- राम बाबू नीरव
आज थियेटर में न तो जीतन बाबू आये और न ही मुकुल और उसके दोस्त. सब इंस्पेक्टर वर्मा जी ने मोहन बाबू को बताया कि जीतन बाबू की हालत फिलहाल ठीक है और कल रात वाली घटना को लेकर वे इतने लज्जित हो चुके हैं कि उन्होंने थियेटर में न आने की कसम ले ली है. मोहन बाबू ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. कंचन और शहनाज़ आज बहुत खुश नजर आ रही थी क्योंकि आज अभय के साथ उसका दोस्त रीतेश भी आने वाला था. ग्रीन रूम से झांकती हुई वे दोनों बार बाहर देख लेती, मगर अभय और रीतेश को न देखकर निराश हो जाती. मंच पर विकास आनंद का प्रोग्राम चल रहा था, वह रफी जी का एक दर्द भरा नगमा अपने अंदाज में पेश कर रहा था -
"याद न जाये, बीते दिनों की,
जाके न आये जो दिन
दिल क्यूं भुलाये....दिल क्यूं भुलाये....
याद न जाये बीते दिनों की......!
दिन जो पखेरू होते,
पिंजरे में मैं रख लेता,
पालता उनको जतन से
पालता उनको जतन से मोती के दाने देता,
सीने से रहता लगाये...!
याद न जाये बीते दिनों की....!"
विकास के इस गीत को सुनकर कंचन के दिल में एक टीस सी उठी, तभी उसके साथ साथ शहनाज़ भी मीनाक्षी की आवाज सुनकर चौंक पड़ी -
"क्या बात है कंचन तुम दोनों इतनी व्याकुल क्यों हो....?"
"मीनाक्षी, आज अभय बाबू के साथ उनके एक अभिन्न मित्र आनेवाले हैं." कंचन खुद की बेचैनी पर काबू पाती हुई बोली.
"अच्छा, तो यहां उन्हीं दोनों का इंतजार हो रहा है.?" मीनाक्षी की बातों में कटाक्ष का भाव छुपा था.
"हां मीनाक्षी, बहुत भले इंसान हैं वे, यदि तुम उन्हें देखोगी तो....!"
"हां हां आगे बोलो रूक क्यों गयी, यही कहना चाहती हो न कि मैं अभय बाबू के मित्र पर मर मिटूंगी. जैसे कि तुम अभय बाबू पर मर मिटी हो." हालांकि मीनाक्षी परिहास करती हुई बोली थी, मगर उसकी यह बात कंचन के दिल को चूम गयी. वह दर्द से तड़पती हुई बोली -
"तुम गलत सोच रही हो मीनाक्षी, हमारा ऐसा भाग्य कहां जो हम थियेटर में नाचने गाने वाली लड़कियां किसी ऊंचे घराने के लड़के से प्यार-मोहब्बत कर सकें. हम तो सिर्फ उन लोगों का मनोरंजन कर सकती हैं बस." कंचन के चेहरे पर उसके दिल का दर्द उभर आया. उसके दर्द को महसूस कर अंदर ही अंदर मीनाक्षी भी तड़पने लगी. वह क्षमा याचना करती हुई बोली -
"माफ करना कंचन मैंने तो सिर्फ मजाक किया था, और तुम इस मजाक को भी सिरियसली ले बैठी. शहनाज़ आपा तुम ही समझाओ इसे."
"यह क्या बचपना है कंचन." शहनाज़ उसे झिड़कती हुई बोली -" इस हकीकत को तो हम सभी जानती हैं कि प्यार मुहब्बत जैसे अल्फाज हम सबों के लिए बेमानी हैं, मीनाक्षी के मजाक को लेकर तुम इतनी संजिदा क्यों हो रही हो ?" उधर मंच पर अमित खन्ना कंचन और समीर के नाम की घोषणा कर रहा था. अपना नाम सुनकर कंचन अपनी ऑंखों में आ गये ऑंसुओं को पोंछती हुई मंच की ओर भाग खड़ी हुई.
"ताज्जुब है, वे लोग अब तक आए क्यों नहीं.?" शहनाज़ ओठों ही ओठों में बुदबाती हुई ग्रीन रूम के अंदर चली गयी. मगर मीनाक्षी वहीं खड़ी रहकर कंचन के दिल के दर्द को महसूस करनेलगी.
