-राम बाबू नीरव
रात्रि के लगभग ग्यारह बजे रीतेश को चिंताजनक हालत में दयाल नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया. उसकी गंभीर हालत को देखते हुए ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर ने फौरन सिनियर डाक्टर एस. के. दयाल को फोन कर दिया. डा० दयाल दस मिनट के अंदर ही आ गये और रीतेश को आईसीयू में ले जाया गया. आईसीयू के बाहर अभय के साथ साथ राजीव, समीर और विकास बेचैनी से चहलकदमी करने लगे. अभय सिर्फ रो नहीं रहा था, फिर भी उसके दिल की जो हालत थी उसे वे तीनों कलाकार अच्छी तरह से महसूस कर रहे थे. अभय अपनी हथेली पर मुक्का मारते हुए अपने दिल की वेदना प्रकट कर रहा था. यह तो गनीमत थी कि दयाल नर्सिंग होम की काबिल नर्स अनुपमा, जो रीतेश की सिर्फ प्रेमिका ही नहीं बल्कि मंगेतर भी थी, इस समय ड्यूटी पर नहीं थी, यदि वह रही होती तो उसके करूण क्रंदन से अभय के भी धैर्य का बांध टूट गया होता. उन चारों के कपड़े खून से भींग चुके थे, मगर इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया. इस दुखद घटना की जानकारी राज पैलेस में पहुंच चुकी थी. रग्घू हवेली के नौकरों के साथ फौरन हाजिर हो गया. इन छः महीने में ही रग्घू के साथ साथ राज पैलेस के सारे नौकर रीतेश के साथ भावनात्मक रूप से इस तरह जुड़ चुके थे कि उसकी हालत के बारे में जान कर उनलोगों की ऑंखों से बहने वाले ऑंसू रूक ही नहीं रहे थे . लगभग एक घंटा बाद मोहन बाबू के साथ त्रिपाठी जी वहां आ गये. वे लोग भी रीतेश की हालत के बारे में जानने को व्यग्र हो रहे थे.
आते के साथ सहानुभूति जताते हुए मोहन बाबू ने अभय से पूछा -"अब आपके दोस्त की हालत कैसी है अभय बाबू.?"
"अभी वह आईसीयू में है, उसका ऑपरेशन हो रहा है." अभय ने रूखे स्वर में उत्तर दिया.
"ओह.....!" मोहन बाबू के मुंह से दर्द भरा उच्छवास निकल पड़ा. त्रिपाठी के ललाट पर भी चिंता की रेखाएं उभर आयी. वे मन ही मन ईश्वर से रीतेश के स्वस्थ्य हो जाने की कामना करने लगे. कुछ देर चुप रहने के पश्चात मोहन बाबू अपनी जेब से रुपयों की एक गड्डी निकाल कर अभय की हथेली पर रखते हुए बोले -"अभय बाबू चूंकि यह हादसा मेरे थियेटर में हुआ है, इसलिए रीतेश बाबू के इलाज के लिए ये कुछ रुपए हैं रख लीजिए.....!"
"आप लोगों ने मेरे दोस्त को भिखारी समझ लिया है क्या?" रुपयों की गड्डी लौटते हुए अभय खीझ पड़ा -"वह मेरा दोस्त नहीं, भाई है. सेठ धनराज जी का पोता है वह. समझ गये आप.....!"
"लेकिन अभय बाबू...!" मोहन बाबू ने प्रतिवाद करना चाहा.
"आपलोग जाइए..... जाइए यहां से, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए." अब अभय के धैर्य का बांध टूट गया और वह अपना मुंह ढांप कर रोने लगा. मोहन बाबू ने अभय को पुनः टोकना चाहा तभी रग्घू उन्हें झिड़कते हुए बोल पड़ा - "आप लोग क्यों अभय को परेशान कर रहे हैं. जब इसने मना कर दिया तो फिर ज़िद क्यों कर रहे हैं. आप लोगों की अब यहां कोई जरूरत नहीं है, जाइए यहां से, हमलोग सब संभाल लेंगे." रग्घू की बातें उनलोगों को चूभ गयी. समीर थोड़ा उत्तेजित होते हुए मोहन बाबू से बोला -
"चलिए सर, ये ठीक कह रहे हैं. अब यहां हमारी कोई आवश्यकता नहीं है."
मोहन बाबू और त्रिपाठी जी ने यहां से प्रस्थान कर जाना ही उचित समझा और वे सभी जान के लिए मुड़ गये.
कुछ देर बाद आईसीयू से डा० दयाल बाहर निकले. रग्घू डा० दयाल के करीब आकर व्याकुल स्वर में पूछने लगा. -
"डाक्टर साहब रीतेश की हालत अब कैसी है.?"
