मैं सभी कलाकारों में बांट दूंगी मगर खूद न लूंगी."
"क्यों.....?"
"क्योंकि मेरे लिए तुम्हारा अनुराग ही उन रुपयों से अधिक महत्वपूर्ण है."
"कंचन तुम भी न.....!" अभय हंसते हुए कंचन की नकल उतारते हुए बोला.
"अभय, क्या तुम्हारी माता जी राज पैलेस में ही हैं?" अचानक कंचन ने अभय की दुखती हुई रंग पर अंगुली रख दी.
"नहीं......" अभय का गला अवरुद्ध हो गया.
"तो कहां हैं?" कंचन विकल भाव से उसकी ओर देखने लगी.
"स्वर्गलोक में.....!" अभय ने उत्तर दिया
और तेजी से पिछले दरवाजे की ओर बढ़ गया.
कंचन स्तब्ध खड़ी एकटक अभय को निहारती रही गयी. फिर उसके मुंह से एक सर्द आह निकल पड़ी -
"मैंने व्यर्थ ही अभय का दिल दुखा दिया."
∆∆∆∆∆
क्रमशः.............!
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