मंच पर समीर बदायुनी के साथ कंचन नजर आयी वे दोनों युगल गीत पेश करने लगे. समीर की आवाज में भी आज वो कशीश थी कि श्रोता झूम उठे -
"वो जब याद आये, बहुत याद आये....
वो जब याद आये,
बहुत याद आये.....
ग़मे जिंदगी के अंधेरे में हमने, चिरागे मुहब्बत जलाये बुझाये......!
वो जब याद आये,
बहुत याद आये.....!
आहटें जाग उठी रास्ते हंस दिये,
थाम दिल खिल उठे
हम किसी के लिए
कई बार ऐसा भी धोखा हुआ है, चले आ रहे हैं वो नजरें झुकाए.....!
कंचन -"वो जब याद आये बहुत याद आये, वो जब याद आये, बहुत याद आये,
चिरागे मुहब्बत जलाये, बुझाये, वो जब याद आये, बहुत याद आये."
ठीक इसी समय अभय के साथ रीतेश ने थियेटर में कदम रखा. रीतेश के हाथ में फूलों का एक खुबसूरत गुलदस्ता था. उन दोनों को देखकर कंचन के साथ साथ समीर का चेहरा भी खिल उठा. समीर नेपथ्य की ओर चला गया, मंच पर कंचन अकेली रह गयी. ऑंखों ही ऑंखों में उन दोनों का अभिवादन करती हुई कंचन शिकायती लहजे में गाने लगी -
"सारी सारी रात तेरी याद सताए.....!
सारी सारी रात तेरी याद सताए.
प्रीत जगाये हमें नींद न आये रे.... नींद न आये,
सारी सारी रात तेरी याद सताये.
इक तो बलम तेरी याद जलाये, दूजे चंदा आग लगाये.....!
इक तो बलम तेरी याद सताये, दूजे चंदा आग लगाये,
आग लगाये तेरी प्रीत जगाये रे नींद न आये, सारी सारी रात तेरी याद सताये...."
इस गीत की समाप्ति पर अभय खुद को रोक न पाया और ताली पीटते हुए वाह.... वाह कर उठा. रीतेश ने भी अपनी प्रसन्नता प्रकट किया. सचमुच कंचन बेहतरीन गायिका है. रीतेश की कल्पना से परे. उधर वीआईपी गैलरी से वर्मा जी खुशी से चिल्ला पड़े -"कंचन जी प्लीज़ वन्स मोर"
"शुक्रिया मेहरबान " कंचन ने वर्मा जी को मोहक अदा के साथ सलाम किया और मस्ती भरा गीत गाने लगी -
"इंसान किसी से दुनिया में एकबार मुहब्बत करता है,
इस दर्द को लेकर जीता है, इस दर्द को लेकर मरता है......!
जब प्यार किया तो डरना क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या?
प्यार किया कोई चोरी नहीं की, प्यार किया..!
प्यार किया कोई चोरी नहीं की छुप छुप आहें भरना क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या?
प्यार किया तो डरना क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या.?
आज कहेंगे दिल का फ़साना जान भी ले-ले चाहे जमाना
आज कहेंगे दिल का फ़साना जान भी ले ले चाहे जमाना,
मौत वहीं जो दुनिया देखे.... मौत वही जो दुनिया देखे,
घुट घुट आहें भरना क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या
जब प्यार किया तो डरना क्या........?"
इस गीत के साथ कंचन ने ऐसा मनमोहक नृत्य किया कि सारे दर्शक झूम उठे. प्रथम श्रेणी में बैठे दिलदीप कुमार तो नाचते नाचते गिर पड़े, जब उनको होश आया तब वे अपने हाथों से कंचन को बख्शीश देने के लिए तड़पने लगे, मगर बेचारे की तमन्ना पूरी न हो पायी. इधर अभय ने रीतेश के हाथ से गुलदस्ता छीनकर कंचन की ओर उछाल दिया. कंचन भी कुछ कम न थी. गुलदस्ता को लपक कर वह मधुर मुस्कान बिखेरती हुई बोल पड़ी -"शुक्रिया मेरे मेहरबान." फिर वह मंच से नीचे आ गयी और ग्रीन रूम में जाने की बजाए अभय और रीतेश के करीब आकर बैठ गयी.
"रीतेश बाबू आपका कल्पना थियेटर में हार्दिक अभिनन्दन है "
"जी धन्यवाद...." रीतेश ने शालिनता पूर्वक अपने दोनों हाथ जोड़कर धन्यवाद दिया.