"वो अब खतरे से बाहर है, मगर अभी उसे होश नहीं आया है, कल दोपहर तक होश आ पायेगा." डा० दयाल की आवाज सुनकर अभय उठकर खड़ा हो गया और अपने ऑंसू पोंछते हुए बोला-
"सर क्या हमलोग उसे देख सकते हैं.?"
"हां, देख सकते हैं, मगर वहां शोर-शराबा नहीं होनी चाहिए." डा० दयाल हिदायत देकर अपने चैंबर की ओर बढ़ गये. अभय और रग्घू के साथ सारे नौकर भी लपकते हुए आईसीयू में घूस गये. रीतेश उसी बेड पर बेहोश पड़ा था, जिस बेड पर आज से छः महीने पूर्व अभय जिंदगी और मौत से जूझ रहा था. उसके माथे और पूरे चेहरे पर पट्टी बंधी थी और उसे खून चढ़ाया जा रहा था. एक जुनियर डाक्टर और नर्स उसकी देखभाल के लिए मुस्तैद थे. उसे उस अवस्था में देख कर अभय के मुंह से आह निकल पड़ी और वह वहीं फर्श पर बैठकर रोने लगा. चूंकि रग्घू स्वयं अंदर ही अंदर रो रहा था, फिर वह अभय को सांत्वना कैसे देता? नर्स ही उसे सांत्वना देती हुई बोली -"सर प्लीज यहां मत रोइए, नहीं तो पेशेंट की हालत और भी बिगड़ जाएगी."
"हां....अभय यह ठीक कह रही है, तुम खुद पर काबू पाओ." रग्घू भी अपने ऑंसू पोंछते हुए बोल पड़ा. उन दोनों की बातों का अभय पर असर पड़ा और खुद को संभालते हुए उठकर खड़ा हो गया. रीतेश का अच्छी तरह से मुआयना करने के पश्चात जुनियर डाक्टर नर्स को कुछ जरूरी हिदायतें देकर चला गया.
"बेटा तुम भी चलकर थोड़ा आराम कर लो." रग्घू ने अभय से आग्रह पूर्ण स्वर में कहा.
"नहीं काका, अपने दोस्त को इस हालत में छोड़कर मैं चैन की नींद सो जाऊं, ऐसा हरगिज न होगा. आप लोग हवेली चले जाइए, किसी के हाथ से मेरे कपड़े भिजवा दीजियेगा. मेरा यह कपड़ा खून से भींग गया है."
"मगर मैं......!"
"काका जाइए आप लोग." अभय ने थोड़ा झिड़कने वाले अंदाज में कहा, अब तो मजबूर हो गया रग्घू. आईसीयू में अब सिर्फ अभय था और वह नर्स थी. अभय रीतेश के बेड के निकट रखे एक कुर्सी पर बैठ गया. उसकी नजरें रीतेश पर ही टिकी हुई थी.
"सर, प्लीज़ आप गेस्ट रूम में जाकर आराम कर लीजिए." नर्स ने अभय की मनोदशा को भांप कर विनती करते हुए कहा.
"सिस्टर तुम जिद न करो, मैं अपने दोस्त के पास ही रहूंगा. तुम तो जानती हो, इसने अपना खून देकर मेरी जान बचाई थी, तुम ही बताओ आज इसे इस हालत में छोड़कर क्या मैं चैन की नींद सो पाऊंगा."
"सो तो ठीक है सर मगर.....!"
"ऐसा करो सिस्टर, तुम कुछ देर के लिए रीतेश के साथ मुझे अकेला छोड़ दो "
"लेकिन सर....!"
"प्लीज़ सिस्टर....!"
"ओके सर, मैं काउंटर पर जाती हूं, यदि कुछ प्राब्लम हो तो मुझे आवाज दे दीजिएगा."
"हां सिस्टर एक बात बताओ, वो अनुपमा मैम.....!"
"उनकी ड्यूटी कल सुबह दस बजे से है."
"ओह....ओके, अब तुम जाओ."
नर्स वहां से चली गयी. अभय अकेला रह गया. उसके दिमाग में अब हलचल होने लगी - "रीतेश ने हुस्नबानो जी के साथ ऐसा दुर्व्यवहार क्यों किया. आखिर उनके साथ इसका संबंध क्या है. और हुस्नबानो को देखकर मेरे दिल में हलचल क्यों होने लगती है.? मुझे ऐसा क्यों लगता है कि मैं हुस्नबानो को पहले से जानता हूं. मेरे इन सारे सवालों का जवाब कौन देगा.?" परंतु लाख सर पटकने के बाद भी वह कुछ समझ नहीं पाया. काफी देर तक अपने जज़्बातों से लड़ते रहने के पश्चात नींद से उसकी ऑंखे बोझिल होने लगी. आखिरकार वह रीतेश के बेड पर सर टिका कर सो गया.