"आइए आपका परिचय इस थियेटर के मालिक मोहन बाबू से करवाती हूं." कंचन के साथ रीतेश और अभय भी उठकर खड़ा हो गया और वे सभी मोहन बाबू तथा त्रिपाठी जी के सामने आकर खड़े हो गये. मोहन बाबू और त्रिपाठी जी की नजरें रीतेश पर जम गयी. उनकी जिज्ञासा को महसूस कर कंचन हंसती हुई बोल पड़ी -"सर ये रीतेश जी हैं, अभय के परम प्रिय मित्र."
"ओह.....!" मोहन बाबू के मुंह से निकला. रीतेश ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए उन दोनों का अभिवादन किया -"नमस्ते सर. आप लोगों से मिलकर हार्दिक प्रसन्नता हुई."
"उतनी ही प्रसन्नता हमें भी हुई है." मोहन बाबू ने हंसते हुए कहा.
"मैं आपके थियेटर की नगीना कंचन जी का शुक्रगुजार हूं, जो इन्होंने मेरे मित्र को नयी दिशा की ओर मोड़ दिया. साथ ही आप जैसे महापुरुषों से मिलने का सुअवसर प्रदान किया."
"यह तो आपका बड़प्पन है रीतेश बाबू." कंचन हंसती हुई बोली -"चलिए ग्रीन रूम में अन्य कलाकारों से मिलवाती हूं " कंचन के साथ वे दोनों ग्रीन रूम की ओर मुड़ गये. अभी उन लोगों ने भीतर कदम रखा ही था कि एकाएक सामने से आ रही मीनाक्षी टकरा गयी. वह जल्दी में थी, क्योंकि स्टेज पर अमित खन्ना उसके और शहनाज़ के नाम की घोषणा कर रहा था. शहनाज़ तो स्टेज पर पहुंच चुकी थी, मगर वह पीछे रह गयी.
"मीनाक्षी ये हैं रीतेश बाबू." रीतेश की ओर इशारा करती हुई मीनाक्षी बोली.
"नमस्ते." मीनाक्षी अपने दोनों हाथ जोड़कर औपचारिकता निभाती हुई बोली.
"जी नमस्ते.... शायद आपका नाम मीनाक्षी है." रीतेश ने प्रत्युत्तर देते हुए कहा.
"जी हां, लेकिन क्षमा करें मैं थोड़ा जल्दी में हूं. मेरे नाम की घोषणा हो चुकी है और....!"
"जी कोई बात नहीं आप जाइए, आपसे बाद में बातें करूंगा." रीतेश से इजाजत लेकर मीनाक्षी स्टेज की ओर दौड़ पड़ी. उसकी हालत बेताबी देखकर कंचन के साथ साथ वे दोनों भी हंसने लगे.
"चलिए रीतेश बाबू अब आपको कल्पना थियेटर की ज़ीनत हुस्नबानो दीदी से मिलवाती हूं." कंचन आगे बढ़ गयी उसके पीछे-पीछे अभय और रीतेश चलने लगे. न जाने क्यूं रीतेश का दिल बड़ी तेजी से धड़कने लगा था और अभय के दिल में भी हलचल सी मची हुई थी. उसकी ऑंखों के सामने कल रात वाली घटना सजीव हो उठी, जब जीतन बाबू नाम का वह दरिंदा हुस्नबानो की इज्जत पर डाका डाल रहा था.
हुस्नबानो अपनी आराम कुर्सी पर निढाल सी लेटी थी. अपनी दोनों ऑंखें बंद किए वह किसी गहन चिंतन में डूबीं हुई थी.
"दीदी.....!" कंचन की आवाज सुनकर कर वह चिहुंक पड़ी और अपनी ऑंखें खोल दी. अपने समक्ष कंचन के साथ अभय को देख कर वह चौंक पड़ी और आत्मीय भाव से पूछ बैठी -
"अरे अभय, तुम कब आए.?" हुस्नबानो उठकर खड़ी हो गयी.
"थोड़ी देर पहले ही आया हूं, अब आपकी तबियत कैसी है.?" अभय ने श्रद्धा पूर्ण स्वर में पूछा.
"ठीक हूं, लेकिन कल मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा इसका बेहद अफसोस है." तभी हुस्नबानो की नजर रीतेश पर पड़ गयी और चकित भाव से उसे निहारती हुई पूछ बैठी - "यह कौन है.?"
"यह मेरा मित्र रीतेश है."
"क्या कहा रीतेश....?" रीतेश का नाम सुनते ही हुस्नबानो का पूरा वजूद झनझनाने लगा.
उधर रीतेश की नजर जब हुस्नबानो पर पड़ी तब उसे ऐसा लगा जैसे हजारों बिच्छुओं ने उसे डंक मार दिया हो. उसके चेहरे पर कई तरह के भाव आए और चले गये फिर एकाएक उसका चेहरा तनता चला गया. पल पल में ही उस पर जैसे पागलपन सवार हो गया. वह अपने दोनों हाथों से हुस्नबानो का गला दबोच कर बेरहमी से दबाने लगा. फिर उसके मुंह से ऐसे ऐसे अपशब्द निकलने लगे कि अभय के साथ साथ कंचन का भी सर चकरा कर रह गया.
"माया.....! बोलो हरामजादी, तुम माया ही हो न."
"न.....नहीं, मैं माया नहीं हूं." हुस्नबानो के मुंह से घूंटी हुई सी आवाज निकली. मगर उसकी आवाज से लगा जैसे वह झूठ बोल रही है. फिर ऐसा लगा जैसे वह मूर्छित होकर गिर पड़ेगी. तब तक अन्य कलाकारों के साथ समीर और विकास भी उन लोगों के इर्द-गिर्द एकत्रित हो गया. उन लोगों में हुस्नबानो का बॉडीगार्ड जग्गू भी था. किसी की भी समझ में न आया कि अचानक यह सब हो कैसे गया ? अभय और कंचन को तो जैसे काठ ही मार गया था. वे दोनों विस्फारित नेत्रों से कभी हुस्नबानो को देखते तो कभी रीतेश को. इतना तो सभी लोग समझ गये कि हुस्नबानो का असली नाम माया है, मगर रीतेश के साथ इनका क्या संबंध है? यह कोई समझ नहीं पाया.
"झूठ मत बोलो डायन तुम माया ही हो. तुम्हारे कारण ही मेरी दुनिया उजड़ गयी, मेरे पिताजी ने आत्महत्या कर ली, मेरी मां स्वर्ग सिधार गयी और मैं दर-ब-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गया. मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ूंगा." पलक झपकते ही रीतेश शरीफ इंसान से दरिंदा बन गया. उसके खौफनाक रूप को देखकर कोई भी उसके निकट जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. हुस्नबानो की गर्दन पर उसके बलिष्ठ हाथों का दबाव बढ़ता चला गया. हुस्नबानो के मुंह से "गूं......गूं" की आवाज निकलने लगी और वह चेतना शून्य हो गयी. तब तक मोहन बाबू के साथ त्रिपाठी जी भी ग्रीन रूम में आ चुके थे. यहां के हालात देखकर उन दोनों के भी होश उड़ गये. मोहन बाबू इतने नर्वस हो गये कि अपने बाल नोंचते हुए चिल्ला पड़े -
"क्या हो रहा है, यह सब क्या हो रहा है मेरे थियेटर में?" तभी अचानक वह हो गया जिसे देखकर सबों के होश उड़ गये. रीतेश के सर पर जग्गू ने एक रॉड से कस कर प्रहार कर दिया. उसका प्रहार इतना तगड़ा था कि रीतेश का सर फट गया और खून का फ़ौवारा बहने लगा. उसका हाथ हुस्नबानो के गले पर से छूट गया और हुस्नबानो के साथ साथ वह भी धराम से जमीन पर गिर पड़ा. उधर हुस्नबानो बेहोश हो चुकी थी और इधर रीतेश भी बेहोश हो गया. तब तक अपना प्रोग्राम समाप्त कर शहनाज़ और मीनाक्षी भी वहां आ चुकी थी. कंचन और अभय तो पत्थर के बूत बन चुके थे. रीतेश के माथे से बह रहे खून को देखकर शहनाज़ से बर्दास्त न हुआ, वह उसके निकट बैठ गयी और अपने दुपट्टे को उसके सर पर बांधने के बाद मोहन बाबू से बोली -"सर इनकी हालत बहुत ही नाजुक हो चुकी है, इन्हें फौरन हॉस्पिटल भेजने का इंतजाम कीजिए, नहीं तो गजब हो जाएगा."