*****
सुबह के चार बज चुके थे. कड़ाके की ठंड के साथ साथ गहरा कोहरा छाया हुआ था. दयाल नर्सिंग होम के सामने एक स्कॉर्पियो गाड़ी आकर रूकी. गाड़ी से सबसे पहले ड्राइवर नीचे उतरा और उसने पीछे का दरवाजा खोल दिया. पीछे वाली सीट से हुस्नबानो, कंचन, शहनाज़ और मीनाक्षी उतरी. ठंड से बचने के लिए उन चारों ने अपने अपने बदन को अच्छी तरह से ढ़ंक रखा था. नर्सिंग होम का मुख्य द्वार बंद था. कंचन ने काफी खुशामद की तब गार्ड ने द्वार खोला. वे सभी अंदर दाखिल हुई और झपटती हुई रिसेप्शन काउंटर पर आ गयी. वहां नर्स कंबल से खुद को लपेटे हुई खर्राटे भर रही थी.
"सिस्टर.....उठो." शहनाज़ उसे झिझोड़ती हुई उठान की चेष्टा करने लगी. नर्स की नींद कच्ची थी वह एक ही बार में हड़बड़ा कर उठ गयी और उसके मुंह से झुंझलाहट भरी आवाज निकल पड़ी - "क्या है....कौन हो तुमलोग.?"
"देखो हमलोग अभय बाबू की रिश्तेदार हैं, पटना से आयीं है. रीतेश को देखना है."
"मगर इतनी रात को....!" नर्स थोड़ा खीझ पड़ी.
"देखो वो क्या है कि हमलोगों को अभी ही लौट जाना है. यदि तुम्हें अधिक परेशानी हो रही हो तो अभय बाबू से ही मिलवा दो."
"अरे नहीं नहीं....!" दुबारा अभय का नाम सुनते ही नर्स की सारी झुंझलाहट काफूर हो गयी और उसके तेवर बदल गये. -"अभय बाबू आईसीयू में ही हैं, अपने दोस्त के साथ हैं. आपलोग वहां जा सकती हैं."
"किधर है आईसीयू." कंचन ने ही पूछा."
"वो उधर....!" नर्स ने एक गली की ओर इशारा कर दिया. वे चारों उस ओर बढ़ गयी. आईसीयू में कदम रखते ही हुस्नबानो के मुंह से हल्की सी चीख निकल पड़ी, मगर वह खुद को संभालती हुई रीतेश के बेड के निकट आ गयी. रीतेश की हालत देखकर उसकी ऑंखों से ऑंसुओं की अविरल धारा प्रवाहित होने लगी. अभय बेसुध गहरी नींद में सोया हुआ था. जबकि रीतेश बेहोश था. कंचन, शहनाज़ और मीनाक्षी तब तक द्वार पर ही खड़ी रही. हुस्नबानो ने पहले रीतेश के माथे को स्नेह से चुमा, फिर अभय को चुमने के बाद अपने शॉल के अंदर से लाल रंग की एक डायरी और एक लिफाफा निकाल कर अभय के माथे के करीब रख दी और तेजी से बाहर की ओर भाग खड़ी हुई. उसके जाने के बाद शहनाज़ ने कंचन से कहा -"जाओ कंचन, तुम भी अंतिम बार अपने अभय को एक नजर देख लो."
"हिम्मत नहीं हो रही है आपा." कंचन के मुंह से सर्द आह निकल पड़ी. "हिम्मत जुटाओ."
"हां कंचन, जाते जाते अभय बाबू को कोई ऐसी निशानी देती जाओ, जिसे वे आजीवन याद रखें." मीनाक्षी ने भी उसका हौसला बुलंद करते हुए कहा. वह धीरे-धीरे पग बढ़ाती हुई बिछावन के करीब आ गयी और रीतेश का माथा सहलाने के बाद अभय के निकट आकर एकटक उसे देखने लगी. उसकी ऑंखों से दो बूंद ऑंसू टपक कर रीतेश के गाल पर गिर पड़े. मगर गर्म ऑंसू के गाल पर पड़ने के बाद भी अभय के शरीर में कोई हरकत न हुई. कुछ पल उसे अश्रुपूर्ण नेत्रों से निहारते रहने के पश्चात वह उसके अधरों पर अपने तप्त अधर रख दी. इसकी अभय पर क्या प्रतिक्रिया हुई, वह नहीं जान पायी, क्योंकि अभय तो सुषुप्तावस्था में था, परंतु स्वयं कंचन के पूरे बदन में आग सी लग गयी. वह भी हुस्नबानो की तरह ही तड़पती हुई बाहर की ओर भाग खड़ी हुई. उसके पीछे पीछे शहनाज़ और मीनाक्षी भी बाहर निकल गयी.
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क्रमशः........!
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