"हां मोहन बाबू जल्दी कोई व्यवस्था कीजिए नहीं तो कल्पना थियेटर बदनाम हो जाएगा." त्रिपाठी जी भी बुरी तरह से भयभीत हो चुके थे.
"हे भगवान मैं क्या करूं मेरी तो समझ में ही कुछ नहीं आ रहा है, इस शहर में आकर तो मैं बर्बाद हो गया." रीतेश के माथे से खून रूकने का नाम ही न ले रहा था. उधर हुस्नबानो अलग बेसुध पड़ी थी. हुस्नबानो को मीनाक्षी होश में लाने की चेष्टा कर रही थी. अजीब सा कारूणिक दृश्य बन गया था. वक्त की नजाकत को समझते हुए शहनाज़ ने सूझबूझ से काम लेना उचित समझा और वह अभय को झकझोरती हुई बोली -"अभय बाबू होश में आइए, आपके दोस्त की हालत बहुत नाज़ुक हो चुकी है, इन्हें फौरन हॉस्पिटल लेकर जाइए." शहनाज़ की तरकीब काम कर गयी. अभय के साथ साथ कंचन भी की भी चेतना लौटी आयी और वे दोनों रीतेश के ऊपर झुक गये. तब तक राजीव उपाध्याय भी वहां आ गया. राजीव को देखकर मोहन बाबू बोले -
"राजीव इन्हें अभय बाबू की गाड़ी में रखकर जल्दी से हॉस्पिटल जाओ." पल भर की भी देर किये बिना राजीव, समीर और विकास, रीतेश को उठाकर बाहर की ओर भाग खड़े हुए. अभय विमूढ़ की सी अवस्था में उन लोगों के पीछे दौड़ पड़ा. कंचन और शहनाज़ का रोते रोते बुरा हाल हो चुका था. हुस्नबानो को होश में लाने का प्रयास करती हुई मीनाक्षी भी रोये जा रही थी. जग्गू भी हुस्नबानो को होश में लाने की चेष्टा कर रहा था. मोहन बाबू अभी भी अपने बाल नोंच रहे थे. एक कराह के साथ हुस्नबानो ने अपनी ऑंखें खोल दी और इधर उधर देखती हुई रीतेश तथा अभय को ढ़ूंढ़ने लगी -"कहां है वे दोनों?" क्षीण सी आवाज निकली हुस्नबानो के मुंह से.
"अभय बाबू राजीव, विकास और समीर के साथ रीतेश बाबू को हॉस्पिटल लेकर गये हैं." उत्तर शहनाज़ ने दिया.
"उसे मारा किसने था." क्रुद्ध स्वर में पूछा हुस्नबानो ने.
"मैंने मारा था दीदी." अपराधी की भांति जग्गू हुस्नबानो के समक्ष आकर खड़ा हो गया.
"क्यों मारा....?" चीख पड़ी हुस्नबानो.
"नहीं मारता तो वो आपकी जान ले लेता."
"तो मर जाने दिया होता मुझे. अब मैं जी कर भी क्या करूंगी. सच कह रहा था वह मैं नागिन हूं. उसके पूरे परिवार को मैंने डंस लिया सब को खा गयी मैं.....सब को.!" आंचल में मुंह छुपा कर हुस्नबानो बेशुमार ऑंसू बहाने लगी.
"हुस्नबानो, आखिर वह था कौन.....?" मोहन बाबू ने धीमे स्वर में पूछा.
"नहीं बता सकती, मैं कुछ भी नहीं बता सकती. मोहन बाबू यहां से कूच करने की तैयारी कीजिए."
"हां, मेरा भी मन ऊब गया है इस शहर से. कंचन, शहनाज़ और मीनाक्षी जाओ तुमलोग चलने की तैयारी करो." सभी नर्तकियों को कूच करने का हुक्म देकर मोहन बाबू तेजी से बाहर निकल गये. कंचन, शहनाज और मीनाक्षी हत्प्रभ सी खड़ी हुस्न बानो को एकटक निहारे जा रही थी.
किसी भी दर्शक, यहां तक कि सब इंस्पेक्टर वर्मा जी को भी ग्रीन रूम में घटित हुई है इस हृदयविदारक घटना की भनक तक भी न मिल पायी.
∆∆∆∆∆
क्रमशः......!
0 comments:
Post a Comment